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Lucknow News: अखाड़ा परिषद के गठन के बाद भी नहीं रुक रहीं साधु-संतों की हत्याएं, मायाजाल में फंसे अखाड़े-मठ

Lucknow News: मठों व अखाड़ों की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने भारत पर आक्रमणकारियों का मुकाबला करने के लिये की थी।

Sandeep Mishra
Published on: 23 Sep 2021 4:08 PM GMT
Lucknow News: अखाड़ा परिषद के गठन के बाद भी नहीं रुक रहीं साधु-संतों की  हत्याएं, मायाजाल में फंसे अखाड़े-मठ
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Lucknow News: अगर इतिहास पर गौर किया जाय तो सनातन धर्म (Sanatan Dharma) के मठ व आखड़े अपनी आध्यात्मिक चेतना व साधना को लेकर तो चर्चा के केंद्र रहे ही, साथ ही ये मठ व अखाड़े विवाद व कातिलान झगड़े को लेकर भी चर्चा में रहे हैं। शुरू से ही इन साधु संतों के एक हाथ में राम नाम जपने की माला रही तो एक हाथ मे त्रिशूल,भाला, फरसा, तलवार जैसे हथियार देखे जाते रहे।19 वी सदी के बाद से तो इन साधु संतों के मठों व अखाड़ों में स्वचालित हथियार भी देखे जाने लगे। इतिहास के पन्ने ये प्रमाण देते हैं कि भारत पर आक्रमणकारियों का मुकाबला करने के लिये इन मठों व अखाड़ो की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य (Aadi Guru Shankaracharya) ने की थी।

आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म आठवीं सदी के मध्य में हुआ था। तब भारत के जनमानस की दशा व दिशा अच्छी नहीं थी। उस समय विदेशी आक्रांता भारत मे आकर हमला बोलते थे। यहां मठ मंदिरों को तहस नहस करते थे। यहाँ के मंदिरों का खजाना लूट कर अपने देश लौट जाते थे। जबकि कुछ विदेशी आक्रमणकारी भारत की दिव्य आध्यात्मिक साधना के वशीभूत होकर यही बस गए थे।इस समय में आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिये कई तरह के प्रयास करने शुरू किए।

भारत मे 8 वीं सदी में हुई मठों की स्थापना

उन्होंने देश के चार कोनों में पीठ की स्थापना की। गोवर्धन पीठ,शारदा पीठ, द्वारिका पीठ व ज्योतिर्मठ पीठ। तब आदि गुरु शंकराचार्य ने इन पीठों से जुड़ने वाले साधुओं को एक ही सन्देश दिया था कि धर्म विरोधी शक्तियों का मुकाबला सिर्फ आध्यात्मिक शक्ति ही कर सकती है। तब उन्होंने उस समय के युवा साधुओं से आह्वान किया था कि योग व कसरत के माध्यम से अपने शरीर को शौष्ठव व वज्र सा बनाएं। इन मठों के स्थापित अखाड़ों में इन युवा साधुओं को कुश्ती व हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा। जिन्हें बाद में अखाड़ों के नाम से भी पहचाना जाने लगा। कालांतर में कई अखाड़े अस्तित्व में आये। इन अखाड़ों के साधु संतों ने कालांतर में मुगलों व अंग्रेजों से मोर्चा लेने के लिए भी हथियार उठाये।

देश की आजादी के बाद इन अखाड़ों का स्वरूप बदला, लेकिन झगड़े जारी रहे

भारत की आजादी के बाद इन अखाड़ों व मठों के साधु संतों ने अपने सैन्य स्वरूप को तिलांजलि दी। अब इस दौर में इन साधु संतों ने इस बात को टारगेट किया कि सभी मठों व अखाड़ों के साधु संत भारतीय संस्कृति व उसके दर्शन, सनातनी मूल्यों का अनुपालन करें और संयमी जीवन व्यतीत करें।आजादी के बाद से शुरुआत में 13 मान्यता प्राप्त अखाड़े थे।शैव सम्प्रदाय के 7,वैष्णव सम्प्रदाय के 3 और उदासीन पंथ से 3 आखड़े थे। शैव व वैष्णव अखाड़ों के सन्तो के मध्य अपने ईगो को लेकर हमेशा संघर्ष जारी रहा है। शाही स्नान के वक्त इन दोनों सम्प्रदाय के अखाड़ों के साधु संतों में हमेशा तनातनी व टकराव, खूनी संघर्ष की भेंट चढ़ते रहे हैं।

1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना हुई

वर्ष 1954 में कुंभ में शाही स्नान को लेकर हुई भगदड़ के बाद साधु संतों ने यह तय किया कि आपसी सामंजस्य स्थापित करने व खूनी टकराव से बचने के लिए एक अखाड़ा परिषद की स्थापना की जाये।वर्ष 1954 में सभी अखाड़ों के साधु संतों ने मिलकर अखाड़ा परिषद की स्थापना की।जिसमे 14 अखाड़ों को शामिल किया गया।अटल अखाड़ा, आवाहन अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, बड़ा उदासीन पंचायती अखाड़ा, नया उदासीन अखाड़ा, निर्मल अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, जूना अखाड़ा, व किन्नर अखाड़ा हैं । अखाड़ा परिषद की स्थापना के बाद भी इन साधु संतों में शाही स्नान के झगड़ों पर तो विराम लगा । लेकिन अखाड़ा परिषद के चुनाव व सम्पत्तियों तथा गद्दी के उत्तराधिकार को लेकर विवाद व झगड़े जारी ही रहे।जो आज भी जारी हैं।

