Lucknow News: जानलेवा गर्मी से फूल और किसान दोनों झुलसे, फूल किसानों को अप्रैल में नहीं मिल रहे ग्राहक

हीट वेव के कारण फूल की खेती को काफी नुकसान हुआ है। वहीं, अप्रैल किसानों के लिए मुसीबत बना। जिसके कारण फूलों की खेती में काफी कमी देखी गई। इसके कारण फूलों की कीमतों में काफी बढ़ोतरी हुई है, जिससे फूलों की खरीददारी के लिए ग्राहक नहीं मिल रहे हैं।

Rishi Bharadwaj
Newstrack Rishi BharadwajPublished By Deepak Kumar
Published on: 11 May 2022 10:09 AM GMT
flower farmers trouble
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फूल किसानों के लिए मुसीबत बन आया अप्रैल।

Heat Wave affected Floriculture: जेठिया गर्मी में भी उतनी गमक नहीं होती साहेब जितना इस बार अप्रैल तपा के गया है। हम फूल उगाने और बेचने वालों पर कहर बन के टूटी है ये गर्मी। ये कहना है फूल बेचने वाले विजय सैनी का। विजय मलीहाबाद के अपने गांव से सुबह ४ बजे फूल लेकर मंडी के लिए निकले हैं। लेकिन 10 बजने को हैं किसी ग्राहक ने ख़रीदा नहीं। सिर्फ भाव पूछते हैं आगे निकल जाते हैं। फूल अच्छा नहीं है। ऐसे में एक माला बनाने में ही 1 किलो फूल लग रहा है। दाम बढ़ गया है माला का भी आज सिर्फ 1 माला बेच पाए हैं।

विजय कहते हैं हर किसी को बड़े फूल चाहिए। सस्ते भी चाहिए। गर्मी ने फूलों की फसल को झुलसा के रख दिया है। फसल कम हुई है। ऊपर से कीटनाशक, खाद और डीजल महंगा है। पिछले साल जो पौधा नर्सरी से 50 पैसे के हिसाब से ख़रीदा था वो इसबार 2 रु का मिला है। गर्मी की वजह से हर 10 से 15 दिन में सिचाई करनी पड़ी।

कहां कितना खर्च

श्रीनिवास बड़े कास्तकार हैं भरावन के.. उन्होंने बताया कुछ जमीन अपनी है। कुछ बटाई पर ले रखी है। जिनका किराया 10 हजार रुपये 10 बीघा के हिसाब से सालाना है। 1 लाख 20 से 50 हजार तक का खर्च होता है। खाद, सिचाई और कीटनाशक भी खरीदने होते हैं। लेकिन इसबार लागत भी निकालना मुश्किल हो रहा है। पहले कोरोना से बिक्री पर असर पड़ा और अब प्रचंड गर्मी ने तो तबाह ही कर दिया है। तीन साल हो गए इसी इंतजार में कि अबकी मुनाफा होगा।

मंडी में तय होते हैं दाम

श्रीनिवास ने बताया फूलों की कीमत तय नहीं होती मंडी में। जैसा फूल जाता वैसे ही उसकी कीमत तय होती है। माल आता है लेकिन क्वालटी अच्छी नहीं है। किराया बढ़ गया है। हमारे घर से लखनऊ फूल मंडी लगभग 34 किमी है। इसबार भाड़ा भी बढ़ गया। इसे भी हम फूल की कीमत में जोड़ते हैं। अभी भी गर्मी इतनी है कि रस्ते में भी पानी का छिडकाव करते रहना पड़ता है।

विकास ने बताया कि वो हर दिन ताजे फूल लेकर मनकामेश्वर मंदिर जाते हैं। लेकिन हर दिन रेट बढ़ते ही जा रहे हैं।

फ्लोरिस्ट सुधीर का कहना है कि जो बुके 100 का था, वो अब 130, 150 वाला 180 और 250 वाला हमें 290 के आसपास पड़ रहा है। इससे भी ग्राहक कम हो रहे क्योंकि हमें भी घर चलाना है। ऐसे में कुछ पैसे हमें भी चाहिए। मंडी चढ़ गई है। क्या कर सकते हैं?

यहाँ होती है फूलों की खेती

बक्शी का तालाब भरावन, मोहान, मलीहाबाद काकोरी और नरौना में बड़े स्तर पर खेती होती है। ज्यादातर फूलों की खेती खुले खेत में की जाती। इससे इनमें कीट और गर्मी का असर जल्दी होता है। कुछ ही किसान हैं जो ग्रीन हाउस खेती कर रहे हैं।

आसमान छु रही कीमतें

  • जरबेरा 70 रु
  • मनोकामिनी 20 रु
  • गेंदा 120 रु
  • ग्लेडियस 600 रु
  • गुलाब 70 से 90 रु
  • लिली 150 से 180
  • कारनेशन 50 से 80

आकड़ों में जानिए

राष्ट्रीय बागवानी के आकड़ों को देखने पर पता चलता है कि कोरोना काल यानि कि 2019-20 के समय देश में फूलों की खेती 305 हजार हेक्टेयर में हुई। जिसमें 2301 हजार टन 3,063 हजार टन का उत्पादन हुआ था।

2020-21 में 575.98 करोड़ का देश ने फूल निर्यात किया था।

यूपी के साथ ही उड़ीसा, झारखंड, हरियाणा, असम और छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मिजोरम, गुजरात सहित आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और कर्नाटक बड़े फूल उत्पादक राज्य हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

उद्यान विभाग से रिटायर जगदीश नारायण कहते हैं, हीटवेब ने सदियों का रिकार्ड तोडा है। इसका असर हर एक फसल पर दिख रहा है। लेकिन फूलों की खेती पर इसका सबसे बुरा प्रभाव देखने को मिल रहा है। फूल कमजोर आया है इसबार। इसके साथ सिचाई अधिक करने के चलते नमी में कीट भी अधिक लग रहे पौधों पर।

क्या करें और किससे बचाना है फसल को

जगदीश कहते हैं, इस समय जो मौसम है उसमें दोपहर में पौधे मुरझाए हुए नजर आते हैं। ऐसे में उनमें पानी लगा दिया जाता है। जो सही नहीं है। इससे पौधा मरने लगता है। सिचाई का सबसे सही समय होता है सूर्यास्त के बाद। तो इसका अवश्य ख्याल रखना चाहिए। पानी लगाने से बेहतर है मल्चिंग करनी चाहिए। इससे खेत में नमी बनी रहती है। कीटनाशक का प्रयोग करते समय ध्यान रखना चाहिए कि पौधों के ऊपर तो देखें साथ ही उनकी जड़ो पर भी ध्यान दें। क्योंकि नमी के चलते कीट जड़ों के आसपास ठिकाना बना लेते हैं।

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Deepak Kumar

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