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Deoria Loksabha Election 2024: देवरिया लोकसभा सीट पर अखिलेश प्रताप सिंह ने बढ़ाई बीजेपी की मुश्किलें
Deoria Lok Sabha Election Results 2024: बसपा सरकार में जिले की बंद चीनी मिलें हर चुनावों में मुद्दा तो बनती हैं लेकिन चुनाव बाद उस पर कोई चर्चा नहीं होती।
Deoria Lok Sabha Election 2024: यूपी के देवरिया लोकसभा सीट पर आखिरी चरण में मतदान होना है। सभी राजनीतिक दलों ने प्रचार में ताकत झोंक दी है। बीते चुनावों के मुकाबले अबकी चुनाव में आमने-सामने का है। कभी जीत की गारंटी माने जाने वाली बसपा अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है। देवरिया लोकसभा सीट पर इस बार भाजपा और इंडिया गठबंधन में सीधा टक्कर देखने को मिल रहा है। कांग्रेस उम्मीदवार अखिलेश प्रताप सिंह के लिए प्रदेश अध्यक्ष अजय राय और सपा प्रमुख अखिलेश यादव जनसभा कर चुके हैं। जबकि भाजपा उम्मीदवार शशांक मणि त्रिपाठी के लिए सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सुभासपा प्रमुख व मंत्री ओम प्रकाश राजभर के अलावा राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा भी जनसभा को संबोधित कर चुके हैं। इनके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा भी प्रस्तावित है। वहीं बसपा की तरफ़ से अभी कोई स्टार प्रचारक नहीं आया है।
भाजपा उम्मीदवार शशांक मणि त्रिपाठी को मोदी और योगी पर विश्वास
भाजपा उम्मीदवार शशांक मणि त्रिपाठी के पिता पूर्व सांसद जनरल श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने इस सीट पर पहली बार कमल खिलाया था। फिलहाल शशांक मणि त्रिपाठी अपने एनजीओ जागृति जनसेवा संस्थान के माध्यम से समाज सेवा करते हैं। क्षेत्र में अच्छा खासा पहचान है। उनको अपने सजातीय वोटबैंक के साथ मोदी और योगी द्वारा चलाए जा रहे जनहित योजनाओं के लाभार्थी मतदाताओं पर विश्वास है। लेकिन देवरिया में 2014 से लगातार भाजपा का सांसद होने के बावजूद शहर का उस हिसाब से विकास न हो पाने के कारण एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ रहा है। 2014 में कलराज मिश्र यहां से सांसद बनने के बाद मोदी सरकार में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्री नियुक्त हुए लेकिन देवरिया में कोई खास फैक्ट्री नहीं स्थापित कर पाए जिससे की यहां के लोगों को रोजगार का अवसर मिल सके।
कांग्रेस उम्मीदवार अखिलेश प्रताप सिंह को एंटी इनकंबेंसी पर विश्वास
कांग्रेस उम्मीदवार अखिलेश सिंह देवरिया के रूद्रपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। उनके कार्यकाल में विधानसभा क्षेत्र में करवाए गए विकास कार्यों की चर्चा पूरे जिला में होती है। लेकिन 2017 के चुनाव में भाजपा लहर के दौरान उनको हार का सामना करना पड़ा था। फिलहाल पार्टी में राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। वे अपने कार्यकाल में किए गए विकास कार्यों के अलावा वर्तमान सरकार के खिलाफ चल रही एंटी इनकंबेंसी को भुनाने में लगे हुए हैं। इसके अलावा मोदी सरकार द्वारा लागू की गई अग्निवीर योजना, किसानों के मुद्दे और तत्कालीन सांसद कलराज मिश्र द्वारा शिलान्यास करने के बावजूद आज तक नहीं बने केंद्रीय विद्यालय अहम मुद्दा है।
बसपा उम्मीदवार संदेश यादव को सजातीय वोट में सेंध लगानी चुनौती
बसपा ने युवा नेता संदेश यादव को टिकट देकर यादव कार्ड खेला है। संदेश यादव पूर्व विधायक स्व आनंद यादव के बेटे हैं और वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य हैं। संदेश यादव पुराने बसपाई है। इनके पिता आनंद यादव देवरिया के सलेमपुर विधानसभा सीट से 1993 में बसपा से विधायक रहे हैं। बाद में आंनद ने सपा की सदस्यता ली और फिर कांग्रेस में आ गए। देवरिया लोकसभा क्षेत्र के खुखुन्दू गांव के मूल निवासी संदेश वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य हैं। इसके पहले वह अपने गांव खुखून्दू के प्रधान रह चुके हैं। इसके पूर्व वह कांग्रेस में थे। बाद में उन्होंने बसपा की सदस्यता ले ली। संदेश यादव अगर सजातीय वोट में सेंध लगाने में सफल रहे तो बसपा जहां भाजपा के साथ कथित अंदरुनी गठबंधन को पुख्ता करने में कामयाब होगी वहीं इंडिया गठबंधन के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है।
बंद चिनी मिलें हर चुनावों में बनती हैं मुद्दा
बसपा सरकार में जिले की बंद चीनी मिलें हर चुनावों में मुद्दा तो बनती हैं लेकिन चुनाव बाद उस पर कोई चर्चा नहीं होती। कभी यहां के किसानों का मुख्य फसल गन्ना था। लेकिन देवरिया, बैतालपुर और भटनी के चिनी मिलें बंद होने के बाद यहां के किसानों का गन्ना की फसल से मोहभंग हो गया। यहां इस बार नौकरी, मंहगाई और रोजगार अहम मुद्दा है। इसके अलावा सरकारी भर्तियों में पेपर लीक होने की घटना से युवाओं में आक्रोश है। यहां के अधिकतर युवा रोजगार और नौकरी के लिए दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों पर निर्भर हैं। इसके अलावा जिला अस्पताल की भी हालत बेहतर नहीं है। यहां के लोग इमरजेंसी में गोरखपुर, वाराणसी और लखनऊ के अस्पतालों में इलाज के लिए निर्भर हैं।
देवरिया लोकसभा क्षेत्र का जातीय समीकरण
अगर देवरिया लोकसभा क्षेत्र की जातीय समीकरण की बात करें तो एक अनुमान के मुताबिक यहां ब्राह्मण 27 फीसदी, अनुसूचित जाति 14 फीसदी, अल्पसंख्यक 12 फीसदी, यादव 8 फीसदी, वैश्य 8 फीसदी, सैंथवार 6 फीसदी, कुर्मी 5 फीसदी, क्षत्रिय 5 फीसदी, कायस्थ 4 फीसदी, राजभर 4 फीसदी, निषाद 3 फीसदी हैं। इनके अलावा कुम्हार, चौहान और अन्य को मिलाकर करीब 4 फीसदी मतदाता हैं। जातीय गुणा गणित के आधार पर किसके गले में जीत का माला पड़ेगा अब यह तो 4 जून को पता चलेगा।