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Lucknow News : बिजली निजीकरण के विरोध में हुई सभाएं, अरबों खरबों रूपये की परिसंपत्तियों को सार्वजनिक की मांग
Lucknow News : राजधानी लखनऊ में राणा प्रताप मार्ग स्थित हाइडिल फील्ड हॉस्टल में हुई विरोध सभा में भारी संख्या में लखनऊ के सभी कार्यालयों, शक्ति भवन, मध्यांचल मुख्यालय और लेसा के बिजली कर्मी व अभियंता बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए।
Lucknow News : विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने शनिवार को उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों में विरोध सभाओं का आयोजन किया। बिजली कर्मचारियों ने कहा कि बिजली के क्षेत्र में सबसे बड़े स्टेकहोल्डर बिजली के उपभोक्ता और बिजली के कर्मचारी है। अतः आम उपभोक्ताओं और कर्मचारियों की राय लिए बना निजीकरण की कोई प्रक्रिया शुरू न की जाए। साथ ही संघर्ष समिति ने मांग की है कि अरबों खरबों रुपए की बिजली की संपत्तियों को लेकर एक कमेटी बनाकर, जिसमें कर्मचारियों और उपभोक्ताओं के प्रतिनिधि भी हों, मूल्यांकन किया जाए और जब तक यह मूल्यांकन सार्वजनिक न हो तब तक निजीकरण की कोई प्रक्रिया शुरू करना संदेह के घेरे में होगा।
बड़ी संख्या में कर्मचारी हुए इकठ्ठा
राजधानी लखनऊ में राणा प्रताप मार्ग स्थित हाइडिल फील्ड हॉस्टल में हुई विरोध सभा में भारी संख्या में लखनऊ के सभी कार्यालयों, शक्ति भवन, मध्यांचल मुख्यालय और लेसा के बिजली कर्मी व अभियंता बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए। सभा को संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारी राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय,सुहैल आबिद, पी.के.दीक्षित, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर बी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, मो0 इलियास, श्री चन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, ए.के. श्रीवास्तव, के.एस. रावत, रफीक अहमद, पी एस बाजपेई, जी.पी. सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय और विशम्भर सिंह ने संबोधित किया।
पहले भी विफल रहा है निजीकरण
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि निजीकरण से कर्मचारियों की सेवा शर्तें तो प्रभावित होती ही हैं कर्मचारियों के साथ ही सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव आम घरेलू उपभोक्ताओं, किसानों और गरीब उपभोक्ताओं पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि निजीकरण के उत्तर प्रदेश में आगरा और ग्रेटर नोएडा में किए गए विफल प्रयोगों की समीक्षा करना बहुत जरूरी है अन्यथा निजीकरण के नाम पर एक बार पुनः आम उपभोक्ता ठगा जाएगा।
ग्रेटर नोएडा में करार के अनुसार निजी कंपनी को अपना विद्युत उत्पादन गृह स्थापित करना था जो उसने आज तक नहीं किया। यह भी समाचार आ रहे हैं की ग्रेटर नोएडा की कंपनी किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली देने के बजाय ज्यादा रुचि औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्र में बिजली देने में लेती है। स्वाभाविक है निजी कंपनी मुनाफे के लिए काम करती है जबकि सरकारी कंपनी सेवा के लिए काम करती है। आगरा में भी उपभोक्ताओं की बहुत शिकायतें हैं। इन सब का संज्ञान लिए बगैर उत्तर प्रदेश में कहीं और पर निजीकरण किया जाना कदापि उचित नहीं है।
टोरेंट की वजह से हुआ 3000 करोड़ का घाटा
संघर्ष समिति ने यह भी कहा कि आगरा और केस्को दोनों के निजीकरण का एग्रीमेंट एक ही दिन हुआ था। आगरा टोरेंट कंपनी को दे दिया गया और केस्को आज भी सरकारी क्षेत्र में है। इनकी तुलना से स्वयं पता चल जाता है कि निजीकरण का प्रयोग विफल हो गया है। आगरा में टोरेंट कंपनी प्रति यूनिट 4 रुपए 25 पैसे पावर कारपोरेशन को देती है। पावर कॉरपोरेशन यह बिजली रु 05.55 प्रति यूनिट पर खरीदता है ।इस प्रकार पिछले 14 साल में पावर कारपोरेशन को टोरेंट को लागत से कम मूल्य पर बिजली देने में 3000 करोड रुपए का घाटा हो चुका है। दूसरी ओर केस्को में प्रति यूनिट राजस्व की वसूली रूपये 06.80 है। साफ हो जाता है कि निजीकरण का प्रयोग विफल हुआ है और इससे पावर कारपोरेशन का घाटा और बढ़ा है। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र का प्रयोग कानपुर में सीमित संसाधनों के बावजूद कहीं अधिक सफल रहा है।
प्रदेश भर में हुई सभा में आज बिजली कर्मचारियों ने संकल्प लिया की प्रदेश की आम जनता की व्यापक हित में और कर्मचारियों के हित में बिजली का निजीकरण पूरी तरह अस्वीकार्य है और लोकतांत्रिक ढंग से इस निजीकरण को समाप्त करने हेतु सभी प्रयास किए जाएंगे। संघर्ष समिति ने एक बार पुनः कहा कि घाटे के झूठे आंकड़े देकर और भय का वातावरण बनाकर निजीकरण थोपने की कोशिश की जा रही है जिसे बिजली कर्मी कभी स्वीकार नहीं करेंगे।