Hariyali Abhiyan: लोक भारती-हरियाली अभियान

Hariyali Abhiyan: इसलिए लोक भारती ने हरियाली अभियान में इन्हीं बातों पर विशेष बल दिया है

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Published on: 5 July 2024 6:57 AM GMT
Lok Bharati Hariyali Abhiyan  ( Social- Media- Photo)
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Lok Bharati Hariyali Abhiyan ( Social- Media- Photo)

Hariyali Abhiyan: पर्यावरण संरक्षण मानव जीवन ही नहीं अपितु सम्पूर्ण जीव जगत के सुचारु कार्य संचालन के लिए आवश्यक है। पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका वृक्षों की है। इस हेतु पौधों का रोपण एवं उनके संरक्षण के साथ-साथ किन-किन पौधों का रोपण प्राथमिकता पर किया जाये और कब किया जाये, यह जानना भी आवश्यक है। इसलिए लोक भारती ने हरियाली अभियान में इन्हीं बातों पर विशेष बल दिया है।

हम सभी अभी अपनी अस्मिता को भूले हुए हैं, अतः यू. एन.ओ. द्वारा पाँच जून को घोषित विश्व पर्यावरण दिवस मान कर इतिश्री कर लेते हैं। जबकि पौधे लगाने का सबसे उपयुक्त समय वर्षा काल का श्रावण मास होता है।अतः लोक भारती ने वृक्षारोपण हेतु सावन माह की 'आषाढ़ पूर्णिमा' से'रक्षा बन्धन' तक एक महीना 'हरियाली माह' के रूप में सुनिश्चित किया है।


लोक भारती इस हरियाली माह में समाज का आह्वान करती है कि पर्यावरण का संरक्षण के लिए पौधा रोपण का यह सर्वोत्तम समय है, इस समय पर मंगल वाटिका में सुझाये गये पौधों का रोपण कीजिये जिनसे हमारी विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान हो सके।हरियाली अभियान से वनावरण एवं हरीतिमा का विस्तार, जल-संरक्षण एवं जैव-विविधता संरक्षण के साथ ही प्राणवायु, आरोग्य तथा स्वावलंबन को दृष्टिगत जो पौधे आवश्यक व अत्यन्त उपयोगी हैं, उनका समुच्चय यहाँ मंगल वाटिका के रूप में दिया गया है। जिनका रोपण अपनी प्राथमिकता के आधार पर करें।



मंगल वाटिका

अ- हरिशंकरी -वृक्षायुर्वेद के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु महेश के प्रतिनिधि तीन पौधों

1. पीपल, 2. बरगद, 3. पाकड़ एक ही थाले में एक साथ लगाये जाते हैं। जिससे एक कार्य से चार लाभ प्राप्त होते हैं । जलकलश का निर्माण, धर्मशाला की स्थापना, जीव भण्डारा का प्रारम्भ और प्राण वायु(आक्सीजन) का कारखाना लग जाता है। हरिशंकरी के तीनों पौधों का वर्णन इस प्रकार है।

(1) पीपल (बोधि वृक्ष) भगवान विष्णु के स्वरूप पीपल के नीचे महात्मा बुद्ध को बोधि (ज्ञान) प्राप्त हुआ था। पीपल सर्वाधिक आक्सीजन देने तथा जीव-जन्तुओं को वर्ष भर भोजन उपलब्ध कराने वाला पौधा है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- वृक्षों में मैं पीपल हूँ।


(2) बरगद (अक्षय-वट) भगवान शिव के साक्षात् स्वरूप बरगद के अक्षय गुण के कारण यह भारतीय सनातन संस्कृति का भी प्रतीक है। इसमें अपार जल संधारण तथा जीव-जन्तुओं को आश्रय एवं निरन्तर भोजन उपलब्ध कराने की क्षमता है।

