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Guru Purnima 2024: गुरू बिन भवनिधि तरहिं न कोई, जो बिरंचि संकर सम होई

Guru Purnima 2024: शास्त्रों में “गु” का अर्थ बताया गया है अंधकार और “रु” का का अर्थ उसका निरोधक। याने जो जीवन से अंधकार को दूर करे उसे गुरु कहा गया है।

Sanjay Tiwari
Published on: 21 July 2024 8:44 AM IST
Guru Purnima  2024
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Guru Purnima 2024 : (Pic:Social Media)

Guru Purnima 2024: सनातन भारतीय वांग्मय में गुरु को इस भौतिक संसार और परमात्म तत्व के बीच का सेतु कहा गया है। सनातन अवघारणा के अनुसार इस संसार में मनुष्य को जन्म भले ही माता पिता देते है लेकिन मनुष्य जीवन का सही अर्थ गुरु कृपा से ही प्राप्त होता है। गुरु जगत व्यवहार के साथ-साथ भव तारक पथ प्रदर्शक होते हैं। जिस प्रकार माता पिता शरीर का सृजन करते है उसी तरह गुरु अपने शिष्य का सृजन करते हैं। शास्त्रों में “गु” का अर्थ बताया गया है अंधकार और “रु” का का अर्थ उसका निरोधक। याने जो जीवन से अंधकार को दूर करे उसे गुरु कहा गया है।

आषाढ़ की पूर्णिमा को हमारे शास्त्रों में गुरुपूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु के प्रति आदर और सम्मान व्यक्त करने के वैदिक शास्त्रों में कई प्रसंग बताए गये हैं। उसी वैदिक परम्परा के महाकाव्य रामचरित मानस में गौस्वामी तुलसीदास जी ने कई अवसरों पर गुरु महिमा का बखान किया है।

मानस के प्रथम सोपान बाल काण्ड में वह एक सोरठा में लिखते है-

बंदउँ गुरु पद कंज,

कृपा सिंधु नररूप हरि।

महामोह तम पुंज,

जासु बचन रबि कर निकर।

अर्थात , मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा सागर है और नर रूप में श्री हरि अर्थात भगवान हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं। श्रीरामचरित मानस की पहली चौपाई में गुरु महिमा बताते हुए तुलसी दास जी कहते हैं-

बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।

सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।

अमिअ मूरिमय चूरन चारू।

समन सकल भव रुज परिवारू।।

अर्थात- मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को नाश करने वाला है।

इसी श्रृंखला में वह आगे लिखते है-

श्री गुर पद नख मनि गन जोती,

सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती।

दलन मोह तम सो सप्रकासू।

बड़े भाग उर आवइ जासू।।

अर्थात- श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं।

बाल काण्ड में ही गोस्वामी जी श्रीराम की महिमा लिखने से पहले लिखते है-

गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन।

नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥

अर्थात- गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है।

गुरु के सम्मुख कोई भेद छुपाना नहीं चाहिए इस बात को तुलसीदास जी मानस के बाल काण्ड में ही दोहे के माध्यम से कहते है-

संत कहहिं असि नीति प्रभु,

श्रुति पुरान मुनि गाव।

होइ न बिमल बिबेक उर,

गुर सन किएँ दुराव।।

अर्थात- संत लोग ऐसी नीति कहते हैं और वेद, पुराण तथा मुनिजन भी यही बतलाते हैं कि गुरु के साथ छिपाव करने से हृदय में निर्मल ज्ञान नहीं होता।

बाल काण्ड में ही शिव पार्वती संवाद के माध्यम से गुरु के वचनों की शक्ति बताते हुए वह कहते है-

गुरके बचन प्रतीति न जेहि,

सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही।।

अर्थात-जिसको गुरु के वचनों में विश्वास नहीं होता है उसको सुख और सिद्धि स्वप्न में भी प्राप्त नहीं होती है।

