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जब साक्षरता, कन्या भ्रूण हत्या, जल संरक्षण के मुद्दे पर दीवारों ने दिया संदेश
लखनऊ: काकोरी ब्लॉक के दासदोई गांव की कच्ची मिट्टी की दीवारें हों या बिना प्लास्टर की बदरंग दीवारें, गुरुवार की दोपहर एक नए ही अंदाज में रंगी-संवरी दिख रही थीं। मौका था अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा दीवारों पर पेंटिंग और राइटिंग के जरिए ग्रामीणों को जागरूक करने का।
इस दौरान कार्यकर्ताओं ने स्वच्छता, कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों की साक्षरता, जल संरक्षण, पर्दा प्रथा और दहेज जैसे विषयों पर दीवारों पर पेंटिंग और स्लोगन लिखकर ग्रामीणों को जागरूक किया।
कुछ गंभीर संदेश देने वाले, तो कुछ चुटीले थे नारे
जहां एक तरफ दीवारों पर कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में 'मां चाहिए, पत्नी चाहिए, तो फिर बेटी क्यों नहीं?' , 'दहेज एक अभिशाप' जैसे गंभीर संदेश लिखे थे वहीं दूसरी तरफ 'श्रीमान खतरों के खिलाड़ी', जाओ शौचालय छोड़ो झाड़ी' जैसे चुटीले संदेशों से दीवारें बोलती सी लगती थीं।
ग्रामीण दिखे उत्साहित, किया सहयोग
दासदोई गांव के निवासी अभाविप की इस मुहिम से खासे उत्साहित दिखे। ग्रामीण कार्यकर्ताओं की सहायता के लिए कुर्सियां, सीढ़ी, बांस-बल्लियों का प्रबंध करते देखे गए। ग्रामीणों ने बताया, कि इस अभियान से गांव के लोगों में जागरूकता तो आएगी ही साथ ही गांव की दीवारों की सुंदरता भी बढ़ गई है।
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पूरे प्रदेश में चलाएंगे ऐसे कार्यक्रम:-
अभाविप के अखिल भारतीय विश्वविद्यालय प्रमुख श्रीहरि बोरिकर ने बताया, कि उनका संगठन पूरे प्रदेश के गांवों में ऐसे कार्यक्रम चलाकर ग्रामीणों को जागरूक करेगा और उनसे संवाद स्थापित करेगा।
राष्ट्रीय कला मंच के संयोजक सौरभ उनियाल ने कहा, कि 'ग्रामीण बढ़-चढ़कर सहयोग कर रहे हैं जिससे कार्यकर्ताओं में दोगुना जोश है। मौके पर अभाविप के छात्रों की बड़ी संख्या इस अभियान के लिए उपस्थित थी। चित्रकारी कर रहे कार्यकर्ताओं में छात्रों के साथ-साथ छात्राओं की भागीदारी भी दर्जनों की तादाद में थी।
सैकड़ों घरों की बस्ती में हैं गिनती के शौचालय
गांव के एक टोले के निवासी ने पूछने पर बताया कि साठ से अधिक घरों वाले इस टोले में सिर्फ चार या पांच घरों में ही शौचालय है। ये पूछने पर, कि बाकी घरों के निवासी शौचादि क्रियाओं के लिए कहां जाते हैं ग्रामीण और अभाविप कार्यकर्ता सभी टालने का प्रयास करने लगे।
जहां प्रधानमंत्री पूरे देश में स्वच्छता मुहिम के प्रति इतने गंभीर दिखते हैं, वहीं सूबे की राजधानी से सटे इस गांव में साठ-सत्तर घरों के बीच मात्र चार या पांच शौचालय होने पर क्या जवाब देगी सरकारें!