(3) पाकड़ (प्लक्ष) घनी व शीतल छाया, वर्षाजल संचयन, जीव-जन्तुओं को आश्रय एवं भोजन उपलब्ध कराने वाला पौधा है।

ब- पंचवटी भगवान श्रीराम के वनवास काल के आश्रय, साधना व आरोग्य के पाँच पौधे आते हैं-

1. पीपल, 2. बरगद, 3. बेल, 4. अशोक, 5. आंवला। पीपल, बरगद का वर्णन हरिशंकरी के साथ किया गया है, अतः यहां शेष तीन पौधों का वर्णन किया जा रहा है।

3. बेल-पेट रोगों की महाऔषधि, शिव आराधना का प्रमुख अंग।

4. अशोक- शोक हरने वाला, सदैव हरा रहने वाला वृक्ष ।


5. आंवला-अमृत रसायन, मस्तिष्क, नेत्र एवं चिरयौवन की औषधि ।

स- पंच पल्लव अपनी जड़ों में सर्वाधिक जल संग्रहण एवं संधारण करने वाले पौधों का समुच्चय है। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक शुभ कार्य के अवसर पर स्थापित किया जाने वाला जल कलश पंचपल्लव का ही प्रतीक है। इसमें 1. पीपल, 2.

बरगद, 3. पाकड़ का वर्णन पहले किया गया है, अतः यहाँ शेष दो पौधोंकी जानकारी दी जा रही है।

4. गूलर-सर्वाधिक जल संधारक एवं पशु-पक्षियों को आहार देने वाला पौधा है।

5. आम-फलों का राजा, खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण विकल्प तथा मंगल अवसर पर गृह सज्जा एवं पूजा में इसके पत्तों और हवन-यज्ञ में लकड़ी उपयोग में आती है।


द- आरोग्य वाटिका इसमें चयनित छः महत्वपूर्ण आरोग्य वर्धक पौधे हैं -

1. नीम-त्वचा व रक्त विकारनाशी है।

2. जामुन - मधुमेह नाशी है।

3. अर्जुन-हृदय रोग निवारक।

4. हरड।

5. बहेड़ा।

6. आंवला। ये तीनों पेट रोग नाशक है।

मंगल वाटिका के लाभ

पर्यावरण संरक्षण-

1. स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ वायु।

2. हमारे द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण का निराकरण।


3. वातावरण के ताप में कमी।

4. वर्षाजल का भू-संचयन।

5. भूगर्भ जल संकट का निराकरण।

6. वायुमण्डल कीआद्रता में वृद्धि।

7. वर्षा के लिए अनकूल वातावरण।

8. जैव विविधता का संरक्षण एवं संवर्धन।

9. अन्य जीवों के पालन-पोषण व्यवस्था में वृद्धि।

प्राकृतिक धर्मशाला- मंगल वाटिका लगाने से जीव जन्तुओं की प्राकृतिक धर्मशाला निर्माण होगी। पेड़ों पर अनेक जीव जन्तुओं को रहने का निवास, उसकी शीतल छाया में अनेक लोगों को विश्राम एवं सिर छुपाने की जगह उपलब्ध होगी।जीव-जन्तुओं भण्डारा- मंगल वाटिका लगाने से भण्डारे का पुण्य लाभ होगा। क्योंकि पंचवटी, पंचपल्लव, हरिशंकरी, आरोग्य वाटिका, स्वावलम्बन वाटिका के पौधों में पूरे वर्ष फल रहते हैं, जिनसे अनेक जीव-जन्तुओं को भोजन उपलब्ध होगा, जिससे जंगली जीव जैसे वानर, सुअर, नीलगाय आदि मानव बस्तियों में नुकसान नहीं पहुँचायेंगे।आक्सीजन की फैक्टरी-सभी पौधे प्राण वायु देते हैं, जिसके बिना न हमारा जीवन सम्भव है और न अन्य जीव जन्तुओं का।औषधि के भण्डार- सभी वनस्पतियां औषधीय गुणों का भण्डार हैं, जो हमारे आरोग्य के लिए आवश्यक है।


