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अखिलेश के ‘मिशन कांशीराम‘ को मायावती के ये पुराने साथी देंगे धार, सपा सुप्रीमो ने 2024 के लिए बनाया बड़ा प्लान

samajwadi party: यूपी में 22 प्रतिशत दलित वोट हैं। अब सपा अध्यक्ष की नजर इन वोटों पर है। 2014 का लोकसभा चुनाव हो या 2017 का विधानसभा या 2019 का लोकसभा या 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव। इन चुनावों में काफी दलित वोट भाजपा के पक्ष में पड़ा था। अब अखिलेश इन्हीं वोटों में सेंध लगाकर सबको मात देने की फिराक में लगे हैं।

Ashish Pandey
Published on: 6 April 2023 12:14 AM IST
अखिलेश के ‘मिशन कांशीराम‘ को मायावती के ये पुराने साथी देंगे धार, सपा सुप्रीमो ने 2024 के लिए बनाया बड़ा प्लान
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akhilesh yadav focous on dalit voters

samajwadi party: राजनीतिक पार्टिंया विकास की चाहे जितनी बातें करें, लेकिन चुनाव आते ही उनका यह राग बदल जाता है और वह जाति का जुगाड़ में जुट जाती हैं। ऐसा हो भी क्यों न क्योंकि उत्तर प्रदेश में जीत के लिए विकास से अधिक जाति का जुगाड़ मायने रखता है। अगर जाति का जुगाड़ पक्का तो समझो जीत पक्की।

यूपी में दलित वोट लगभग 22 प्रतिशत है। यह सबसे बड़ा वोट बैंक है। दलित वोट बसपा का वोट माना जाता रहा है, लेकिन भाजपा ने मायावती के इस वोट बैंक में सेंध लगा दी। 2014 का लोकसभा चुनाव हो या 2017 का विधानसभा या 2019 का लोकसभा या 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव। इन चुनावों में दलित वोट भाजपा के पक्ष में पड़ा। इससे भाजपा को केंद्र और यूपी दोनों जगहों पर बड़ा फायदा मिला। अब सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की नजर भी इन दलित वोटों पर है।

अपनी पकड़ मजबूत बनाने में जुटी सपा-

2024 में लोकसभा का चुनाव होने वाला है। अब अखिलेश यादव की अपने यादव-मुस्लिम आधार को बचाए रखते हुए दलित वोटों पर नजर है, उन्होंने दलित वोटों को जोड़ने की मुहिम शुरू की है, जिसे ‘मिशन कांशीराम‘ का नाम दिया गया है। इस मिशन के जरिए सपा सामाजिक आंदोलन खड़े कर दलित और अतिपिछड़े वर्ग के बीच अपनी पकड़ को मजबूत बनाने की कोशिश में जुट गई है।
यूपी की सियासत में सपा किसी बड़े पार्टी के साथ गठबंधन के मूड में नहीं दिख रही है। वह मिशन-2024 के लिए अभी से खास रणनीति पर काम कर रही है। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण कर ‘मिशन कांशीराम‘ की बुनियाद रख दी है। इसका साफ मतलब है कि अब अखिलेश की नजर यूपी के दलित वोटों पर है। सबसे बड़ी बात यह है कि मिशन कांशीराम को धार देने और आगे बढ़ाने का काम कांशीराम के ही सियासी प्रयोगशाला से निकले नेता करेंगे, जो कभी मायावती की ‘हाथी‘ पर सवार थे और अब हाथी की सवारी छोड़ सपा की ‘साइकिल‘ पर सवार हैं।

अखिलेश ने इन्हें सौंपी है जिम्मेदारी-

ये नेता यूपी के दलित और अतिपछड़े वर्ग के बीच जाकर कांशीराम के संदेश देंगे और इस तरह सपा की नई सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत बनाने का काम करेंगे। अखिलेश यादव ने इस मिशन की जिम्मेदारी स्वामी प्रसाद मौर्य, इंद्रजीत सरोज, रामअचल राजभर, लालजी वर्मा, आरएस कुशवाहा, त्रिभवन दत्त जैसे बसपा से सपा में आए नेताओं को दे रखी है।