आदि गुरु शंकराचार्य: कांसेप्ट इमेज- सोशल मीडिया

साधु संतों की हत्या पर एक नजर

एक आकलन यह बताता है कि इन अखाड़ों में साधु संतों के पास जितना शरीफ इंसान आता है , उतने ही आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी आते जाते रहते हैं।साधु संतों के आखाड़ो के भीतर भी भयंकर ग्रुपबाजी होती है।संम्पति व गद्दी हथियाने के लालच में ईगो भी टकराता है। जब ईगो टकराता है तब साधु संतों की हत्याओं से इसकी परिणति होती है।

-11अक्टूबर, 2020 को गोण्डा के रामजानकी मन्दिर के पुजारी बाबा सम्राट दास की हत्या,आरोप-मन्दिर की भूमि पर कब्जा करने के लिए स्थानीय भू-माफिया ने गोली मारकर हत्या कर दी।

-29जून,2021-मेरठ के थाना मुंडाली के बडाला गांव में साधु चंद्रपाल की ईंटों से कुचल कर हत्या कर दी गयी।मन्दिर से जुड़ी सम्पत्तियों को लेकर बाबा जी का स्थानीय लोगों से झगड़ा चल रहा था।

-5 अक्टूबर,2020-मथुरा में एक साधु की हत्या,मन्दिर पर आने वाले चढ़ावे को लेकर झगड़ा हुआ था।

-14 सितंबर , 2020-मेरठ में कांतिप्रसाद नमक साधु की हत्या, लेनदेन का विवाद हुआ था।11सितम्बर, 2020 में बिजनोर में एक साधु की हत्या,आश्रम से जुड़ी जमीन का झगड़ा था। 6सितम्बर, 2020-कन्नौज में साधु शीलिग्राम की हत्या,मन्दिर के नाम से आने वाले धन को लेकर विवाद था। 23 जुलाई, 2020-सुल्तानपुर में एक साधु की हत्या,जमीन विवाद

-18 जुलाई, 2020-पीलीभीत में बाबा लालगिरी की हत्या,जमीन से जुड़ी खेती का विवाद था।

-25 अप्रैल, 2020-गोरखपुर में एक पुजारी की हत्या,जमीनी विवाद में की गई थी हत्या।

-26 फरवरी, 2020-पीलीभीत में एक पुजारी की हत्या,मन्दिर में चढ़ावे को लेकर विवाद था। 25 फरवरी, 2020 पीलीभीत में एक मंदिर के महंत की हत्या,मन्दिर की महंती को लेकर विवाद बताया जा रहा है।

-18जनवरी, 2020-चित्रकूट के महंत अर्जुनदास की हत्या,आश्रम की गद्दी व जमीनी विवाद बताया गया।

-28अक्टूबर, 2019-मुरादाबाद में एक साधु की हत्या,विवाद अज्ञात।

-23 सितम्बर, 2019-साधु बालकदास की हत्या,विवाद मन्दिर विवाद।

-1सितम्बर, 2019-हरदोई में साधु हीरादास की हत्या, विवाद मंदिर पर कब्ज़ा बताया गया।

-14जून, 2019-मथुरा में एक साधु की हत्या,विवाद आश्रम की भूमि का विवाद बताया गया।

-2जून, 2019 -रायबरेली में पुजारी स्वामी प्रेमदास की हत्या। विवाद मन्दिर में आने वाला चढ़ावा बताया जा रहा है।

-31जून, 2018-बाराबंकी में पुजारी शमशेर सिंह की हत्या,विवाद अज्ञात।

-31अगस्त, 2018-पीलीभीत में पुजारी रामेश्वर की हत्या,विवाद मन्दिर को दान की गई जमीन बतायी जा रही है।

-19अगस्त, 2018-मेरठ में एक पुजारी की हत्या व उनके सेवादार की हत्या,यहां गद्दी के उत्तराधिकार का विवाद बताया गया।

-14अगस्त,2018 -ओरैया में दो साधुओं की हत्या, साथ में एक अन्य व्यक्ति की भी हत्या,विवाद अज्ञात।

-14अगस्त, 2018 -सुल्तानपुर में एक मंदिर के पुजारी की हत्या,मन्दिर विवाद बताया गया।

माया के चक्कर मे हो गईं हत्याएं

मुगलों व अंग्रेजों से मोर्चा बंदी से शुरू हुए साधु संतों के खूनी झगड़े,देश की आजादी के बाद कुम्भ स्नान में होने वाले शाही स्नान के खूनी झगड़ों में तब्दील हुए। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन हो जाने के बाद अखाड़ों, मठों, मंदिरों में आने वाले चढ़ावे,गद्दी के उत्तराधिकारी बनने व आश्रमों तथा मंदिरों की भू-सम्पत्ति पर लगने वाली कुदृष्टि के कारण साधु संतों की सन्दिग्ध मौतों का सिलसिला अब तक जारी है। चाहे किसी साधु की हत्या कर दी जाये या फिर उससे आत्महत्या करने पर विवश कर दिया जाय।ये आंकड़े बताते हैं कि मोह माया के मकड़जाल के चँगुल से परे नही हो पा रहे हैं ये त्यागी साधू संत।रामायण में तुलसीदास ने सिर्फ छह शब्दों में माया के बारे में बता दिया है।

"मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया।।

अर्थात- मैं, मेरा और तेरा - यही माया है, मैं अर्थात् जब ''मैं'' आता है तो ''मेरा'' आता है और जहां ''मेरा'' होता है वहां ''तेरा'' भी होता है- तो ये भेद माया के कारण होता है।

Shashi kant gautam

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