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Lucknow News: नेता जी से पहले राजा महेंद्र प्रताप ने बनाई थी पहली भारत सरकार, अफगानिस्तान में था मुख्यालय

कृषि कानूनों को लेकर नाराज चल रहे पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाटों का मन क्या राजा महेंद्र प्रता​प सिंह को मिलने वाले सम्मान को..

Akhilesh Tiwari
Written By Akhilesh TiwariPublished By Deepak Raj
Published on: 8 Sept 2021 8:47 PM IST
Rajamahendra Pratap singh file photo taken from social media
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राजा महेंद्र प्रताप सिंह व इंदिरा गांधी (फाइल फोटो, सोर्स-सोशल मीडिया) 

Lucknow News: कृषि कानूनों को लेकर नाराज चल रहे पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाटों का मन क्या राजा महेंद्र प्रता​प सिंह को मिलने वाले सम्मान को लेकर बदल जाएगा। आगामी 14 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अलीगढ़ में योगी सरकार की कोशिशों से शुरू होने वाले राजा महेंद्र प्रताप विश्वविद्यालय की आधारशिला रखेंगे तो इतिहास के कई पुराने पन्ने सबके सामने होंगे और एक नया इतिहास भी रचा जाएगा। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अपनी जमीन दान करने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह को विश्वविद्यालय परिसर में कभी मामूली पहचान तक नहीं मिली लेकिन अब उसी अलीगढ़ में यूपी सरकार का ऐसा विश्वविद्यालय होगा जिसे उनके नाम से ही पहचाना जाएगा।


अंग्रेजों के साथ राजा महेंद्र प्रताप सिंह (फाइल फोटो, सोर्स-सोशल मीडिया)


विश्वविद्यालय के प्रस्ताव ने इतिहास में गुम हो चुके उनके उस योगदान को भी पूरी दुनिया के सामने उजागर कर दिया है जो उन्होंने देश की आजादी के लिए किया है। वह देश के पहले ऐसे सूरमा हैं जिन्होंने अंग्रेज दासता के खिलाफ न केवल परचम बुलंद किया बल्कि अफगानिस्तान जाकर पहली आजाद भारत सरकार का एलान भी कर दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लगभग दो साल पहले अलीगढ़ की चुनावी सभा में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर विश्वविद्यालय स्थापना का एलान किया था।



एएमयू में मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर 2014 में विवाद हुआ था। तब भाजपा नेता कैप्टन अभिमन्यु ने यह सवाल उठाया था कि जिस राजा महेंद्र प्रताप सिंह की जमीन पर एएमयू बना है। उनकी तस्वीर वहां नहीं है जबकि जिन्ना की तस्वीर लगाई गई है। जिन्ना अगर एएमयू के पूर्व छात्र हैं तो राजा महेंद्र प्रताप सिंह पूर्व छात्र होने के साथ ही विश्वविद्यालय को जमीन देने वाले दानदाता भी हैं। उनके जन्म दिन पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने एएमयू में कार्यक्रम करने की भी कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो सके थे।

कौन थे राजा महेंद्र प्रताप​ सिंह



राजा महेंद्र प्रताप​ सिंह (फाइल फोटो, सोर्स-सोशल मीडिया)

राजा महेंद्र प्रताप ने 1 दिसंबर, 1915 में अफगानिस्तान के काबुल पहुंचकर भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की। भारत की पहली स्थाई सरकार के वह स्वयं राष्ट्रपति थे। उन्होंने अपना प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्लाह खान को बनाया था। राजा महेंद्र प्रताप ने जब यह सब कुछ किया तब उनकी उम्र 31 साल की थी। बताया जाता है कि भारत से बाहर जाने के लिए उन्होंने एक स्टीमर की सहायता ली थी। बगैर पासपोर्ट देश से बाहर जाने में उनकी मदद मैसर्स थॉमस कुक एंड संस के मालिक ने किया था। उन्होंने अपनी कंपनी के स्टीमर से उन्हें इंग्लैंड पहुंचाया था। उस समय उनके साथ इंग्लैंड जाने वालों में स्वामी श्रद्धानंद के ज्येष्ठ पुत्र हरिश्चंद्र भी शामिल थें।

इंग्लैंड से वह जर्मनी पहुंचे वहां उन्होंने जर्मनी के शासक कैसर से मुलाकात की। बुडापेस्ट, बलगारिया, टर्की होते हुए वह हैरात पहुंचे जहां अफगानिस्तान के बादशाह से मुलाकात की। वहीं से 1 दिसंबर, 1915 को उन्होंने आजाद भारत की पहली अस्थाई सरकार की घोषणा कर दी। यह वह समय था जब अफगानिस्तान ने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था। राजा महेंद्र प्रताप सिंह इसी दौरान रूस भी गए। लेनिन से उनकी मुलाकात भी हुई। लेकिन लेनिन ने उनकी सहायता करने से इंकार कर दिया। 1920 से लेकर 1946 तक वह विदेशों में भ्रमण करते हुए विश्व मैत्री संघ का संचालन करते रहे। 1946 में वह भारत लौट आए। इसके बाद वह सांसद भी बनें। 26 अप्रैल, 1979 में उनका देहांत हुआ है।

क्या है उनकी वंश परंपरा

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार हाथरस के जाट राजा दयाराम ने 1817 में अंग्रेजों की सत्ता कुबूल करने से इनकार कर दिया। अंग्रेजों से उनका युद्ध हुआ। मुरसान के जाट राजा ने युद्ध में जाट राजा दयाराम का साथ दिया लेकिन अंग्रेजों ने दयाराम को बंदी बना लिया। अंग्रेजों ने राजा दयाराम का राज—पाट अपने अधीन कर लिया। 1841 में दयाराम का देहान्त होने के बाद उनके पुत्र गोविन्द सिंह उत्तराधिकारी बने। उन्होंने राज वापस पाने की लालसा से 1857 के स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों का साथ दिया। लेकिन अंग्रेजों ने उनका राज वापस नहीं किया। इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें कुछ गांव, 50 हजार रुपये नकद और राजा की पदवी देकर संतुष्ट कर दिया लेकिन पूरी रियासत अपने पास ही रखी। राजा गोविन्द सिंह की 1861 में मृत्यु हो गई।


राजा महेंद्र प्रताप​ सिंह (फाइल फोटो, सोर्स-सोशल मीडिया)


राजा गोविंद सिंह के निधन के पश्चात उनकी रानी ने जटोई के ठाकुर रूप सिंह के पुत्र हरनारायण सिंह को गोद ले लिया। दुर्भाग्य से राजा हरनारायण सिंह को भी कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने मुरसान के राजा घनश्याम सिंह के तीसरे पुत्र महेंद्र प्रताप को गोद ले लिया। यही महेंद्र प्रताप आगे चलकर ​राजा महेंद्र प्रताप सिंह बने और एएमयू से शिक्षा हासिल करने के बाद उन्होंने अपनी जमीन कॉलेज निर्माण के लिए दान कर दी।



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