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Lucknow University: आठ दिवसीय ग्लेज राकू फायरिंग कार्यशाला का समापन, छात्रों ने जापानी तकनीक से बनाई मूर्तियां

Lucknow University: कलाकार श्री अस्थाना के मुताबिक बिस्किट फायरिंग कम तापमान पर की जाती है। अगले दिन इन मूर्तिशिल्पों को ठंडा होने के बाद भट्टी से निकाल लिया जाता है। बिस्किट फायरिंग हुए मूर्तिशिल्पों के ऊपर राकू ग्लेज को लगा कर फिर से भट्टी में रख दिया जाता है।

Abhishek Mishra
Published on: 3 Sept 2024 7:00 PM IST
Lucknow University: आठ दिवसीय ग्लेज राकू फायरिंग कार्यशाला का समापन, छात्रों ने जापानी तकनीक से बनाई मूर्तियां
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Lucknow University: लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों ने 16वीं शताब्दी की जापानी तकनीक राकू से कई मूर्ति शिल्प तैयार की हैं। जो देखने में बेहद आकर्षक हैं। एलयू के ललित कला संकाय में विषय विशेषज्ञ अजय कुमार की अगुवाई में आठ दिवसीय ग्लेज राकू फायरिंग कार्यशाला का आयोजन हुआ। इसमें प्रमुख प्रशिक्षक सिरेमिक ऑर्टिस्ट व क्ले एंड फायर के ऑनर प्रेमशंकर प्रसाद और मूर्तिकार विशाल गुप्ता रहे। उन्होंने छात्रों को राकू ग्लेज की जानकारी दी। कलाकार भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि छात्रों ने सबसे पहले राकू मिट्टी बनाई। फिर मूर्तिशिल्प बनाना शुरू किया। इसके बाद टेक्सचर देकर और फिनिशिंग करके मिट्टी में फाइनल मूर्तिशिल्प तैयार किया। उसके बाद मिट्टी में बने मूर्ति शिल्पों को चार दिन तक सुखाया। चार दिन बाद जब मूर्ति शिल्प पूरी तरह सूख गई तो उसके बाद बिस्किट फायरिंग के लिए मूर्ति शिल्पों को भट्टी में रख दिया गया।


राकू ग्लेज लगा भट्टी में रखी जाती कृतियां

कलाकार श्री अस्थाना के मुताबिक बिस्किट फायरिंग कम तापमान पर की जाती है। अगले दिन इन मूर्तिशिल्पों को ठंडा होने के बाद भट्टी से निकाल लिया जाता है। बिस्किट फायरिंग हुए मूर्तिशिल्पों के ऊपर राकू ग्लेज को लगा कर फिर से भट्टी में रख दिया जाता है। इस बार भट्टी का तापमान पहले से ज्यादा होता है। इनको दो से तीन घंटे तक पकाते हैं। एक तरफ यह प्रक्रिया चलती है दूसरी तरफ एक बड़े लोहे के बक्से में लकड़ी के बुरादे को डालते हैं और अखबार के छोटे-छोटे टुकड़े कर उस बक्से में डाल दिया जाता है। इसके बाद भट्टी में पक रही गर्म मूर्तियों को सड़सी से पकड़ कर एक एक करके इस बक्से में डालते हैं। उसके बाद अखबार व लकड़ी का बुरादा डाल कर बक्से को एक घंटे के लिए बन्द कर देते हैं। जिसके बक्से से धुआं बाहर न निकले। एक घंटे बाद बक्से को खोल कर मूर्तियां को पानी से धुलते हैं। इससे मूर्तियों पर लगी राख साफ हो जाती है। इतने लंबी प्रक्रिया के बाद राकू ग्लेज होता है। उन्होंने बताया कि सभी कलाकारों के मूर्ति शिल्प बहुत सुंदर निकले। कार्यशाला में छात्रा अर्चना सिंह, दृश्या अग्रवाल, वंशिखा सिंह, प्रीती कनौजिया, प्रदीपिका श्रीवास्तव, उत्कल पांडेय, हर्षित सिंह और प्रकृति शाक्या समेत कई अन्य ने मूर्ति शिल्प तैयार की।


राकू विधि क्या है?

विषय विशेषज्ञ अजय कुमार ने बताया कि राकू जापानी मिट्टी के बर्तनों का एक रूप है। राकू 16वीं शताब्दी में मोमोयामा काल के दौरान लगभग 1550 में पहली बार मध्ययुगीन जापानी चीनी मिट्टी के बर्तनों में दिखाई दिया था। जापानी राकू मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल पारंपरिक रूप से जापानी चाय समारोह के दौरान इस्तेमाल के लिए चाय के कटोरे बनाने के लिए किया जाता था। राकू चाय के कटोरे को ब्लैकवेयर और रेडवेयर दोनों के रूप में जाना जाता था।





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Abhishek Mishra

Abhishek Mishra

Correspondent

मेरा नाम अभिषेक मिश्रा है। मैं लखनऊ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। मैंने हिंदुस्तान हिंदी अखबार में एक साल तक कंटेंट क्रिएशन के लिए इंटर्नशिप की है। इसके साथ मैं ब्लॉगर नेटवर्किंग साइट पर भी ब्लॉग्स लिखता हूं।

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