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घर से देवालय है जरा दूर तो ये किया हमने, रोते बच्चों के संग दिवाली मनाई...
Diwai 2024: दिवाली की पूर्व संध्या पर लखनऊ में अनाथ बच्चों के लिए मिठाई , फूलझड़ी , दोनों तरह के खाने व जलने वाले अनार आदि का प्रबंध कर दीपावली वाले दिन गोरखपुर पहुंचा ।
घर से देवालय है जरा दूर तो ये किया हमने
रोते बच्चों के संग मनाली दिवाली हमने
उनके होंठों को हंसी हाथों को फुलझड़ी देकर
उनके मुस्कानों से खुद को हंसा ली हमने
हर साल की तरह इस बार भी दिवाली हमने माता पिता परिजन के अलावा अनाथों और फुटपाथ पर रहने वाले वंचित बच्चों के बीच मनाया । दिवाली की पूर्व संध्या पर। सदैव की भांति भाई धीरज गुप्त और रूपेंद्र थापा के साथ फुटपाथी बच्चों के साथ दिवाली मनाने निकले। विश्वविद्यालय के सामने वाली सड़क पर एक अर्धविक्षिप्त व्यक्ति दिखा । धीरज ने उन्हें मिठाई खिलाई, एक लड्डू के खाने के बाद बाकी मिठाई उन्होंने वापस कर दी । लइया वाला पैकेट भी उन्होंने लेने से मना कर दिया । वहां खड़े एक व्यक्ति ने कहा कि उस पागल से दूर रहिए , वो सबको बेवजह गाली देता है, कभी कभी मार भी देता है । पता नहीं क्या मेरे मन में सूझा, मैंने पैकेट उनके हाथ में देते हुए कहा कि आपको कोई गरीब मिलेगा तो उसे ये खाने के लिए दे दीजिएगा । उन्होंने मेरे हाथ में पड़े दोनों पैकेट ले लिए। मुझे यूं प्रतीत हुआ कि उनके बहाने या माध्यम से ईश्वर मेरा अर्घ्य स्वीकार रहे हैं । मैं कृष्ण के कथन
"समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठंति परमेश्वरं " और तुलसी के तात्विक वचन
"सियाराम मय सब जग जानी,
करउ प्रणाम जोर जुग पानी"
में यकीन रखता हूं । मेरे लिए नर सेवा ही कमोबेश बेहतर नारायण पूजा है । दिवाली भी हम लोग इसी भाव के साथ मनाते हैं। रेलवे स्टेशन के पास जब हम लोगों की गाड़ी रुकी । करीब १०-१५ में लगभग सौ - सवा सौ के करीब गरीब और उनके बच्चे एकत्र हो गए । फुटपाथ पर ही उनके साथ बैठकर फुलझड़ी जलाई । मेरा मन तो उन फूल से बच्चों पर आई फुलझड़ी सी हंसी देखकर ही मुदित रहा । साथ में फोटोग्राफी भी होती रही । जब वितरण कार्य समाप्त हो गया , एक सांवली सलोनी सी महिला एक किन्नर के साथ आई और लइया पूजा के लिए मांगने लगी । वो खत्म हो गया था , मैंने उन्हें सौ रुपए दिए कि आप खरीद कर पूजा पर चढ़ा देना । पैसे को महिला ने किन्नर को दे दिया और किन्नर मुझे ही पैसा वापस करने लगा । मुझे लगा शायद कम लग रहा हो, दिवाली का दिन है, और रुपए निकालने के लिए पॉकेट में हाथ डाला तो किन्नर ने यह कर और पैसे लेने से मना कर दिया कि पूजा पर चढ़ाने के लिए इतना बहुत है । सर पर हाथ रख आशीष दे दोनों चले गए । जैसे प्राचीन ग्रंथों में लिखा मिलता है कि देवी रूप बदल आईं, आशीष दिया और अंतर्ध्यान हो गईं , कुछ ऐसे ही बात मेरी अंधविश्वासी अनुभूतियां कह रही थीं । राजनीति ने सस्ती लोकप्रियता का रोग लगा दिया है, लेकिन यह सब भी जरूरी है । डेमोक्रेसी में डिमांस्ट्रेशन का अपना महत्व है । वैसे एक बात कहूं, दूसरों से पैसे बटोर कर दान कर हरिश्चंद्र बनने का दुर्गुण मुझमें बचपने से रहा है ।
रात को सोने के पूर्व सारी घटनाक्रम को सोचने बैठा, सारे चित्र आंखों के सामने तैरने लगे । जिस देश में अरबपतियों की तीसरी सबसे बड़ी तादाद रहती हो , वहां इतनी गरीबी , बेबसी, लाचारी, सोच कर आंख नम हो गई ....
देख मैने भी मना ली है यहां दिवाली
मेरी पलकों पे अश्कों के दिए जलते हैं
पुनःश्च - आप कहोगे कि दीपकजी, जब आप दाता हो, दानकर्ता हो, बड़े से बड़े सत्ताधीशों के आगे भी न झुकने वाले दीपक मिश्र, आप की तस्वीर एक कातर से आदमी के सामने हाथ जोड़े हुए क्यों है , तो जवाब वही होगा जो सदियों पहले तुलसीमित्र रामभक्त लोहिया के कन्नौज के सूबेदार अब्दुर्रहीम खान- ए - खाना का था.
देता तो कोई और है
देता है दिन -रैन
लोग भरम मुझपर करें
तासो नीचे नैन