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UP Nikay Chunav 2023: निकाय चुनाव में नहीं चला मायावती का आजामाया हुआ दांव, लगातार हार से बैकफुट पर बसपा
UP Nikay Chunav 2023: बसपा ने इस बार 17 में 11 मुस्लिमों को महापौर प्रत्याशी बनाया था। बसपा के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर दलितों के साथ मुस्लिमों का साथ मिल गया तो इस बार बेड़ा पार हो जाएगा। लेकिन मायावती का यह मास्टर स्ट्रोक भी नहीं चल सका। मुस्लिम मतदाता तो बंटे ही, दलितों का एकतरफा वोट भी नहीं मिला।
UP Nikay Chunav 2023: उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती का अब कोई पैंतरा काम आता नहीं दिख रहा है। 2012 के बाद से शुरू हुआ बसपा की हार का सिलसिला अभी तक जारी है। अब तो उनके आजमाये हुए दांव भी विफल साबित हो रहे हैं। निकाय चुनाव में उन्होंने दलित-मुस्लिम गठजोड़ का दांव खेला, बावजूद महापौर पद पर पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका। 2017 के निकाय चुनाव में बसपा ने महापौर के दो पद (मेरठ, अलीगढ़) जीते थे, इस बार वह भी हाथ से निकल गये। हालांकि, आगरा, सहारनपुर और झांसी में बसपा ने बीजेपी को कड़ी टक्कर देते हुए यहां दूसरे नंबर पर रही है।
बसपा ने इस बार 17 में 11 मुस्लिमों को महापौर प्रत्याशी बनाया था। बसपा के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर दलितों के साथ मुस्लिमों का साथ मिल गया तो इस बार बेड़ा पार हो जाएगा। लेकिन मायावती का यह मास्टर स्ट्रोक भी नहीं चल सका। मुस्लिम मतदाता तो बंटे ही, दलितों का एकतरफा वोट भी नहीं मिला जो बसपा के गठन के समय से उनकी ताकत रहे हैं। निकाय चुनाव के नतीजे बताते हैं कि इस बार बसपा के सभी चुनावी समीकरण धराशायी हो गये हैं। फिलहाल लगातार हार से बसपा बैकफुट पर नजर आ रही है।
फेल हो गये सारे दांव!
यूपी में हाथी दौड़ाने के लिए बसपा प्रमुख मायावती लगातार रणनीति बदल रही हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने मुस्लिमों पर दांव लगाया था, लेकिन तब भी उनका दांव फेल रहा और पार्टी महज 19 सीटें ही जीत सकी थी। 2022 में मायावती ने रणनीति बदली और सोशल इंजीनियरिंग के आजमाये फॉर्मूले पर भरोसा किया। बड़ी संख्या में ब्राह्मणों को टिकट दिया, यह रणनीति भी उनकी फेल रही और बसपा मात्र 01 विधानसभा सीट ही जीत सकी।
नहीं चला दलित-मुस्लिम कार्ड
मायावती को उम्मीद थी कि इस बार उनका दलित-मुस्लिम कार्ड चल जाएगा। मुसलमानों को पार्टी के फेवर में लाने के लिए वह शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को पार्टी में लेकर आईं और आजमगढ़ से चुनाव लड़ाया। इमरान मसूद को पार्टी में शामिल कर पश्चिमी यूपी की जिम्मेदारी सौंपी। अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन और अफजाल अंसारी को अभी तक पार्टी से नहीं निकाला। इतना ही नहीं मुसलमानों के उत्पीड़न के हर मुद्दे पर वह उनके पक्ष में बयान देती रहीं, ताकि मुसलमान बसपा के साथ जुड़ा रहे। उन्होंने न केवल 11 मुसलमानों को महापौर कैंडिडेट बनाया बल्कि बड़ी संख्या में नगर पालिका, नगर पंचायतों में उन्हें टिकट दिया।
2017 के मुकाबले गिरा बसपा का प्रदर्शन
2017 में बसपा को मेरठ में 43.61 फीसदी और अलीगढ़ में 41.39 फीसदी वोट मिले थे जिसके चलते दोनों जगह बसपा के मेयर बने थे। इस बार बसपा न केवल ये दोनों सीटें हारी बल्कि वोट प्रतिशत में भी भारी नुकसान हुआ है। इस बार पार्टी को मेरठ में 11 फीसदी और अलीगढ़ में 12.10 फीसदी वोट ही मिले। पिछली बार बसपा के 147 पार्षद जीते थे इस बार यह संख्या 90 के आसपास है। पिछली बार नगर पालिका अध्यक्ष की 29 सीटें बसपा जीती थी इस बार 20 पर सिमट गई है। नगर पालिका में सदस्यों की संख्या भी 262 से 205 पहुंच गई है। पिछली बार नगर पंचायतों में पार्टी के अध्यक्षों की संख्या 45 थी, इस बार 40 रह गई है। वहीं, पिछली बार नगर पंचायत सदस्यों की संख्या 218 थी और इस बार 213 है।
क्यों हो रहे दूर दलित-मुस्लिम?
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मुस्लिम मतदाता अब एक खूंटे से बंधने को तैयार नहीं है। उनके पास सपा, कांग्रेस के साथ-साथ अब असदुद्दीन की पार्टी एआईएमआईएम का भी विकल्प है। स्थानीय स्तर पर उन्हें जो बेहतर लग रहा है, वह उसके साथ हो ले रहे हैं। इस चुनाव में एआईएमआईएम का प्रदर्शन भी इसी बात की पुष्टि करता है। पिछले चुनावों के नतीजे बताते हैं कि अब दलित मतदाता भी अब दूसरे विकल्पों की ओर रुख कर रहा है। पश्चिमी यूपी में चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी भी इनमें से एक है।
निकाय चुनाव के नतीजों पर लोकसभा का आंकलन नहीं
यूपी के निकाय चुनाव में बसपा को भले ही हार का सामना करना पड़ा है, लेकिन रजनीतिक विश्लेषक नहीं मानते कि 2024 में बसपा का प्रदर्शन ऐसा ही रहेगा। उनका कहना है कि मायावती राजनीति की मास्टर खिलाड़ी हैं, वह इतनी आसानी से हथियार डालने वाली नहीं हैं। विश्लेषक यह भी मानते हैं कि निकाय चुनाव के आंकड़ों से लोकसभा चुनाव का आंकलन नहीं किया जा सकता। फिलहाल वह वेट एंड वॉच की बात कह रहे हैं।