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राष्ट्रीय मूल्यों के अभाव वाला साहित्य समाज को पतन की ओर ले जाता है: सीएम योगी

लोक साहित्य से हिन्दी समृद्धि होने के साथ ही शक्ति भी प्राप्त करती है। मुख्यमंत्री 5 कालीदास में आयोजित हिन्दुस्तानी एकेडमी के पुरस्कार वितरण समारोह में बोल रहे थे।

Aditya Mishra
Published on: 4 Aug 2019 1:52 PM GMT
राष्ट्रीय मूल्यों के अभाव वाला साहित्य समाज को पतन की ओर ले जाता है: सीएम योगी
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लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि साहित्य समाज का आईना होता है, जैसा साहित्य होगा समाज उसी के अनुरूप प्रेरणा प्राप्त करता है।

स्वार्थ पर आधारित और राष्ट्रीय मूल्यों के अभाव वाला साहित्य खतरनाक है, जो समाज को पतन की ओर ले जाता है। हिन्दी और लोकभाषाएं एक दूसरे की विरोधी नहीं, बल्कि सहयोगी हैं।

लोक साहित्य से हिन्दी समृद्धि होने के साथ ही शक्ति भी प्राप्त करती है। मुख्यमंत्री 5 कालीदास में आयोजित हिन्दुस्तानी एकेडमी के पुरस्कार वितरण समारोह में बोल रहे थे।

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मध्यकालीन संतों ने साहित्य के मर्म को समझा

इस दौरान उन्होंने कहा कि मध्यकाल में जब देश घोर गुलामी के कालखंड में जी रहा था, तब संत तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना कर समाज के मन में एक नया भाव जागृत किया था।

रामचरित मानस की रचना नहीं होती, तो गांव-गांव में रामलीला का आयोजन नहीं हो पाता। मध्यकालीन संतों ने साहित्य के मर्म को समझते हुए स्थानीय भाषा के अपने साहित्य के माध्यम से लोगों को जाग्रत कर एक राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा करने में बड़ी भूमिका निभाई थी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हिन्दी की पहली डी लिट की उपाधि डॉ. पीताम्बर बड़थ्वाल को गुरु गोरक्षनाथ की गोरखवाणी के लिए प्राप्त हुई थी।

डॉ. पीताम्बर ने गुरु गोरक्षनाथ की शबद, साकी और बीजक को गोरखवाणी में संकलित किया था। आज यूरोप में गोरखवाणी पर शोध के कार्य हो रहे हैं।

22 वर्षों से बंद थी पुरस्कार श्रृंखला

हिन्दुस्तानी एकेडमी के अध्यक्ष और उनकी टीम को बधाई देते हए मुख्यमंत्री ने कहा कि एकेडमी ने 22 वर्षों बाद हिन्दी, उसकी लोकभाषाओं से जुड़े हुए साहित्य और उनके साहित्यकारों को सम्मानित करने की परंपरा को फिर से प्रारम्भ किया है। हिन्दुस्तानी एकेडमी और लोक भाषाएं हिन्दी को समृद्ध करने का आधार हैं।

कार्यक्रम में हिन्दुस्तानी एकेडमी के अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह ने कहा कि पिछले 22 वर्षों से पुरस्कारों की यह श्रृंखला बंद थी। एकेडमी की तरफ से वर्ष 1928-29 में पहला पुरस्कार उपन्यासकार प्रेमचंद जी को दिया गया था।

वहीं अंतिम पुरस्कार 1998 में प्रखर आलोचक नामवर सिंह जी को दिया गया था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश और प्रेरणा से पुन: यह प्रक्रिया प्रारम्भ हुई है। इसके लिए हम उनके आभारी हैं।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री के साथ हिन्दुस्तानी एकेडमी के अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह, हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष सदानंद गुप्त और संस्कृति संस्थान के अध्यक्ष आचार्य वाचस मिश्र के साथ तमाम साहित्यकार मौजूद रहे।

इन साहित्यकारों को किया गया सम्मानित

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने 10 उत्कृष्ट साहित्यकारों को सम्मानित भी किया। जिसमें डॉ. अर्जुन प्रताप सिंह को पांच खंड की पुस्तक गोरक्षनाथ और नाथ सिद्ध के लिए गुरू गोरक्षनाथ शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया।

डॉ. सभापति मिश्र को उनकी पुस्तक रघुनाथ गाथा के लिए गोस्वामी तुलसीदास सम्मान, डॉ. रामबोध पाण्डेय को उनकी पुस्तक वतन के लिए भारतेन्दु हरिश्चंद्र सम्मान, प्रोफेसर योगेन्द्र प्रताप सिंह को आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान से सम्मानित किया गया।

डॉ. सरोज सिंह को महादेवी वर्मा सम्मान, शैलेन्द्र मधुर को उनकी पुस्तक 'हम भी हैं अदालत में' के लिए फिराख गोरखपुरी सम्मान, बृज मोहन प्रसाद ‘अनाड़ी’ को उनकी पुस्तक गुलरी के फूल के लिए भिखारी ठाकुर भोजपुरी सम्मान से सम्मानित किया गया।

वहीं डॉ. आद्या प्रसाद सिंह ‘प्रदीप’ को उनकी पुस्तक तुलसी अवधी महाकाव्य के लिए बनादास अवधी सम्मान, डॉ. ओकांरनाथ द्विवेदी को उनकी पुस्तक छंद कलश के लिए कुम्भनदास ब्रजभाषा सम्मान, लखनऊ के एडीएम ट्रांस गोमती विश्वभूषण को उनकी पुस्तक मैंने अनुभव से सीखा है कि लिए युवा सम्मान दिया गया।

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