TRENDING TAGS :
पश्चिमी उप्र में उलटफेर को तैयार बसपा, दूसरे राज्यों में भी किया गठबंधन
पश्चिमी उप्र में उलटफेर को तैयार बसपा, दूसरे राज्यों में भी किया गठबंधन
ब्यूरो
लखनऊ। देश में हो रहे लोकसभा चुनाव में सबकी निगाह जहां एक तरफ यूपी मे लगी है वहीं प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर भाजपा को रोकने के लिए मायावती, अखिलेश और अजित सिंह के एक साथ आने के बाद पूरे देश की निगाहें इस गठबंधन पर टिकी है। गठबंधन की भूमिका में मायावती की बहुजन समाज पार्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ बड़ा उलटफेर कर सकती है। प्रदेश के सहारनपुर, बिजनौर, नगीना (सुरक्षित), अमरोहा, मेरठ, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर (सुरक्षित), अलीगढ़, आगरा (सुरक्षित), फतेहपुर सीकरी, आंवला, शाहजहांपुर (सुरक्षित) सीटों पर भाजपा का सीधा मुकाबला बसपा से होने की पूरी संभावना बताई जा रही है। इनमें से कुछ सीटों पर कांग्रेस की ताकत से त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है।
पिछले साल दिसम्बर में तीन हिन्दी भाषी राज्यों में मिली सफलता से बहुजन समाज पार्टी एक नई स्फूर्ति के साथ चुनाव मैदान में है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में बढ़े मत प्रतिशत से जहां राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म होने का संकट से निजात मिली,वहीं चुनावी नतीजों से बसपा सुप्रीमो मायावती को मानो संजीवनी मिल गई। एक ओर बसपा भाजपा और कांग्रेस को अपने तेवर दिखा रही है तो दूसरी ओर उसने सपा को भी अपने रंग में रंग लिया है।
इससे पूर्व बसपा ने यूपी में तीन लोकसभा सीट पर सपा को समर्थन देकर भाजपा की गणित बिगाडऩे का प्रयास किया है। इसके बाद हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल से गठबंधन किया है। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी की पार्टी से गठबंधन किया। बसपा को छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में 3.8 फीसदी मतों के आधार पर दो सीटें जीतने में सफलता मिली। मध्य प्रदेश में बसपा को 4.8 प्रतिशत वोट मिला और मात्र दो सीटें ही मिल पाईं जबकि पिछले चुनाव में बसपा को यहां चार सीटें मिली थी। राजस्थान में जहां बसपा ने अपना मत प्रतिशत चार फीसदी तक पहुंचाया है, वहीं पिछली बार की अपेक्षा तीन सीटों के मुकाबले छह सीटें जीती हैं। मायावती ने एक रणनीति के तहत इन राज्यों के विधानसभा चुनावों में न तो मध्य प्रदेश में गठबंधन किया और न ही छत्तीसगढ़ में। छत्तीसगढ़ में बसपा मुखिया ने कांग्रेस की जगह नई पार्टी बनाने वाले अजित जोगी की पार्टी से गठबंधन करना ज्यादा उचित समझा।
2014 में मिली थी करारी हार
2014 में कुल 80 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव हुए थे जिसमें भाजपा ने 71 और गठबंधन में शामिल अपना दल ने दो सीटें जीतीं। इस प्रकार भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन को रिकॉर्ड तोड़ 73 सीटें मिलीं जबकि दो सीटें कांग्रेस और पांच सीटें समाजवादी पार्टी को मिलीं और बसपा का खाता तक नहीं खुला था। वहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में 23.26 प्रतिशत वोट शेयर के साथ समाजवादी पार्टी को 23, कांग्रेस को 18.25 प्रतिशत वोट बैंक के साथ 21 और भाजपा को 17.50 प्रतिशत वोट शेयर के साथ दस सीटें मिलीं थीं। जबकि रालोद के खाते में पांच लोकसभा सीटें आईं थीं। 1996 में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बाद बसपा को महसूस हुआ था कि कांग्रेस के साथ गठबंधन कर कोई फायदा नहीं हुआ जबकि 2017 में समाजवादी पार्टी के लिए कांग्रेस फायदेमंद नहीं साबित हुई।
पश्चिमी यूपी में मिलता रहा है चुनावी लाभ
बहुजन समाज पार्टी को पश्चिमी उप्र में चुनावी लाभ मिलता रहा है। दलितों पर बीएसपी, जाटों पर आरएलडी और भाजपा, मुस्लिमों पर सपा-बसपा-रालोद और कांग्रेस का दावा आमतौर पर माना जाता है। बसपा के एक पदाधिकारी का कहना है कि वेस्ट यूपी की करीब 35 प्रतिशत सीटों पर मुस्लिम मत निर्णायक हैं। जनसंख्या में मुस्लिमों की आबादी करीब 19 फीसदी है। शहरी इलाकों में करीब 32 और ग्रामीण इलाकों में 16 फीसदी है। यूपी में 13 लोकसभा सीटों पर मुस्लिमों की आबादी 30 फीसदी या उससे ज्यादा है। मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर में 40 फीसदी से ज्यादा मुसलमान हैं। रामपुर में 50 फीसदी से ऊपर मुस्लिमों की तादाद है। कैराना में 35 फीसदी से ज्यादा, मेरठ में 30 से ज्यादा, बागपत व गाजियाबाद में 25 से ज्यादा, नगीना और बरेली ऐसे जिले है जहां एक तिहाई मुस्लिम हैं। संभल में 70 फीसदी हैं। सिर्फ गौतमबुद्धनगर और बुलंदशहर में 20 फीसदी से कम मुस्लिम हैं। यही कारण है कि इस बेल्ट पर मायावती की पैनी नजर है।
Next Story