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Lucknow: पिता को यथोचित मर्यादा एवं सम्मान करना चाहिए, बोले स्वामी मुक्तिनाथानंद

Lucknow: रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि जीवन में सफल होने के लिए पिताजी को यथोचित मर्यादा एवं सम्मान देना चाहिए।

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Published on: 21 Nov 2022 8:41 PM IST
Lucknow News In Hindi
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स्वामी मुक्तिनाथानंद जी

Lucknow: प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ (Ramakrishna Math Lucknow) के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी (President Swami Muktinathanand ji) ने बताया कि जीवन में सफल होने के लिए पिताजी को यथोचित मर्यादा एवं सम्मान देना चाहिए। यह बात श्री रामकृष्ण ने अपने भक्तगणों को सिखाया था। एक दिन जब वे दक्षिणेश्वर में अपने कमरे में विराजमान थे, तब कोलकाता से उनके द्विज आदि युवा भक्तगण एवं द्विज के पिताजी आकर उपस्थित हुए थे।

''लड़के का अच्छा होना पिता के पुण्य के लक्षण''

श्री रामकृष्ण ने द्विज के पिताजी को कहा आपके पुत्रगण यहां पर आने से पिताजी को कैसे सम्मान करना चाहिए, वो सीख जाएंगे। द्विज के पिताजी को उन्होंने कहा, "यहां पर आने पर तुम क्या हो, यह ये लोग समझ सकेंगे। पिता का स्थान कितना ऊंचा है! माता-पिता को धोखा देकर जो धर्म करना चाहता है उसे क्या खाक हो सकता है?"फिर उन्होंने कहा, "लड़के का अच्छा होना पिता के पुण्य के लक्षण है। अगर कुएं का पानी अच्छा निकला तो वह कुएं के मालिक के पुण्य का चिह्न है।"

बच्चे को आत्मज कहते हैं: श्री रामकृष्ण

श्री रामकृष्ण पुनः कहा, "बच्चे को आत्मज कहते हैं। तुममें और तुम्हारे बच्चे में कोई भेद नहीं। एक रूप से बच्चा तुम्हीं हुए हो। एक रूप से तुम विषयी हो, ऑफिस का काम करते हो, संसार का भोग करते हो, एक दूसरे रूप से तुम्हीं भक्त हुए हो - अपने संतान के रूप से।"

हम जानते हैं यद्यपि आत्मा चैतन्य स्वरूप है, उसका जन्म जन्मांतर नहीं होता है, तब भी पुत्र को आत्मज इसलिए कहा जाता है कि पुत्र पिता का ही प्रतिरूप माना जाता है। जैसे पुत्र का शरीर पिता से उत्पन्न होता है वैसे ही इस स्थूल शरीर के भीतर जो सूक्ष्म शरीर होता है जिसको मन कहलाता है, वो मन भी पिताजी के स्वभाव अनुसार गठित होता है। माना जाता है -

आत्मा वै जायते पुत्र

अर्थात मानो आत्मा ही पुत्र रूप से जन्म लेती है। पिताजी की जो इच्छाएं हैं वह पुत्र के माध्यम से संपन्न होती हैं। इसलिए पिता पुत्र का संपर्क हमारी परंपरा में अति पवित्र संपर्क माना जाता है। श्री रामकृष्ण इस अनुसार शिक्षा देते थे, पिताजी को यथोचित सम्मान करना चाहिए एवं पिताजी की गुणावली ही पुत्र में रूपांतरित होती है। कहा जाता है-

बाप का बेटा,सिपाही का घोड़ा

कुछ नहीं तो थोड़ा-थोड़ा।

अर्थात मानो पिताजी नवरूप से पुत्र का शरीर धारण करके आत्मप्रकाश करते है।

स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा हमारी परंपरा अनुसरण करते हुए एवं श्री रामकृष्ण की वाणी सामने रखते हुए हमें भी आध्यात्मिक जीवन सफल करने के लिए अपने-अपने पिताजी को यथोचित सम्मान एवं मर्यादा प्रदान करना चाहिए एवं उनकी यथासंभव सेवा करते हुए उनके आशीर्वाद से आध्यात्मिक जीवन आगे बढ़ाना चाहिए। अगर हम श्री भगवान के चरणों में आंतरिक प्रार्थना करते रहे तब उनकी कृपा से हमारी पितृ भक्ति बढ़ती रहेगी और पिताजी के आशीर्वाद से हम इस जीवन में ही ईश्वर को प्रत्यक्ष करते हुए जीवन सार्थक कर लेंगे।



Deepak Kumar

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