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Lucknow News: राहुल गांधी ने संसद में लहराई जो संविधान की किताब, ये है उसका लखनऊ कनेक्शन
Lucknow News: लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान आपने राहुल गाँधी को लाल और काले रंग की एक किताब लिए जरूर देखा होगा।
Lucknow News: लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान जनसभाओं में और चुनाव जीतने के बाद राहुल गाँधी ने काले और लाल रंग की साधारण सी दिखने वाली जिस किताब को संसद में लहराया उस 'संविधान की किताब' का लखनऊ से गहरा नाता है। यह किताब लखनऊ स्थित ईस्टर्न बुक कम्पनी (ईबीसी) द्वारा छापी गई 'कंस्टीट्यूशन ऑफ़ इण्डिया' की पॉकेट एडिशन है, जो अब सारे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है। इसी किताब को दिखाते हुए राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा था कि अगर यह लोग सत्ता में आए तो आपका संविधान खत्म कर देंगे। विपक्ष की ओर से दिए गए इन बयानों के बाद से ही जनता का झुकाव राहुल की ओर बढ़ा था।
राहुल गांधी के पास ये किताब देखे जाने के बाद लोगों में इसकी लोकप्रियता और मांग तेजी से बढ़ी है। हजरतगंज की नवल किशोर रोड स्थित ईबीसी के बिज़नेस डेवलपमेंट हेड सुधीर कुमार ने न्यूज़ट्रैक से बातचीत में बताया कि नेताओं, अधिकारियों और न्याय जगत से जुड़े लोगों के बीच यह किताब पहले से पसंद की जाती थी, लेकिन चुनाव के बाद से इसकी बिक्री में खासा उछाल देखने को मिला है। बीते करीब 5 महीनों में किताब की बिक्री लगभग दुगुनी हो गई है। इसकी करीब 6000 प्रतियां 5 महीनों के अंतराल में बिक गई हैं।
सुधीर बताते हैं कि इस किताब का पहला एडिशन 2009 में छ्पा था, तब से लेकर आज तक इसके 16 एडिशन छप चुके हैं। 17वां एडिशन छापने की तैयारी चल रही है। वर्तमान में 624 पन्नों की इस किताब का मूल्य 895 रुपये हैं। किताब के कवर में इस्तेमाल किया गया मटेरियल इम्पोर्टेड लेदर है, जिसे फ्लेक्सी फ़ोम लेदर बाउंड कहते हैं। ये मटेरियल किताब को क्वालिटी प्रोडक्ट बनाता है। उन्होंने बताया कि इस किताब की प्रस्तावना पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल के द्वारा लिखी गई है।
संविधान की पहली पॉकेट एडिशन किताब
यहाँ से आया पॉकेट एडिशन का आइडिया
संविधान की सैकड़ों किताबें बाज़ारों में मौजूद हैं, लेकिन या तो वो वजन में भारी हैं या फिर साइज में बड़ी हैं। इसी के चलते वरिष्ठ वकील गोपाल शंकर नारायण के दिमाग में पॉकेट एडिशन का आइडिया आया, जिसके बाद वर्ष 2009 में इस किताब का पॉकेट एडिशन बाजार में उतारा गया। मार्केट में आने के पहले साल सिर्फ 700-800 प्रतियां ही बिकीं, लेकिन उसके बाद के वर्षों में हर वर्ष औसत 6-7 हजार किताबें बिकने लगीं। राहुल गांधी की जन सभाओं में इस किताब के देखे जाने के बाद से जून के महीने तक ही किताब ने यह आंकड़ा पार कर दिया है।