Lucknow News: शैल उत्सव का पांचवां दिन, मूर्तिकारों ने पत्थर पर दिखाई कला

Lucknow News: क्यूरेटर डॉ. वंदना सहगल ने बताया कि यह सभी मूर्तिशिल्प लखनऊ के सुंदरीकरण में विशेष सहयोग करने के लिए नगर के कई स्थानों पर प्रदर्शित किये जायेंगे।

Abhishek Mishra
Published on: 18 Oct 2024 2:00 PM GMT
Lucknow News: शैल उत्सव का पांचवां दिन, मूर्तिकारों ने पत्थर पर दिखाई कला
X

Lucknow News: डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के वास्तुकला एवं योजना संकाय में आयोजित शैल उत्सव के पांचवें दिन मूर्तिकारों ने अपनी कला को पत्थर पर संजोया। यहां क्यूरेटर डॉ. वंदना सहगल ने बताया कि यह सभी मूर्तिशिल्प लखनऊ के सुंदरीकरण में विशेष सहयोग करने के लिए नगर के कई स्थानों पर प्रदर्शित किये जायेंगे।


कांस्य स्क्रैप पर कार्य कर रहे पंकज

शिविर के कोऑर्डिनेटर धीरज यादव और रत्नप्रिया ने बताया कि शैल उत्सव मूर्तिकला शिविर में पटना, बिहार से आये पंकज कुमार ने बताया कि उन्होंने अपनी कला स्नातक की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से और स्नातकोत्तर की पढ़ाई आगरा विश्वविद्यालय से पूरी की। वह एक स्वतंत्र कलाकार के रूप में काम कर रहे हैं। पिछले दो वर्षों से वह लोहे और कांस्य स्क्रैप पर काम कर रहे हैं, उनके काम विभिन्न शहरों जैसे- दिल्ली (राजघाट) में (वसुधव कुटुंबकम्) बरेली, मुरादाबाद, जयपुर और हरिद्वार में प्रदर्शित किए गए हैं, उन्होंने ज्यादातर प्रीब्लिक किया है। उनकी मूर्तियों का आकार न्यूनतम 15 फीट और अधिकतम 30 फीट है। यहां शिविर में वह प्रकृति के अदृश्य हिस्से का चित्रण करना चाहते हैं। उनकी मूर्तिकला में दो आयाम हैं। एक सपाट और दूसरा नक्काशीदार रेखाएं। नक्काशीदार जीवन के माध्यम से वह प्रकृति के दृश्य भाग को दिखाना चाहते हैं और सपाट ठोस स्थान प्रकृति के अदृश्य भाग को दिखाना चाहते हैं।


कांस्य कास्टिंग से मूर्ति बनाते हैं गिरीश

शिविर में कार्य कर रहे लखनऊ से मूर्तिकार गिरीश पांडे जो वर्तमान में आर्किटेक्चर और प्लानिंग संकाय में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने 2000 में बी.एच.यू से मूर्तिकला में अपनी मास्टर डिग्री पूरी की, 2002 में उन्होंने कला और शिल्प महाविद्यालय लखनऊ में अतिथि अध्यापक हुए और एक साल के बाद वह 2002 में अतिथि संकाय के रूप में एफओएपी में शामिल हो गए। वह ज्यादातर मिक्स-मीडिया और कांस्य कास्टिंग करते हैं, उनका पसंदीदा माध्यम लकड़ी है। वह अपनी मूर्तिकला में एक या दो सामग्रियों का मिश्रण करना पसंद करते हैं। वह प्रकृति के विशाल जैविक रूपों से प्रेरित है। कभी-कभी वह अमूर्त रूपों का भी प्रयोग करते हैं। उनका मानना है कि हर सामग्री की अपनी प्रकृति होती है, इसलिए वह अपना काम करते समय बस उस सामग्री के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखने की कोशिश करते हैं। उनकी मूर्तियों में स्पेस एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह अपने मूर्तिकला में ज्यामितीय आकृतियों का उपयोग करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ज्यामितीय आकृतियाँ स्थिर होती हैं इसलिए यह मूर्तिकला में एक मजबूत भावना पैदा करती हैं। उन्होंने सूरज, पशु-पक्षी, शहर और सड़क पर गंभीर काम किया है। इस मूर्तिकला शिविर में वह प्रकृति के साथ संबंध दिखाने के लिए सरलीकृत ज्यामितीय आकृतियों का उपयोग कर रहे हैं।

छह सहायक मूर्तिकार राजस्थान से आए

कोऑर्डिनेटर भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि शिविर में आये दस मूर्तिकारों के सहयोग के लिए मकराना राजस्थान से छः सहायक मूर्तिकार अरफान अहमद, रियाशद, अल्फाज़ अहमद, रियाज, रहमान,साहिल,अफ़जल आये हुए हैं। जो सभी कलाकारों के साथ मिलकर उनके कार्यों को पूर्ण करने में सहयोग कर रहे हैं। ये सभी कलाकार 2001 से यह काम कर रहे है। और ये कलाकारों के साथ मिलकर कार्विंग का काम करते है। इसके अलावा ये वास्तुकारों के साथ भी बहुत से काम करते है,ये सभी लखनऊ में पहली बार काम कर रहे है। इन्होंने बड़े-बड़े मूर्तिकार जैसे बलबीर कट्ट,लतिका कट्ट आदि के साथ 10 साल काम किया है। इनके अलावा रॉबिन डेविड, टूटू पटनायक, नागजी पटेल आदि प्रख्यात कलाकारों के साथ भी काम किया है।

Abhishek Mishra

Abhishek Mishra

Correspondent

मेरा नाम अभिषेक मिश्रा है। मैं लखनऊ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। मैंने हिंदुस्तान हिंदी अखबार में एक साल तक कंटेंट क्रिएशन के लिए इंटर्नशिप की है। इसके साथ मैं ब्लॉगर नेटवर्किंग साइट पर भी ब्लॉग्स लिखता हूं।

Next Story