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Mission 2024: आखिर क्यों अखिलेश को छोड़ भाजपा से हाथ मिलाने को बेताब हैैं जयंत, RLD को नए गठबंधन से क्या होगा फायदा
Mission 2024: रालोद मुखिया जयंत चौधरी की भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ चल रही बातचीत के बाद सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिरकार जयंत चौधरी भाजपा से हाथ मिलाने को इतने बेताब क्यों हैं और नए गठबंधन से रालोद को क्या फायदा होगा।
Mission 2024: लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा विपक्षी खेमे में बड़ी सेंऋमारी की कोशिश में जुटी हुई है। बिहार में नीतीश कुमार को तोड़ने के बाद अब उत्तर प्रदेश बड़ी तोड़फोड़ की तैयारी है। समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के ऐलान के बाद अब राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के मुखिया जयंत चौधरी की भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर बातचीत अंतिम दौर में पहुंच चुकी है। जानकारों का कहना है कि जल्द ही आरएलडी एनडीए का हिस्सा बन सकती है। एक-दो दिनों के भीतर इस बाबत बड़ा ऐलान किया जा सकता है।
रालोद मुखिया जयंत चौधरी की भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ चल रही बातचीत के बाद सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिरकार जयंत चौधरी भाजपा से हाथ मिलाने को इतने बेताब क्यों हैं और नए गठबंधन से रालोद को क्या फायदा होगा। समाजवादी पार्टी की ओर से जयंत को सात सीटें देने की बात कही गई थी जबकि भाजपा की ओर से उन्हें लोकसभा की चार और राज्यसभा की एक सीट दिए जाने की चर्चा है। वैसे जयंत के भाजपा से हाथ मिलाने से पश्चिम उत्तर प्रदेश की सियासत पर बड़ा असर पड़ना तय है।
पिछले दो चुनावों में रालोद को नहीं मिली कामयाबी
2019 के लोकसभा चुनाव में जयंत चौधरी की पार्टी रालोद ने सपा-बसपा के साथ गठबंधन में तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था मगर तीनों सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। बागपत से जयंत चौधरी को भाजपा के सत्यपाल मलिक के हाथों 23,000 वोटो से हार का सामना करना पड़ा था। मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र में अजित सिंह को भाजपा के संजीव बालियान ने 6500 से अधिक वोटों से हरा दिया था जबकि मथुरा में रालोद के कुंवर नरेंद्र सिंह भाजपा की उम्मीदवार हेमामालिनी के हाथों पराजित हुए थे।
इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में रालोद ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में आठ लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और सभी सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। बागपत से अजित सिंह और मथुरा से जयंत चौधरी को भी हार का सामना करना पड़ा था। राकेश टिकैत,अमर सिंह और जयाप्रदा जैसे दिग्गज उम्मीदवार भी 2014 में नहीं जीत पाए थे। इस तरह पिछले दो लोकसभा चुनाव में 11 सीटों पर चुनाव लड़कर रालोद को एक पर भी जीत हासिल नहीं हुई थी।
आखिर क्यों पलटी मार रहे जयंत
अब आने वाले चुनाव को लेकर जयंत चौधरी भी अपना समीकरण दुरुस्त करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। उन्हें इस बात की बखूबी जानकारी है कि जब सपा,बसपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन में रालोद को एक भी सीट हासिल नहीं हो सकी तो ऐसी स्थिति में सिर्फ सपा के साथ अलायंस में चुनाव लड़ना ज्यादा फायदेमंद साबित नहीं होगा। इस बार बसपा ने पहले ही अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा का अच्छा खासा जनाधार है।
इसके साथ ही राम मंदिर के उद्घाटन के बाद पश्चिम उत्तर प्रदेश का जाट समाज भी राम भक्ति में डूबा हुआ है। इसके साथ ही आरएलडी नेता भी इस बात को जानते हैं कि बीजेपी से किसानों समेत अन्य मुद्दों को लेकर जो नाराजगी थी, उसे दूर कर दिया गया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी नेताओं का एक बड़ा वर्ग भाजपा के साथ गठबंधन की वकालत भी कर रहा है।
सपा के साथ अलायंस से नाराजगी
सपा के साथ रालोद के अलायंस में सात सीटों पर चर्चा हुई थी मगर इनमें से तीन सीटों मुजफ्फरनगर, कैराना और बिजनौर में सपा रालोद के सिंबल पर अपना प्रत्याशी लड़ना चाहती है। इसे लेकर रालोद का एक धड़ा खासा नाराज है और बगावती तेवर दिखा रहा है। मुजफ्फरनगर में प्रत्याशी को लेकर दोनों दलों के बीच जबर्दस्त खींचतान दिख रही है। मुजफ्फरनगर में सपा हरेंद्र मलिक को चुनाव लड़ना चाहती है जो कि रालोद नेताओं को मंजूर नहीं है।
हरेंद्र मलिक जिन दिनों कांग्रेस में थे तो उनकी चौधरी परिवार के साथ खासी अदावत रही है। ऐसे में उनका नाम जयंत चौधरी को भी मंजूर नहीं है। मुजफ्फरनगर चौधरी परिवार की सीट मानी जाती रही है और ऐसे में जयंत इस सीट पर खुद या अपने किसी करीबी को चुनाव लड़ाना चाहते हैं। रालोद कार्यकर्ताओं की ओर से पार्टी के सिंबल पर सपा नेताओं को चुनाव लड़ाने का काफी विरोध किया जा रहा है।
भाजपा ने रालोद को क्या दिया प्रस्ताव
जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा की ओर से रालोद को लोकसभा की चार सीटें और राज्यसभा की एक सीट देने का प्रस्ताव किया गया है। दोनों दलों के बीच गठबंधन की स्थिति में उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर जल्द होने वाले राज्यसभा चुनाव में एक सीट जयंत की पार्टी को दी जा सकती है। जानकार सूत्रों के मुताबिक गठबंधन के मुद्दे पर दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व के बीच बातचीत जारी है और जल्द ही समझौते पर मुहर लगा सकती है। माना जा रहा है कि एक-दो दिनों में इस बाबत घोषणा की जा सकती है। दूसरी ओर जयंत भी इंडिया गठबंधन से दूरी बनाते हुए दिख रहे हैं।
जानकारों के मुताबिक भाजपा की ओर से रालोद को कैराना, बागपत, मथुरा और अमरोहा सीट का ऑफर दिया गया है। भाजपा की ओर से भले ही चार सीटों का ऑफर दिया गया है मगर जयंत इसमें दिलचस्पी इसलिए दिखा रहे हैं क्योंकि भाजपा के साथ गठबंधन में उनकी पार्टी की जीत की संभावना अधिक दिख रही है।
भाजपा-रालोद की नजदीकी से सपा में बेचैनी
भाजपा और रालोद के बीच नजदीकी बढ़ने की चर्चाओं के बीच से समाजवादी पार्टी में बेचैनी दिख रही है। समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि भाजपा और रालोद के बीच चल रही बातचीत के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है।
उन्होंने कहा कि रालोद के साथ हमारा सात सीटों पर समझौता हो चुका है और जयंत चौधरी ने भी इस पर सहमति जताई है। समाजवादी पार्टी ने जयंत चौधरी को भी राज्यसभा में भेजा है। विपक्षी गठबंधन इंडिया की बैठकों में भी जयंत चौधरी लगातार हिस्सा लेते रहे हैं। ऐसे में सपा से उनकी नाराजगी का कोई सवाल ही नहीं है।