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UP Lok Sabha Election: जब लखनऊ में निर्दलीय प्रत्याशी ने रच दिया इतिहास, पंडित और मुल्ला में कंफ्यूज हो गए वोटर
UP Lok Sabha Election 2024: निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में इस सीट पर जीत हासिल करने वाले पंडित आनंद नारायण मुल्ला की प्रसिद्धि न्यायविद और बेहतरीन शायर के रूप में थी।
UP Lok Sabha Election 2024: उत्तर प्रदेश की राजधानी होने के कारण लखनऊ लोकसभा सीट पर हमेशा सबकी निगाहें लगी रहती हैं। इस लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और लालजी टंडन जैसे दिग्गज कर चुके हैं। लखनऊ में अधिकांश मौकों पर कांग्रेस और भाजपा ने ही ताकत दिखाई मगर 1967 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर एक निर्दल प्रत्याशी ने जीत हासिल करके इतिहास रच दिया था।
यह पहला और आखिरी मौका था जब लखनऊ लोकसभा सीट पर किसी निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में इस सीट पर जीत हासिल करने वाले पंडित आनंद नारायण मुल्ला की प्रसिद्धि न्यायविद और बेहतरीन शायर के रूप में थी। हाईकोर्ट के जज रह चुके पंडित आनंद नारायण मुल्ला के चुनाव मैदान में उतरने के बाद लखनऊ के मतदाता पंडित और मुल्ला में इस कदर कंफ्यूज हुए कि उन्होंने कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी वेद रत्न मोहन को चुनाव मैदान में हरा दिया था। लखनऊ के पुराने लोग आज भी उस चुनाव को याद किया करते हैं।
निर्दलीय प्रत्याशी ने सबको चौंकाया
राजधानी लखनऊ की लोकसभा सीट पर 1952 के पहले चुनाव से लगातार कांग्रेस पार्टी जीत हासिल कर रही थी। जब 1967 में चुनाव का ऐलान हुआ तो देश की अन्य लोकसभा सीटों की तरह लखनऊ सीट पर भी कांग्रेस को ही सबसे मजबूत माना जा रहा था। कांग्रेस ने उस चुनाव में लखनऊ सीट के लिए नामी बिजनेसमैन और शराब व्यवसायी वेद रत्न मोहन को अपना प्रत्याशी बनाया।
मोहन को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद लखनऊ सीट पर उनकी जीत तय मानी जा रही थी। 1967 के चुनाव में जनसंघ की ओर से आरसी शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा गया था।
कांग्रेस की ओर से जोरदार प्रचार शुरू किए जाने के बाद चुनावी अखाड़े में एक ऐसे शख्स की एंट्री हुई जिसने सबको चौंका दिया। हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज और मशहूर शायर पंडित आनंद नारायण मुल्ला ने अचानक चुनाव लड़ने का फैसला किया और उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लखनऊ से नामांकन दाखिल कर दिया।
मुल्ला के उतरने से बदली सियासी तस्वीर
कांग्रेस प्रत्याशी वेद रत्न मोहन आर्थिक दृष्टि से काफी मजबूत थे और उन्होंने चुनाव प्रचार शुरू होने के साथ ही पैसा बहाना शुरू कर दिया था। लखनऊ के रणक्षेत्र में हर जगह उनका ही प्रचार दिख रहा था। दूसरी ओर रिटायर्ड जज और मशहूर शायर पंडित आनंद नारायण मुल्ला के पास न तो पैसे की ताकत थी और न चुनाव प्रचार करने के लिए कार्यकर्ताओं का हुजूम।
उन्होंने चुनाव लड़ने की अपनी जिद के कारण नामांकन दाखिल कर दिया था मगर हैरानी इस बात की थी कि उनके चुनाव मैदान में उतरने के कारण लखनऊ की सियासी तस्वीर बदल गई।
पंडित और मुल्ला में कंफ्यूज हो गए वोटर
पंडित आनंद नारायण मुल्ला को लेकर लखनऊ के वोटर पूरी तरह कंफ्यूज हो गए। अधिकांश मतदाता आखिर तक यह समझ ही नहीं सके कि वे ब्राह्मण हैं या मुसलमान। मतदाताओं के बीच आखिरी समय तक यह भ्रम बना रहा और इसी का नतीजा था कि हिंदुओं और मुसलमान दोनों ने मुल्ला के पक्ष में जमकर मतदान किया। उन्हें लखनऊ के हर गली-मोहल्ले में लोगों का समर्थन हासिल हुआ और पढ़े लिखे संभ्रांत लोगों ने भी उनके पक्ष में वोटिंग की।
