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Lucknow: चित्रकार गोपाल सामंत रे की कला प्रदर्शनी का हुआ आयोजन, कैनवस पर बिखरा दिखा 'जंगलनामा'
Lucknow News Today: शनिवार को मॉल एवेन्यू स्थित होटल लेबुआ के सराका आर्ट गैलरी में नई दिल्ली के चित्रकार गोपाल सामत रे के एकल कला प्रदर्शनी का आयोजन हुआ।
Lucknow News: वर्तमान परिदृश्य बहुत ही भयानक है और अगर ऐसी ही स्थिति रही सभी उपस्थितयों का सामना करना पड़ सकता है। इन सबका बस एक ही कारण है कि सुन्दर और सृजनशील पृथ्वी पर इंसान ने अपनी जरूरतों से ज्यादा दोहन कर रहा है। मौसम बदल गए हैं, पृथ्वी के लगातार गर्म होने से प्रलय की स्थिति बढ़ती जा रही है। दिनों दिन बारिश की कमी होती जा रही है, ठण्ड कम पड़ रहे हैं। लगातार पेड़ों की कटाई से जंगल खत्म हो रहे और नदियों सूख रही है।
प्रकृति से प्रेम और पृथ्वी से प्रेम ही इसे बचा सकती है। ऐसी चिंताएं और समस्याओं की समय-समय पर वैज्ञानिकों के अलावा कलाकार और रचनात्मक लोग जताते और लोगों को सजग करते रहते हैं। इसी सन्दर्भ में शनिवार को मॉल एवेन्यू स्थित होटल लेबुआ के सराका आर्ट गैलरी में नई दिल्ली के चित्रकार गोपाल सामत रे के एकल कला प्रदर्शनी का आयोजन हुआ। जिसका उदघाटन आईएएस मनोज सिंह (एसीएस. इनवायरमेंट, फारेस्ट एंड क्लाइमेट कंट्रोल) के द्वारा किया गया। इस प्रदर्शनी की क्यूरेटर वंदना सहगल हैं जो नवनीत सहगल की वाइफ हैं। इस अवसर पर बाहर के कलाकार और कलाप्रेमी उपस्थित रहे।
क्यूरेटर वंदना सहगल ने बताया कि गोपाल सामंत रे का काम प्राकृतिक दुनिया और इसकी कोमलता में डूबा हुआ है और यही उनकी शैली और विषय को भी निर्धारित करता है। वह जंगलों और धनों में विचरते जानवरों, पक्षियों और प्रकृति को चित्रित करते हैं। लेकिन साथ ही उन्हें कक्रीट, कांच और बनावटी प्रकाश का मानवीय दुनिया के साथ भी जोड़ते है। वह एक शक्तिशाली बयान के रूप में दोनों के अलगाव को सामने लाते हैं। सामंत रे के कैनवस उज्ज्वल और आकर्षक हैं क्योंकि ज्वलंत रंग उनकी पोती का मुख्य आधार है।
पृष्ठभूमि में एक चिकनी चमक है जिसे वह अपने ऐक्रेलिक रंगों के माध्यम से सामने लाते है, जो कभी-कभी उसके द्वारा बनाई गई बनावट की गुणवत्ता से परेशान होता है। अग्रभूमि पर लगभग हमेशा एक जानवर या पक्षी होता है, जो अपने यथार्थवादी प्रतिपादन के साथ जीवत होते है और जो कभी-कभी अति यथार्थवाद की सीमा में होता है। रंगों के विपरीत, प्रकृति के चित्रों की तरह विस्तृत जीवन के साथ पृष्ठभूमि की चिकनाई जानवरों की दुनिया के दृष्टिकोण से दर्द उनके विस्थापन को भी बाहर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके अधिकांश कार्यों में बिजली के बल्ब, दीपक, रेलिंग, कंक्रीट कॉलम फर्नीचर ट्रांसफॉर्मर आदि वस्तुओं जैसे जानवरों के साथ उनके संकुचित दुनिया को प्रदर्शित करने के लिए एक आदर्श का उपयोग किया जाता है।
उनकी रचनाओं में अतियथार्थवादी आदोलन के साथ तालमेल है। क्योंकि उनकी रचनाओं में "विचित्र" का भाव है। ऐसा कहने के बाद उनकी कला में रंग, पृष्ठभूमि और अंतिम परिणाम के संदर्भ में एक अमूर्त घटक भी है। क्योंकि कलाकार द्वारा परिप्रेक्ष्य की भावना को कम करके आंका गया है। गोपाल सात अपनी शैली के माध्यम से दुनिया को सह-अस्तित्व का एक मजबूत संदेश देते हैं। और मनुष्य को अपने पर्यावरण के बारे में सावधान करते हैं।
प्रदर्शनी के कोऑर्डिनेटर भूपेद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि गोपाल सामंत रे मूलतः उड़ीसा के अढंगा जिला केंद्रणरा गाँव के रहने वाले हैं। पिछले लगभग 16 वर्षों से नई दिल्ली में रहते हुए कला सृजन कर रहे हैं। और अपनी विशेष चित्रात्मक शैली के कारण समकालीन कला जगत में स्थापित कलाकार के रूप में विख्यात है।
सामंत राय की गिनती उन कलाकारों में की जाती है, जिन्होंने अपने हस्ताक्षर स्वयं विकसित किए हैं और अपनी अलग पहचान के साथ उभर रहे हैं। इनके पास एक अपना दृष्टिकोण है। दृश्य को समझने के लिए और चित्रात्मक भाषा की एक अनैच्छिक समझ भी है। इनके चित्रों को समझने के लिए दर्शकों को ज्यादा संघर्ष करने की जरूरत नहीं पड़ती है।