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Loksabha Elections: लखनऊ से महज एक बार जीता निर्दलीय प्रत्याशी, आनंद नारायण मुल्ला ने रचा था इतिहास
Lucknow Loksabha Seat: एएन मुल्ला ने कांग्रेस उम्मीदवार पद्मभूषण उद्यमी वेद रतन मोहन को 20,972 मतों से हराकर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव प्रचार के लिए कई जानी मानी हस्तियां मैदान में उतरीं थी। इसके बावजूद निर्दलीय प्रत्याशी ने बड़े अंतर से जीत हासिल की।
Loksabha Elections: उत्तर प्रदेश की राजधानी होने के नाते लखनऊ लोकसभा सीट देश की सबसे चर्चित सीटों में से एक है। क्षेत्र की जनता ने कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों पर कई बार भरोसा जताया है। आजादी के बाद से इस लोकसभा क्षेत्र में सिर्फ एक बार निर्दलीय प्रत्याशी चुना गया है। 1967 लोकसभा चुनावों में आनंद नारायण मुल्ला ने निर्दलीय चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया।
जनता ने बड़े नेताओं को दिया मौका
लखनऊ लोकसभा के मतदाताओं ने अधिकतर बड़े चेहरों को चुनाव जिताया है। इसके बीच आनंद नारायण मुल्ला पहली बार यहां से निर्दलीय चुनाव जीते। एएन मुल्ला लेखक और कवि के रूप में काफी चर्चित रहे हैं। बता दें कि लखनऊ से भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी लगातार पांच बार सांसद चुने गए थे। लखनऊ की जनता ने विजयलक्ष्मी पंडित, शीला कौल, पुलिन बनर्जी, बीके धवन, हेमवती नंदन बहुगुणा, मानधाता सिंह और लालजी टंडन को भी लोकसभा में पहुंचाया है। वरिष्ठ भाजपा नेता और देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह वर्तमान में लोकसभा सांसद हैं।
कांग्रेस प्रत्याशी को 20,972 मतों से हराया
आनंद नारायण मुल्ला ने 1967 लोकसभा चुनावों ने निर्दलीय चुनाव जीता। इस समय देश में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व था। एएन मुल्ला ने कांग्रेस उम्मीदवार पद्मभूषण उद्यमी वेद रतन मोहन को 20,972 मतों से हराकर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव प्रचार के लिए कई जानी मानी हस्तियां मैदान में उतरीं थी। इसके बावजूद निर्दलीय प्रत्याशी ने बड़े अंतर से जीत हासिल की।
1967 के चुनाव में निर्दलीय जीते
एएन मुल्ला का नाम इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। लखनऊ लोकसभा से उनके बाद कोई निर्दलीय प्रत्याशी जीत नहीं सका। 1967 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ में 4,58,070 मतदाता थे। इसमें 2,65, 136 मतदाताओं ने वोट डाले। मुल्ला को 92535 वोट मिले। दूसरे स्थान पर रहे रतन मोहन को 71563 वोट मिले थे। एएन मुल्ला कानूनविद थे। वह वर्ष 1954 से 1961 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज रहे। उन्हें साहित्य पुरस्कार इकबाल सम्मान भी मिला। सांसद बनने के बाद वह कांग्रेस शामिल हो गए।