अयोध्या कण्ड के प्रारम्भ में गुरु वंदना करते हुए हुए तुलसीदास जी कहते है-

जे गुर चरन रेनु सिर धरहीं,

ते जनु सकल बिभव बस करहीं।।

मोहि सम यह अनुभयउ न दूजें,

सबु पायउँ रज पावनि पूजें।।

अर्थात- जो लोग गुरु के चरणों की रज को मस्तक पर धारण करते हैं, वे मानो समस्त ऐश्वर्य को अपने वश में कर लेते हैं।इसका अनुभव मेरे समान दूसरे किसी ने नहीं किया।आपकी पवित्र चरण-रज की पूजा करके मैंने सबकुछ पा लिया।

अयोध्या काण्ड में ही राम और सीता के संवाद के माध्यम से गोस्वामी जी एक दोहे में कहते हैं-

सहज सुहृद गुर स्वामि सिख,

जो न करइ सिर मानि ।

सो पछिताइ अघाइ उर,

अवसि होइ हित हानि ।

अर्थात- स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता वह हृदय में खूब पछताता है और उसके अहित की अवश्य होता है ।

उत्तर काण्ड में काकभुशुण्डिजी के माध्यम से एक चौपाई में वह कहते हैं-

गुरू बिन भवनिधि तरहिं न कोई।

जौं बिरंचि संकर सम होई।।

भले ही कोई भगवान शंकर या ब्रह्मा जी के समान ही क्यों न हो किन्तु गुरू के बिना भवसागर नहीं तर सकता। ऐसे और भी कईं प्रसंगों के माध्यम से कविकुल शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदासजी ने गुरु महिमा का वर्णन अपनी रचनाओं में किया है। गुरु की महिमा को स्वीकार करने वालों के लिए शब्दों की नहीं भाव की प्रधानता होती है। गुरु के प्रति समर्पण की जरुरत होती है। गुरु पूर्णिमा एक अवसर होता है जब हम गुरु के प्रति सम्मान सत्कार और अपनी तमाम भावनाएँ उन्हें समर्पित करते हैं।

यहां गुरू एवं शिष्य का संबंध अद्भुत है

श्रीमद्भगवद्गीता के उपदेशक स्वयं भगवान श्रीकृष्ण जगद्गुरु की ही भूमिका में उपस्थित हैं। गीता का मूल ही गुरु तत्व है। गीता की लोकप्रियता इसलिए है कि यह जीवन के संघर्ष का शास्त्र है। इसमें गुरु के रूप में स्वयं विलक्षण भगवान श्रीकृष्ण हैं और यहां गुरू एवं शिष्य का संबंध अद्भुत है। मातृ-पितृ, बंधु एवं सखा के रूप में गुरू बन कर शिष्य अर्जुन काे मार्ग दिखाया है। यह ग्रंथ कर्मों की व्याख्या करता है और कहता है कि व्यक्ति कर्म का समर्पण करने से पाप से मुक्त हो जाता है।

शास्त्र वाक्य में गुरु को ईश्वर के विभिन्न रूपों- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार्य है। गुरु को ब्रह्मा इसलिए कहा गया, क्योंकि वह शिष्य को गढ़ता है, उसे नव जन्म देता है। गुरु, विष्णु भी है, क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है। गुरु साक्षात महेश्वर भी है, क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है।

संत कबीर दास जी कहते हैं-

‘हरि रुठे गुरु ठौर है,

गुरु रुठे नहिं ठौर ॥’

अर्थात भगवान के रूठने पर तो गुरु की शरण रक्षा कर सकती है, किंतु गुरु के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना संभव नहीं। जिसे ब्राह्मणों ने आचार्य, बौद्धों ने कल्याण मित्र, जैनों ने तीर्थंकर और मुनि, नाथों तथा वैष्णव संतों और बौद्ध सिद्धों ने उपास्य सद्गुरु कहा है, उस श्रीगुरु से उपनिषद की तीनों अग्नियां भी थर-थर कांपती हैं। त्रैलोक्य पति भी गुरु का गुणगान करते हैं. ऐसे गुरु के रूठने पर कहीं भी ठौर नहीं।

