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Azamgarh Loksabha Election 2024: आजमगढ़ लोकसभा सीट को जीतने के लिए सपा ने चली यह चाल ?
Azamgarh Loksabha Election 2024 Analysis: आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव सपा की खोई हुई पारंपरिक सीट को वापस हासिल करने के लिए पुरजोर कोशिश करते दिख रहे हैं।
Azamgarh Loksabha Election 2024 Analysis: पूर्वांचल की आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में सियासी तपिश बढ़ गई है। सियासत और साहित्य के गढ़ में सपा और भाजपा के लिए यह चुनाव साख की लड़ाई बन गई है। हाल ही में यहां एयरपोर्ट शुरू होने से विकास को उड़ान मिलने की उम्मीद बढ़ गई है, हालांकि जातीय समीकरण की जड़ें इतनी गहरी हैं कि अन्य मुद्दे छोटे दिख रहे हैं। इस सीट से 14 बार यादव तो तीन बार मुस्लिम चेहरे दिल्ली पहुंच चुके हैं। लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के बावजूद मुलायम सिंह यादव यहां से सांसद बने थे। इस सीट से 2019 में बसपा के समर्थन से सपा के अखिलेश यादव भारी मतों से जीते थे। इस बार इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे धर्मेंद्र यादव सपा की खोई हुई पारंपरिक सीट को वापस हासिल करने के लिए पुरजोर कोशिश करते दिख रहे हैं। जबकि भाजपा के मौजूदा सांसद दिनेश लाल यादव निरहुआ मूल रूप से गाजीपुर के हैं। इस सीट से तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। अपनी कुर्सी को बरकरार रखने के लिए जद्दोजहद करते दिख रहे हैं। निरहुआ लगातार रूठे कार्यकर्ताओं के बीच अपनी उपस्थिति दर्शा कर मनाने के अलावा यादव मतदाताओं को अपनी ओर मोड़ने की चुनौती है। इसके अलावा जनता के बीच जाकर विकास कार्यों को गिनाकर और सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को वोट में तब्दील करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा के कई दिग्गज नेताओं का यहां दौरा जारी है।
गुड्डू जमाली के सपा में जाने से भाजपा का समीकरण हुआ खराब
मुलायम और अखिलेश से जुड़ी इस सीट को जीतना सैफई परिवार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। सपा के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव मूल रूप से सैफई के हैं और आजमगढ़ लोकसभा सीट पर दूसरी बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। सपा के बिखरे मतदाताओं को एकजुट करना उनकी सबसे बड़ी चुनौती है। मुस्लिम-यादव मतदाताओं का सपा की ओर झुकाव इनका मजबूत पक्ष है। इसको देखते हुए सपा ने चुनाव से पहले शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को विधान परिषद का सदस्य बनाकर बड़ा दांव खेला है। बता दें कि 2022 के उपचुनाव में बसपा के उम्मीदवार रहे शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को 27.81 प्रतिशत वोट मिले थे, जो उपचुनाव में सपा नेता धर्मेंद्र यादव की हार का बड़ा कारण बना था। इस बार जमाली के समर्थकों को साधने के अलावा सपा यादव और अन्य मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करती दिख रही है। पांच विधानसभा क्षेत्रों में सपा का विधायक होना भी इनकी ताकत है। चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव और डिंपल यादव ने चुनावी जनसभा की है। इनके अलावा शिवपाल यादव कई दिनों से क्षेत्र में सक्रिय हैं।
बसपा के कमजोर उम्मीदवार से सपा और भाजपा को फायदा
बसपा ने अपने पहले उम्मीदवार भीम राजभर को आजमगढ़ से सलेमपुर शिफ्ट कर दिया है। इस बार पार्टी को कोई दमदार चेहरा नहीं मिला है। इससे सपा और भाजपा राहत महसूस कर रहे हैं। बसपा ने सबीहा अंसारी को उम्मीदवार बनाया। फिर दो दिन बाद ही पार्टी ने उनका टिकट काटकर उनके पति मशहूद अहमद को टिकट दे दिया। मशहूद अहमद का नाम राजनीति में कभी किसी ने सुना भी नहीं था। ऐसे उम्मीदवार को बसपा द्वारा मैदान में उतारने से सपा और भाजपा दोनों की टेंशन बढ़ गई है। अब दोनों दलों को दलित वोटों में बिखराव की चिंता सताने लगी है। क्योंकि अगर यह दलित मतदाता सपा और भाजपा में से किसी के साथ जुड़े तो दूसरी पार्टी को खतरा हो सकता है। जिसे देखते हुए दोनों पार्टियों की नजर अब दलित मतदाताओं पर टिकी हुई है।
आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र का जातीय समीकरण
बता दें कि आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 18,60,786 है। अगर मतदाताओं का जातिवार आंकड़ा देखें तो लगभग 24 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 37 प्रतिशत पिछड़ा और अन्य पिछड़ा वर्ग, 27 प्रतिशत सवर्ण और लगभग 12 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। पिछड़ों में यादव और मुस्लिम मतदाताओं को सपा का कोर वोटर माना जाता है। जो इस बार एकजुट नजर आ रहा है।
आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के मुद्दे
आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में इस बार यहां की जनता बेरोजगारी और महंगाई को प्रमुख मुद्दा बता रही है। सठियांव सहकारी चीनी मिल समय से पहले बंद हो गई है। गन्ने का रकबा घटा, तो मिल भी घाटे में चली गई। नए उद्योग-धंधे शुरू हों, तभी लोगों को रोजगार बढ़ने की उम्मीद है। इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले पांच विधानसभा क्षेत्रों में से दो में लोगों को घाघरा की बाढ़ की विभीषिका भी झेलनी पड़ती है। ऐसे में प्रबुद्ध लोग वेटलैंड बनाकर जल प्रबंधन करने की बात उठा रहे हैं। इसके अलावा यहां के हुनरमंद बुनकरों की स्थिति मजदूरों से बदतर है। यहां के 20 हजार से अधिक बुनकर पलायन कर गए हैं। सरकार से मदद की उम्मीद लगाए बैठे हैं ताकि उनकी स्थिति सुधर सके।