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लॉक डाउन ने छीन ली इनकी कमाई, अब परिवार चलाना मुश्किल
बाराबंकी मुख्यालय पर सड़क के किनारे बैठे ग्राहक का इंतज़ार करते इन अतिलघु उद्द्यमियों की जो बड़ी बेसब्री से गर्मी आने का इंतज़ार कर रहे थे।
बाराबंकी: समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो रोज कुआं खोदकर पानी पीते है अर्थात जब रोज कमाते हैं तभी शाम को उनका चूल्हा जलता है। लॉक डाउन से पहले यह जरूर कुछ कमाई कर लेते थे। मगर आज की स्थिति में इनका परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। इनके पास कुछ बचा हुआ रखा भी नहीं है जिससे यह घर पर बैठ कर कुछ दिन अपना खर्च चलाएं। ऊपर से लॉक डाउन ने इनकी कमर ही तोड़ दी है। अब इनका एक मात्र सहारा सरकार से मिलने वाला मुफ्त राशन ही है मगर खाने के अलावा खर्च और भी है वह कहाँ से आये।
कूलर बिक्री का करते हैं काम
हम बात कर रहे हैं बाराबंकी मुख्यालय पर सड़क के किनारे बैठे ग्राहक का इंतज़ार करते इन अतिलघु उद्द्यमियों की जो बड़ी बेसब्री से गर्मी आने का इंतज़ार कर रहे थे। ताकि इनका काम कुछ गति पकड़ सके। मगर गति पकड़ने से पूर्व ही इनके काम को लॉक डाउन ने ब्रेक कर दिया। यह मजदूर घरों में लगाए जाने वाले कूलर की बिक्री या फिर कूलर में घास लगाने का काम करते हैं। लेकिन लॉक डाउन ने इनकी आमदनी ही बन्द कर दी।
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खाने को मोहताज ये उद्यमी
ऐसे में ये लघु उद्यमी अत्यंत परेशान हैं। क्योंकि अब इनके पास अपना पेट भरने का भी कोई जरिया नहीं बचा है। अपनी पीड़ा बताते हुए यह लोग कहते हैं कि पहले वह इसका काम करके दाल रोटी खा लिया करते थे। मगर अब नमक रोटी भी मुश्किल हो गया है। उनको सरकार द्वारा दिया जाने वाला राशन मिलता जरूर है मगर बड़ा परिवार होने के नाते वह कम ही पद जाता है। उनकी इतनी कमाई नहीं थी कि वह पहले से कुछ बचा कर रख पाते क्यों कि उनकी आमदनी रोज की ही है।
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लॉक डाउन खुले और उनका काम आगे बढे इसका वह इंतज़ार कर रहे हैं। ऐसे में ये लॉकडाउन एक ओर लोगों की कोरोना वायरस से रक्षा कर रहा है। तो दूसरी ओर से इससे कई लोगों की जान पर भी बन आई है। अब ये लोग इस इन्तेजार में हैं कि कब लॉकडाउन खुले और उनका काम शुरू हो पाए जिससे उन्हें दो वक्त की रोटी तो नसीब हो।
सरफ़राज़ वारसी