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Lucknow Crime: लखनऊ में खतरे की घंटी, अपराध के दलदल में उतर रहे युवा
Lucknow News: लखनऊ में आंकड़ों के अनुसार, 18 से 25 वर्ष के कई युवा पर एक से अधिक मामले दर्ज हैं।
Crime in Lucknow News: लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट के जो आकड़े सामने आए हैं, वो समाज और सूबे दोनों के लिए भयावाह हैं। इनको देखने पर पता चलता है कि पिछले एक वर्ष में जिन अपराधियों पर जिलाबदर की कार्यवाई हुई है, वो ऐसे युवा हैं जिनकी उम्र कालेज जाने और नौकरी करने की है। लेकिन वो अपराध के दलदल में धंसते चले गए।
लखनऊ क्राइम के क्या कहते हैं आकड़ें
18 नवंबर 2020 से 28 फरवरी 2022 के बीच के पुलिसिया आकड़ों पर नजर डालें तो नजर आता है कि 190 अपराधियों को जिलाबदर किया गया है। इसमें 18 से 30 की उम्र के 74 प्रतिशत युवा शामिल हैं इनमें 74 फीसदी 18 से 30 साल के युवक है।
लखनऊ में जिलाबदर हुए अपराधी और उनकी उम्र
- 190 अपराधियों में 140 ऐसे हैं जिनकी उम्र 18 से 30 साल है।
- 33 अपराधियों की उम्र 31 से 40 साल है।
- 13 अपराधियों की उम्र 41 से 50 साल हैं।
- 4 अपराधियों की उम्र 51 से 55 साल है।
आकड़ों को देखने पर पता चलता है कि 18 से 25 वर्ष के कई युवा ऐसे हैं जिनपर एक से अधिक मामले दर्ज हैं।
आपको बता दें राजधानी लखनऊ में पुलिस कमिश्नरी लागु होने के बाद एक डीसीपी नियुक्ति किया गया जिसका काम है कि वो अपराधियों पर जिलाबदर की कार्रवाई को अंजाम दे।
क्यों किया जाता है जिलाबदर
पुलिस के मुताबिक जिलाबदर करने का उद्देश्य ये होता है कि अपराधी 6 महीने जब अपनों से दूर जाता है। तब उसको सोचने और समझने का मौका मिलाता है कि अपराध करने के बाद वो अपनों से दूर हो गया है। और ये उसके और उसके परिवार के लिए सही नहीं ऐसे में वो अपराध की दुनिया से वापस निकल आया है। साथ ही उसकी अपराधिक प्रवत्ति के व्यक्तयों से भी दुरी बढती है। नए वातावरण में उसको सुधरने का मौका मिलता है।
जिलाबदर करना अपराध रोकने का सही तरीका नहीं
अपराधों पर लगाम कसने के लिए पुलिस अपराधियों पर गैंगस्टर एक्ट और गुंडा एक्ट सहित 6 महीने का जिलाबदर की कार्रवाई करती है। पुलिस का मानना है कि जिलाबदर करने से अपराधियों में अपराध से तौबा करने की भावना आती है। लेकिन ये कितना सही है। आकड़े ये नहीं बताते कि पिछले एक वर्ष में जिन्हें जिलाबदर किया गया उनमें से कितनों ने वापस लौट कर कोई अपराध नहीं किया है।
युवा किन अपराधों को दे रहे अंजाम
पिछले एक वर्ष में जिन युवाओं को जिला बदर किया गया उनपर हत्या, चोरी, मारपीट, डकैती और छेड़छाड़ के मामले दर्ज हुए हैं।
जिलाबदर करना सही नहीं
हाईकोर्ट लखनऊ के क्रिमिनल एडवोकेट शिवम वसिष्ठ कहते हैं कि जिलाबदर की कार्यवाई अमूमन चुनावी समय में होती है। लेकिन कमिश्नरी लागु होने के बाद लखनऊ में ये आम हो गई है। जब कोई अपराधी बार बार अपराध करता है ऐसे में पुलिस उसको जिलाबदर कर रही है। ताकि वो सुधर सके और अपराध से दूर रहे लेकिन ऐसे में अपराध से वो कितना दूर होगा ये किसे पता है। जिलाबदर समस्या का समाधान नहीं। अपराधी जिस जिले में जायेगा वहां से अपराध को अंजाम देगा। अक्सर ये देखा गया है कि अपराधी जिलाबदर होकर वहां अपराध कर रहा है।
शिवम कहते हैं कि जिलाबदर से बेहतर है कि अपराधी को जागरूक किया जाए। उसके परिवार को साथ बैठा के कौन्सिलिग़ की जाए। अधिकतर युवा भावनाओं में अपराध कर रहे हैं ऐसे में उनको मनोविज्ञानी सहायता मुहैया कराई जाए। ताकि वो समाज की मुख्यधारा में वापसी कर सके। उन्होंने बताया कि कई बार गैर-गंभीर अपराध में भी जिलाबदर कर दिया जाता है ये गलत है।