हरियाली अभियान के अन्य आयाम

1.संरक्षण वाटिका - पैसे पौधे जो लुप्तप्राय श्रेणी में आते हैं, जिनका संरक्षण आवश्यक है। इनमें प्रमुख पौधे इस

प्रकार हैं-

1. खिरनी।

2. बड़हल।

3. कैथा।

4. इमली।

5. लसोड़ा।

6.चिरौंजी।

7. खैर(कत्था)।

8. हरड़।

9. कमरख ।

2.फल वाटिका - फलदार पौध जो हमारे पर्यावरण के साथ हमारे स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी हैं-

1. आम।

2. जामुन।

3. बेल।

4. बेर।

5. शरीफा।

6. अमरूद।

7. केला।

8.पपीता।

9. नींबू।

10. अनार।

11. कटहल।

12. फालसा।

13. चीकू।

14.आडू। 15. लीची।

3.रसोई वाटिका रसोई वाटिका, गृहवाटिका या पोषण वाटिका के अंतर्गत औषधीय पुष्प, मसाले, फल एवं सब्जी के पौधे आते हैं। औषधीय पौधे तुलसी, ज्वरांकुश, गिलोय आदि आते हैं।पुष्प - पुष्पों की दृष्टि से जो हमारी दैनिक पूजा एवं पर्यावरण में सुन्दरता और सुगन्ध के साथ औषधीय गुणें से युक्त हों, जैसे गेंदा, गुलाब, गुड़हल, सदाबहार, रातरानी, चांदनी आदि ।मसाले - दैनिकउपयोग के मसालों में धनियां, पुदीना,लहसुन, सौंफ आदि।

फल - पपीता, अमरूद, अनार, अंगूर, आदि।


सब्जी - सब्जियों में टमाटर, बैगन, सेम, लौकी, कद्दू, तोरई, पालक, मेथी, सोया, गाजर, बीन्स, मूली, सलाद आदि का रोपण किया जा सकता है।

4. स्मृति वाटिका - परिवारों द्वारा अपने पूर्वजों की स्मृति में पौधा रोपण एवं परिवार द्वारा उन पौधों को गोद लेकर उनका संरक्षण एक महत्वपूर्ण कार्य पर्यावरण संरक्षण में सहायक सिद्ध हो सकता है।

5.स्वावलम्बन वाटिका ग्रामीण स्वरोजगार देने में सक्षम परम्परागत पौधे इस हेतु चुने गये हैं।

1. पलाश - इसका पुष्प टेशू राज्य पुष्प है, इसके पत्ते से दोना-पत्तल बनते हैं एवं गोंद विभिन्न अन्य उपयोग में आता है।

2. सहजन -सर्वाधिक पौष्टिक तत्वों से युक्त है, इसकी पत्ती एवं फल दोनों उपयोगी हैं।

3. महुआ - इसके फल से तेल मिलता है तथा फूल से विभिन्न खाद्य पदार्थ बनते हैं।

4. बाँस- जीवन के हर आयाम में उपयोगी, सर्वाधिक कार्बन डाईआक्साईड का अवशोषक ।

5. शहतूत - रेशम का कीड़ा पाला जाता है तथा फल पौष्टिकता से भरपूर होते हैं। इसकी छड़ों से डलिया बनाई जाती हैं।

विशेष अभियान : हरीशंकरी माला अभियान उत्तर प्रदेश में चार चौरासी कैसी परिक्रमा पथ हैं- जिसमें

1. अयोध्या।

2. मथुरा।

3. चित्रकूट।

4.नैमिषारण्य हैं। इनके परिक्रमा पथ पर लोक भारती ने निश्चित किया है कि प्रत्येक कोस पर हरिशंकरी का रोपण कर कोस पड़ाव सुनिश्चित किया जायेगा

Shalini Rai

Shalini Rai

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