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Lucknow News: प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की सबसे तेजस्वी ज्वाला थीं लक्ष्मी बाई - जन्म जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में याद की गई महारानी लक्ष्मीबाई
Lucknow News: भारत समृद्धि के तत्वावधान में जन्म जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में महारानी लक्ष्मी बाई को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए और उनके जीवन से संबंधित अनेक वीरोचित घटनाओं का स्मरण किया गया।
Lucknow News: भारत समृद्धि के तत्वावधान में जन्म जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में महारानी लक्ष्मी बाई को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए और उनके जीवन से संबंधित अनेक वीरोचित घटनाओं का स्मरण किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि उप्र विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष मा हृदय नारायण दीक्षित रहे तथा मुख्य वक्ता ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे थे। संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के तौर पर डॉ. सी.के कंसल, श्री श्यामजी त्रिपाठी (सदस्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग उ.प्र), श्रीमती पुष्प लता अग्रवाल (संस्थापक अध्यक्ष सेंट जोसेफ विद्यालय समूह लखनऊ), प्रोफेसर बृजेन्द्र पांडे, राजनीति शास्त्र विभाग, विद्यांत हिंदू पीजी कालेज व कार्यक्रम अध्यक्ष–श्री राम कुमार वर्मा (अध्यक्ष व्यापार मंडल) उपस्थित रहे।
मुख्य अतिथि उप्र विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि महारानी लक्ष्मीबाई स्वराज्य के लिए लड़ीं और स्वराज्य की नीव बनकर उन्होंने अपने जीवन की आहुति दी। उन्होंने कहा कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अनेक लोगों ने बलिदान दिया किन्तु इस स्वतंत्रता संग्राम की सबसे तेजस्वी ज्वाला लक्ष्मीबाई ही थीं। उन्होंने कहा कि आज महारानी लक्ष्मीबाई के जीवन से प्रेरणा लेते हुए राष्ट्रवाद की भावना के साथ भारत को विश्व की महाशक्ति बनाने में जुटे, यही आज उनकी जन्म जयंती को सार्थक बना सकेगा।
महारानी लक्ष्मीबाई के बिना 1857 की क्रान्ति असंभव थी
मुख्य वक्ता शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है तो असंख्य योद्धाओं का स्मरण करना जरूरी है जिन्होंने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया। महारानी लक्ष्मीबाई के साथ मुख्य रूप से नाना साहेब पेशवा, बहादुर शाह जफर,वीर कुंवर सिंह, तात्या टोपे, तोपची गौस खां, मौलवी अजीमुल्ला,बेगम हजरत महल का स्मरण किये बिना इस महान क्रांति को नही समझा जा सकता। किन्तु महारानी लक्ष्मीबाई के बिना 1857 की क्रान्ति का इतिहास लिखा ही नहीं जा सकता।
उन्होंने कहा अंग्रेजों के प्रबल सेनापति जनरल ह्यूरोज को सपने में भी लक्ष्मीबाई का पराक्रम दिखता था। उसके उद्गार थे -" लक्ष्मीबाई विद्रोहियों में सर्वाधिक वीर और सर्वश्रेष्ठ दर्जे की सेनानी थीं।" वीर सावरकर ने लिखा - "1857 में मातृभूमि के हृदय में जो ज्योति प्रज्वलित हुई, उसने आगे चलकर विस्फोट कर दिया, सारा देश बारूद का भंडार बन गया,हर ओर संघर्ष और युद्ध का तांडव होने लगा। यह ज्वालामुखी का विस्फोट था किंतु बाबा गंगादास की कुटिया के पास 18 जून 1858 को जली चिता की ज्वाला 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के ज्वालामुखी से निकली सबसे तेजस्वी ज्वाला थी।"
उन्होंने कहा की महारानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में हुई 1857 की क्रांति विश्व की एक महान आश्चर्यजनक, अत्यंत प्रभावी और परिवर्तनकारी घटना थी। इसने न केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद की चूलें हिला दीं अपितु यूरोप में भी नवचेतना जागृत की। यह किसी उत्तेजना से उत्पन्न आंदोलन नहीं था। इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तीनों आयाम थे।
ख़ूबई लड़ी रे मर्दानी
उन्होंने कहा लक्ष्मी बाई के प्रति सम्मान में कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान की "खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी" एक कालजयी रचना है। बुंदेलखंड में प्रचलित लोकगीत की कुछ पंक्तियां - " ख़ूबई लड़ी रे मर्दानी, ख़ूबई जूझी रे मर्दानी बा तो झांसी वारी रानी। अपने सिपहियन को लड्डू खबावें , आपई पियें ठंडा पानी बा तो झांसी वारी रानी"
संगोष्ठी का संचालन महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष रीना त्रिपाठी ने किया। भारत समृद्धि के महामंत्री धीरज उपाध्याय और त्रिवेणी मिश्र ने सभी अतिथियों और आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापन किया। संगोष्ठी में संस्था और क्षेत्र के गणमान्य लोगों में त्रिवेणी मिश्रा, सूर्यप्रकाश उपाध्याय एडवोकेट, ओपी सक्सेना सीए, पूर्व पार्षद कमलेश सिंह आदि मौजूद थे ।