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HC के लखनऊ बेंच के नए भवन में फाइलों की शिफ्टिंग के बाद होगा काम शुरू
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच की गोमतीनगर में बनी नई इमारत का शुभारंभ शनिवार को होगा। हालांकि न्यायिक कामकाज शुरू होने में अभी वक्त लगेगा।
लाखों फाइलों की शिफ्टिंग में लगेगा समय
-इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल एसके सिंह राठौर के मुताबिक शुभारंभ के बाद फाइलों की शिफ्टिंग में तेजी लाई जाएगी।
-साथ ही कम्प्यूटरीकरण का काम भी तेजी से किया जाएगा।
-हाईकोर्ट प्रशासन का प्रयास होगा कि जल्द से जल्द नई बिल्डिंग में न्यायिक कामकाज और सुनवाई का काम शुरू हो सके।
-राठौर ने कहा कि नई बिल्डिग में लाखों फाइलें लानी है और लाइब्रेरी भी शिफ्ट करनी है।
2009 में हुआ था शिलान्यास
-नई इमारत का शिलान्यास 2009 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस के.जी बालाकृष्णन ने किया था।
-आवश्यक फंड के अभाव में निर्माण कार्य में देरी हुई थी।
-तब तत्कालीन सीनियर जज जस्टिस उमानाथ सिंह ने केंद्र और राज्य सरकार को फटकार लगाकर जरूरी फंड जारी करने के लिए आदेश जारी किये थे।
-बिल्डिंग के निर्माण में समय-समय पर भ्रष्टाचार की बातें भी उठती रही हैं।
लखनऊ बेंच की शुरुआत और अहम फैसले
1925 में बनी चीफ कोर्ट ऑफ अवध से लेकर 1948 में लखनऊ बेंच की शुरू हुई यात्रा से अब तक बेंच ने कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं।
-1927 में चीफ कोर्ट ऑफ अवध ने अपील खारिज कर काकोरी ट्रेन डकैती केस में राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा दी थी। इस केस का ट्रायल, जज जेआर डब्ल्यू बेनेट ने किया था। अप्रैल 1927 में जज हैमिल्टन ने दो लोगों को छोड़ दिया था जबकि अठारह हो फांसी की सजा दी थी। देशभक्तों की ओर से पैरवी करने वाले वकील चंद्र भान गुप्ता बाद में सूबे के मुख्यमंत्री बने।
-2010 में रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद केस का फैसला दुनिया का अपने आप में सबसे बड़ा फैसला है। हिन्दू, मुस्लिम के पारस्परिक संबधों पर असर डालने वाले इस फैसले पर दुनिया की नजरे थीं। अंदेशा था कि कहीं फैसले से देश में गृहयुद्ध जैसी स्थिति न छिड़ जाए पंरतु फैसले ने ऐसा कुछ नहीं होने दिया। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।
-जस्टिस देवी प्रसाद सिंह की अध्यक्षता मे दो सदस्यीय पीठ ने फैजाबाद के गुमनामी बाबा के मामले में फैसला देकर सरकार को एक आयोग गठित करने का आदेश दिया था जिसके बाद आयोग अभी काम कर रहा है।