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LU News: Msc के इस विषय में अब नहीं मिलेगा प्रवेश, जानिए कोर्स बंद करने की वजह
Lucknow University: कुलपति के भेजे गए पत्र के मुताबिक विद्यार्थी विज्ञान संकाय के अलग-अलग विभागों में एम.एस.सी. कोर्स जैसे जैव रसायन, जैव प्रौद्योगिकी, माइक्रो बायोलाजी एवं बी.एस.सी. जेनेटिक्स में इस क्षेत्र में गहन अध्ययन और प्रशिक्षण हासिल करते हैं। इसलिए एम.एस.सी. इन मॉलिक्यूलर एंड ह्यूमन जेनेटिक्स कोर्स को बंद करने पर विचार होना चाहिए।
Lucknow University: लखनऊ विश्वविद्यालय की ओर से एम.एस.सी (Msc) के एक विषय की पढ़ाई को बंद करने की तैयारी कर ली गई है। अभी तक संचालित एम.एस.सी इन मॉलिक्यूलर एंड ह्यूमन जेनेटिक्स कोर्स (Msc in molecular and human genetics course) में नए सत्र से प्रवेश न लेने का फैसला लिया जाएगा। इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस मॉलिक्यूलर जेनेटिक्स एंड इन्फेक्शियस डिजीज (Institute of advance molecular genetics and infectious disease) की निदेशक डॉ. मीनल गर्ग ने कुलपति को पत्र भेजकर कोर्स बंद किए जाने का अनुरोध किया है।
नए सत्र से इस कोर्स को बंद करने की तैयारी
एलयू के इंस्टीट्यूट आफ एडवांस मॉलिक्यूलर जेनेटिक्स एंड इन्फेक्शियस डिजीज में एम.एस.सी इन मालिक्यूलर एंड ह्यूमन जेनेटिक्स कोर्स सेल्फ फाइनेंस मोड पर संचालित है। जिसे नए सत्र से बंद करने पर विचार हो रहा है। इस संबंध में इंस्टिट्यूट की निदेशक ने कुलपति को पत्र भेजा है। जानकारी के अनुसार मौजूदा समय इस कोर्स में दूसरे सेमेस्टर में 23 और चौथे सेमेस्टर में 15 छात्र हैं। कुलपति के भेजे गए पत्र के मुताबिक विद्यार्थी विज्ञान संकाय के अलग-अलग विभागों में एम.एस.सी. कोर्स जैसे जैव रसायन, जैव प्रौद्योगिकी, माइक्रो बायोलाजी एवं बी.एस.सी. जेनेटिक्स में इस क्षेत्र में गहन अध्ययन और प्रशिक्षण हासिल करते हैं। इसलिए एम.एस.सी. इन मॉलिक्यूलर एंड ह्यूमन जेनेटिक्स कोर्स को बंद करने पर विचार होना चाहिए। इसके अलावा छात्रों की कम संख्या भी कोर्स को बंद करने के पीछे की बड़ा कारण है।
कोर्स में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या कम
लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दुर्गेश श्रीवास्तव ने बताया कि एम.एस.सी. इन मॉलिक्यूलर एंड ह्यूमन जेनेटिक्स कोर्स विद्यार्थियों की संख्या कम थी। इसलिए आगामी सत्र से इस कोर्स को बंद करने का फैसला लिया जा रहा है। एलयू को प्रधानमंत्री उषा योजना के तहत शोध के लिए ग्रांट मिलने वाली है। इसके जरिए विश्वविद्यालय में हो रहे शोध कार्यक्रमों को काफी मदद भी मिलेगी।