कांशीराम पर ठोका दावा-

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सोमवार को रायबरेली के मान्यवर कांशीराम महाविद्यालय में बसपा के संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करते हुए उनकी विरासत पर दावा ठोक दिया है। उन्होंने कहा कि कांशीराम के अनुयायी अब हमारे साथ हैं। ये सभी एक समय बसपा में नंबर वन थे और अब सपा में सामाजिक आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं। इस दौरान उन्होंने दलित और पिछड़ों को हक दिलाने की दुहाई देते हुए कहा कि कांशीराम और नेताजी मुलायम सिंह यादव के संकल्प को सपा पूरा करेगी। सामाजिक समरसता कायम करते हुए 2024 में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करेगी और दलितों, पिछड़ों को हक दिलाएगी।
रायबरेली में सपा अध्यक्ष ने जिस तरह सधे हुए अंदाज में बार-बार सामाजिक आंदोलन की दुहाई दी थी, उससे साफ तौर पर सपा के भविष्य की सियासत को समझा जा सकता है। अखिलेश यादव यह जानते हैं कि कांशीराम ने दलितों के बीच राजनीतिक चेतना जगाने के लिए सामाजिक आंदोलन का सहारा लिया था। इसीलिए उन्होंने जोर देकर कहा कि कांशीराम के सपनों को पूरा करने की बारी और इसके लिए नए सामाजिक आंदोलन की जरूरत है।

कांशीराम के बहाने दलित सियासत-

अखिलेश यादव ने कहा कि कांशीराम कई जगह से चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें नेताजी ने समाजवादियों के साथ मिलकर इटावा से लोकसभा भेजा। उनके लोकसभा में जाने के बाद ही प्रदेश में नई राजनीति की शुरुआत हुई। अखिलेश ने इटावा से कांशीराम को लोकसभा में भेजने का जिक्र ऐसे ही नहीं किया, बल्कि इसके पीछे बड़ा सियासी मकसद भी छिपा है। अखिलेश ने यह भी दोहराया कि वे कांशीराम के बताए रास्ते पर चलकर समतामूलक समाज की स्थापना के लिए संकल्पित हैं और कांशीराम के साथ काम कर चुके नेता ही सपा के इस आंदोलन को आगे बढ़ाने का काम करेंगे।

...तो भाजपा से मुकाबला आसान हो जाएगा-

अब सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर इंद्रजीत सरोज तक सामाजिक आंदोलन की बात कर रहे हैं। उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती पर मिशन कांशीराम से भटकने के आरोप लगाकर दलितों के बीच संदेश देने का प्रयास किए। इस तरह से देखा जाए तो समाजवादी पार्टी दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश में जुट गई है। सपा की यह रणनीति है कि 2022 के चुनाव में मिले करीब 36 फीसदी वोट बैंक में पांच से सात फीसदी अतिरिक्त वोट जुड़ जाए तो बीजेपी से मुकाबला आसान हो जाएगा। सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र से शुरू मिशन कांशीराम इसी रणनीति का हिस्सा है।

अखिलेश के ये नेता देंगे मिशन को धार-

यह तय है कि ‘मिशन कांशीराम‘ के जरिए सामाजिक आंदोलन को कांशीराम की प्रयोगशाला से निकलने वाले नेता ही चला सकते हैं। इस बात को सपा प्रमुख अच्छी तरह जानते हैं और इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इस मिशन का जिम्मा स्वामी प्रसाद मौर्य, इंद्रजीत सरोज, रामअचल राजभर, लालजी वर्मा, आरएस कुशवाहा, त्रिभवन दत्त जैसे पुराने बसपाई जो अब सपा में हैं। इन्हें सौंप रखा है। अखिलेश का कहना कि सामाजिक न्याय के आंदोलन को समाजिक परिवर्तन के पड़ाव से आगे ले जाकर हर गरीब, दलित, पिछड़े एवं अल्पसंख्यक को उसके हक की मंजिल तक पहुंचाना ही हमारा लक्ष्य है।

सपा एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य 8 अप्रैल को प्रतापगढ़ में सामाजिक रैली करने जा रहे हैं। इसी तरह रामअचल राजभर, इंद्रजीत सरोज, लालजी वर्मा, आरएस कुशवाहा, त्रिभुवन दत्त अलग-अलग इलाके की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जानकारों की माने तो कांशीराम की बहुजन सियासत के जरिए ही बीजेपी से मुकाबला किया जा सकता है और उनके सामाजिक न्याय के मिशन पर चलकर ही दलित-पिछड़ों को हक दिलाया जा सकता है।

...तो भाजपा-बसपा के लिए खड़ा हो जाएगा संकट-

अब अखिलेश यादव ‘मिशन कांशीराम‘ के जरिए दलित वोटों को अपने पक्ष में करने में कितना कामयाब होते हैं यह तो समय ही बता पाएगा, लेकिन इतना तय है कि अगर अखिलेश यादव प्रदेश के 22 प्रतिशत दलित वोटों में से 10 प्रतिशत वोट भी अपने पाले में खींच लाए तो भाजपा और बसपा दोनों के लिए बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। दलित वोट को बसपा का वोट माना जाता है, लेकिन इस वोट बैंक में भाजपा ने सेंध लगा रखी है। अब सपा की नजर भी मायावती के इस वोट बैंक पर है। देखना यह होगा की अखिलेश यादव इस वोट बैंक को किस हद तक अपने पाले में लाने में कामयाब हो पाते हैं।



Ashish Pandey

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