कबीरदास जी कहते हैं-

सतगुरु की महिमा अनंत,

अनंत किया उपकार।

लोचन अनंत, अनंत दिखावण हार।।

अर्थात सद्गुरु की महिमा अपरम्पार है. उन्होंने शिष्य पर अनंत उपकार किये हैं। उसने विषय-वासनाओं से बंद शिष्य की बंद आंखों को ज्ञानचक्षु द्वारा खोलकर उसे शांत ही नहीं, अनंत तत्व ब्रह्म का दर्शन भी कराया है। आगे इसी प्रसंग में लिखते हैं-

भली भई जुगुर मिल्या,

नहीं तर होती हांणि।

दीपक दिष्टि पतंग ज्यूं,

पड़ता पूरी जांणि ।।

...तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी गाते हैं

अर्थात, अच्छा हुआ कि सद्गुरु मिल गये, वरना बड़ा अहित होता। जैसे सामान्य जन पतंगे के समान माया की चमक-दमक में पड़कर नष्ट हो जाते हैं, वैसे ही मेरा भी नाश हो जाता। जैसे पतंगा दीपक को पूर्ण समझ लेता है, सामान्यजन माया को पूर्ण समझ उस पर खुद को न्योछावर कर देते हैं, वैसी ही दशा मेरी भी होती। अतः सद्गुरु की महिमा तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी गाते हैं।

कलियुग में साक्षात सशरीर चिरंजीवी श्री हनुमान जी सभी के लिए कल्पवृक्ष स्वरूप उपलब्ध हैं। श्री हनुमान जी के परम शिष्यत्व ने हो श्री गोस्वामी जी को श्री राम चरित मानस का ज्ञान भी दिया और श्री सीताराम जी के साक्षात दर्शन की भी व्यवस्था की थी। वैसे भी बल, बुद्धि, विद्या के साथ साथ अष्ट सिद्धि और नौ निधियों के स्वामी श्री हनुमान जी से योग्य सदगुरु को पाना बहुत कठिन भी है।

मानव जीवन में दीक्षा गुरु के साथ ही अन्य 24 गुरुओं की भी महत्ता है। इनमें माता पिता का स्थान सर्वोपरि है। इसके बाद शिक्षक, प्रशिक्षक आदि का स्थान आता है।

आज गुरु पूर्णिमा की पावन तिथि के अवसर पर श्री हनुमान जी महाराज के साथ ही समस्त गुरुकुल के श्री चरणों में सादर नमन।।



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Ashish Kumar Pandey

Ashish Kumar Pandey

Senior Content Writer

I have 17 years of work experience in the field of Journalism (Newspaper & Digital). Started my journalism career on 1 April 2005 as a sub-editor from Dainik Bhaskar Jaipur. After that, on January 1, 2008, I worked as a sub editor in I- Next News Paper (Hindi Daily) till July 31, 2009. During this I handled the responsibility of the National Desk. From August 1, 2009 to September 13, 2010, worked in Amar Ujala on National Desk and City Desk in Bareilly and Moradabad as Senior Sub Editor. From 15 September 2010 to 31 October 2011, worked as Senior Sub Editor/Senior Reporter in Hindustan newspaper Bareilly. From November 1, 2011, worked in Gwalior on the post of Chief Sub Editor in Rajasthan Patrika Hindi daily newspaper. From July 1, 2017 to January 31, 2019, worked in Patrika Dotcom Hindi Web portal, Lucknow. Worked as News Editor in Amrit Prabhat from 1 February 2019 till 31 January 2021. During my career I got opportunity to work at General Desk, Sports, City Desk and have vast experience of journalism business. Whatever responsibilities were given, I accepted it with a challenge and performed it well. My Qualifications : - ‌MA Political Science from Gorakhpur University, Gorakhpur ‌PG Diploma in Mass Communication - Guru Jamveshwar University Hisar, Haryana My Interests: Reading, writing, playing, traveling. Interest in Media: Special interest in political news and also in the field of sports, crime, health etc.

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