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Satish Chandra Mishra: बसपा महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र पार्टी से बाहर, पढ़ें पूरी खबर

Satish Chandra Mishra: बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती के बाद पार्टी में सबसे ताकतवर नेता और पार्टी महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र को पार्टी से बाहर निकाल दिया गया है

Shreedhar Agnihotri
Published on: 10 Jun 2022 2:07 PM GMT
Lucknow News In Hindi
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बसपा महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र। (Social Media)

Satish Chandra Mishra: बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती के बाद पार्टी में सबसे ताकतवर नेता और पार्टी महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र को पार्टी से बाहर निकाल दिया गया है। यह बात सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से वायरल हो रही है। इसे लेकर न तो पार्टी की तरफ से कुछ कहा गया है और न ही सतीश चन्द्र मिश्र ने कुछ कहा है। पर पार्टी की कम्पेनर लिस्ट में नाम न होने से इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं। दरअसल ऐसा पहली बार हुआ है जब पिछले बीस सालों से पार्टी के स्टार नेता कहे जाने वाले सतीश चन्द्र मिश्र का ही नाम इस लिस्ट में शामिल नहीं है।

बसपा (BSP) की ऑफिसियल वेबसाइट बीएसपीडॉटओआरजी काम नहीं कर रही है। पहले इस वेबसाइट पर पार्टी के पदाधिकारियों का पूर्ण विवरण होता था। लेकिन अब यह काम नहीं कर रही है। इसकी जगह बसपा ने अब बहुजन समाज पार्टी डॉटनेट ऑफिसियल हो गया है। इस वेबसाइट पर मात्र बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के अतिरिक्त किसी का भी विवरण नहीं है।

बसपा ने रामपुर छोडकर आजमगढ़ में अपने प्रत्याशी गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा

दरअसल प्रदेश की दो लोकसभा सीटों आजमगढ़ (Azamgarh) और रामपुर (Rampur) में हो रहे लोकसभा के उपचुनाव में बसपा ने रामपुर छोडकर आजमगढ़ में अपने प्रत्याशी गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा है। लेकिन उनके प्रचार के लिए नेताओं की जो सूची जारी हुई है उसमें सतीश चन्द्र मिश्र का नाम न होना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। बसपा सुप्रीमो मायावती के इस फैसले के पीछे पराम्परगत वोट बैंक को वापस लाने और सतीश चंद्र मिश्र से पीछा छुड़ाने की मंशा छिपी बताई जा रही है।

इससे पहले बसपा में सतीश चन्द्र मिश्र का कद बढ़ना तबशुरू हुआ था जब 2005 में उनके कहने पर ही मायावती ने पार्टी की नीति में जबर्दस्त बदलाव करते हुए ब्राम्हणों को पार्टी में जोड़ने का काम किया और इसका उन्हे लाभ मिला। बसपा अपने दम पर प्रदेश की सत्ता में पहली बार आई।इसके बाद 2007 से बसपा बहुजन से सर्वजन की विचार धारा में बदल गई। इसका यह नतीजा रहा है कि बसपा से धीरे-धीरे पिछड़ा वर्ग, मुस्लिम और दलित का मोहभंग शुरू हो गया। 2022 में हुए यूपी विधान सभा के चुनाव में बसपा का राजनीतिक पतन इतना हो गया कि मात्र एक विधायक ही जीत पाया।

यूपी में 22.5 प्रतिशत दलित वोट बैंक में से 10 फीसदी वोट भाजपा के साथ

परिणाम यह रहा कि यूपी में 22.5 प्रतिशत दलित वोट बैंक में से 10 फीसदी वोट भाजपा के साथ चला गया। इससे बसपा को काफी राजनीतिक नुकसान हुआ। जबकि बसपा के चाणक्य सतीश चंद्र मिश्र ने 2022 के विधान सभा चुनाव में अपने परिवार के साथ ही बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था, लेकिन उनकी यह मेहनत भी बसपा को नहीं जिता पाई।

बसपा सुप्रीमो ने पार्टी के अंदर सफाई अभियान छेड़ा

पार्टी के एक नेता ने बताया कि चुनाव परिणाम के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती को एहसास हो गया कि अगर सतीश चंद्र मिश्र पार्टी रहे तो राजनीतिक अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इसके बाद बसपा सुप्रीमो ने पार्टी के अंदर सफाई अभियान छेड़ा। जिसमें सबसे पहले सतीश चंद्र मिश्र के करीबी नकुल दुबे को बाहर का रास्ता दिखाया। इससे सतीश चंद्र मिश्र को संकेत मिल गए थे कि बसपा में उनका राजनीतिक खेल खत्म हो गया है।बताया जा रहा है कि बसपा आजमगढ़ की लोकसभा सीट पर फतेह के लिए खुद मैदान में उतरेंगी। एक विशाल रैली भी करेंगी। इस रैली के जरिए संदेश देंगी कि दलित और मुस्लिम अगर एक साथ आ जाएं तो भाजपा को शिकस्त दी जा सकती है। साथ ही बसपा से दूर हो रहे परम्परागत दलित वोट बैंक को थामा जा सके।

Deepak Kumar

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