मतदान के बाद जब काउंटिंग कराई गई तो लोग हैरान रह गए क्योंकि पंडित आनंद नारायण मुल्ला लखनऊ लोकसभा सीट पर 92,535 वोट पाने में कामयाब हुए थे। उन्होंने अपने विपक्षी कांग्रेस के उम्मीदवार वेद रत्न मोहन को 20,972 मतों से हराकर विजय हासिल की थी।
कश्मीरी ब्राह्मण थे मुल्ला
पंडित आनंद नारायण मुल्ला के संबंध में लखनऊ के मुसलमान मतदाता तो जरूर कंफ्यूज हो गए मगर सच्चाई यह थी कि वे कश्मीरी ब्राह्मण थे। उनके पिता का नाम पंडित जगत नारायण था। वे उर्दू भाषा के काफी जानकार और मशहूर शायर थे। उर्दू के प्रति उनकी दीवानगी के कारण ही उन्हें मुल्ला टाइटल दे दी गई थी और बाद में वे पंडित आनंद नारायण मुल्ला के नाम से मशहूर हो गए।
बेबाक बयानों के लिए चर्चित
वे अपना बेबाक बयानों के लिए जाने जाते थे और एक बार उन्होंने यूपी पुलिस के बारे में ऐसा बयान दे दिया था जो देशभर में चर्चा का विषय बन गया था। उन्होंने यूपी पुलिस को देश में संगठित अपराधियों का सबसे बड़ा गिरोह बताया था और उनके इस बयान को लेकर हड़कंप मच गया था।
मुल्ला ने अपना पूरा चुनाव लोगों के समर्थन के दम पर लड़ा था। तमाम बूथों पर ऐसे लोग उनके एजेंट थे जिन्हें वे व्यक्तिगत रूप से पहचानते भी नहीं थे। तमाम अपरिचित लोगों ने उनकी भरपूर मदद की और इसी के दम पर उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की थी। लखनऊ के पुराने लोग आज भी उस यादगार चुनाव को नहीं भूल सके हैं।
उर्दू अकादमी के चेयरमैन भी रहे
1967 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद वे 1972 से 1978 तक राज्यसभा के भी सदस्य रहे। उन्होंने उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के चेयरमैन के रूप में भी काम किया। उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड और इकबाल सम्मान भी प्रदान किया गया था। 1997 में 96 साल की उम्र में उनका निधन हुआ।
1962 में तीनों उम्मीदवारों को मिले मतों का ब्योरा
पंडित आनंद नारायण मुल्ला- 92,535 (36.5 प्रतिशत)
वेद रत्न मोहन- 71,563 (28.27 प्रतिशत)
आर.सी.शर्मा- 60,291 (23.81 प्रतिशत)
पंडित आनंद नारायण मुल्ला के मशहूर शेर
पंडित आनंद नारायण मुल्ला का जिक्र करने पर उनके मशहूर शेरों का जिक्र करना भी जरूरी हो जाता है। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई ऐसे मशहूर शेर लिखे जिनका उल्लेख आज भी किया जाता है। उनके कुछ मशहूर शेर इस प्रकार हैं-
-इश्क़ करता है तो फिर इश्क़ की तौहीन न कर,
या तो बेहोश न हो, हो तो, न फिर होश में आ।
-नज़र जिसकी तरफ़ करके निगाहें फेर लेते हो,
क़यामत तक फिर उस दिल की परेशानी नहीं जाती।
-आईना-ए-रंगीन जिगर कुछ भी नहीं क्या,
क्या हुस्न ही सबकुछ है नज़र कुछ भी नहीं क्या।
-अब और इसके सिवा चाहते हो क्या 'मुल्ला'
ये कम है उसने तुम्हें मुस्कुरा के देख लिया।
-वो देखने तो लगे हैं मुझे चुरा के नज़र,
हिज़ाब टूट रहे हैं, मगर हिजाब के साथ।
-दूर ही से दिल ही दिल में हम तुम्हें चाहा किये
बंद कर ली आंख और पहरों तुम्हें देखा किये
-अपना दर्दे-दिल समझने की यहां फ़ुर्सत किसे,
हम तो औरों का तड़पना देखकर तड़पा किये।
-साक़ी की निगाहों में तो मुजरिम न बनूंगा,
टूटेंगे तो टूटें मेरे तौबा के इरादे।
-झूठी तसल्लियों की कोई इन्तिहां भी है ?
बच्चे भी इस तरह नहीं बहलाये जाते।
-इक-इक लमहे में जब सदियों की सदियां कट गईं,
ऐसी कुछ रातें भी गुजरीं हैं मेरी तेरे बगैर।
-मुझे समझाने आए हैं कि मैं रोने से बाज़ आऊं,
मेरे समझाने वालों की नज़र नम होती जाती है।