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Ayodhya Ram Mandir: गोंडा की महारानी ने राजकीय खर्च पर छपवाई थी उर्दू में ‘रामायन’, एलयू के डॉ. हाशमी ने किया अनुवाद
Ayodhya Ram Mandir: लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के सहायक आचार्य डॉ. फाजिल अहसन हाशमी ने प्रख्यात साहित्यकार लाला नानक चंद खत्री उर्फ नानक लखनवी की किताब का हिंदी में अनुवाद किया है। नानक लखनवी ने मर्सिया पद्धति पर उर्दू में रामायन लिखी थी।
Ayodhya Ram Mandir: लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के सहायक आचार्य डॉ. फाजिल अहसन हाशमी ने प्रख्यात साहित्यकार लाला नानक चंद खत्री उर्फ नानक लखनवी की किताब का हिंदी में अनुवाद किया है। नानक लखनवी ने मर्सिया पद्धति पर उर्दू में रामायन लिखी थी।
नानक लखनवी ने उर्दू भाषा में लिखी ‘रामायन’ में भगवान राम के जीवन को नौ खंडो में प्रस्तुत किया था। नानक की रचना छह पंक्तियों पर आधारित थी। उन्होंने 1931 में मार्सिया पद्धति में रामायन लिखकर बहुत ऐतिहासिक काम किया था। डॉ फाजिल ने बताया कि नानक लखनवी दिनभर घूम-घूम कर लोगों को अपनी रचना सुनाया करते थे। कुछ समय बाद उनकी इस रचना की चर्चा लोगों में फैल गयी। गोंडा की रानी जामवंती कुंवर तक भी रचना की खबर पहुंची। जिसके बाद उन्होंने नानक को महल में बुलवाया। डॉ. हाशमी बताते हैं कि रानी जामवंती ने नानक की नौ खंडों वाली रामायन सुनी। उसके बाद रानी ने उनकी रचना के तीन खंडों के राजकीय खर्च पर प्रकाशिकृत करने का आदेश दिया। राजकीय खर्च पर प्रकाशित होने वाले तीन खंड मतलए नूर, वीरानिए अवध और खुशनसीब चित्रकूट थे। तीनों खंडों को 1931 में रामायन नाम से उर्दू भाषा में प्रकाशित किया गया।
रचनाओं को गाकर बेचते थे नानक
लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के सहायक आचार्य डॉ. फाजिल अहसन हाशमी ने बताया कि नानक लखनवी का जन्म साल 1893 में चौक स्थित बहोरन टोला में हुआ। नानक ने 1908 में अपने काव्य संग्रहों को पुस्तकों में तब्दील करने लगे। उन पुस्तकों को वे गांवों में घूमकर बेचा करते थे। डॉ. फाजिल बताते हैं कि नानक लखनवी की कविताओं का भाव सनातन धर्म, देवताओं की प्रशंसा, अय्याशी और जुए से जुड़ाव रखता था। नानक की मातृभाषा उर्दू थी। वह हिंदी, उर्दू तथा फारसी भाषा नहीं पढ़ पाते थे। चौक में ही उनकी एक चिकन की दुकान थी।
गोंडा की महरानी ने राजकीय खर्च पर छपवाई ‘रामायन’
नानक लखनवी ने उर्दू भाषा में लिखी ‘रामायन’ में भगवान राम के जीवन को नौ खंडो में प्रस्तुत किया था। नानक की रचना छह पंक्तियों पर आधारित थी। उन्होंने 1931 में मार्सिया पद्धति में रामायन लिखकर बहुत ऐतिहासिक काम किया था। डॉ फाजिल ने बताया कि नानक लखनवी दिनभर घूम-घूम कर लोगों को अपनी रचना सुनाया करते थे। कुछ समय बाद उनकी इस रचना की चर्चा लोगों में फैल गयी। गोंडा की रानी जामवंती कुंवर तक भी रचना की खबर पहुंची। जिसके बाद उन्होंने नानक को महल में बुलवाया। डॉ. हाशमी बताते हैं कि रानी जामवंती ने नानक की नौ खंडों वाली रामायन सुनी। उसके बाद रानी ने उनकी रचना के तीन खंडों के राजकीय खर्च पर प्रकाशिकृत करने का आदेश दिया। राजकीय खर्च पर प्रकाशित होने वाले तीन खंड मतलए नूर, वीरानिए अवध और खुशनसीब चित्रकूट थे। तीनों खंडों को 1931 में रामायन नाम से उर्दू भाषा में प्रकाशित किया गया।
प्रभु राम के चरित्र और संघर्ष की कहानी
लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के सहायक आचार्य डॉ. फाजिल अहसन हाशमी ने अपनी किताब ‘रामायन’ में राम भगवान के जीवन का वर्णन किया है। डॉ. हाशमी ने अपनी किताब में ‘सुना दें अहले जबां को जबाने रामायन, दिखा दें अहले बसीरत को शाने रामायन...’ ये सारा फैजे करामत है राम लक्ष्मन का, खुशी है जश्ने वेलादत है राम लक्ष्मन का... जैसी पंक्तियों से भगवान राम के चरित्र और संघर्ष को बताया है। यह किताब प्रभु राम के चरित्र और संघर्ष का संग्रह है।