TRENDING TAGS :
Lucknow News: आंसुओं से थम गया अट्टहास, पत्रकारिता के सुनहरे दौर के गवाह अनूप श्रीवास्तव भी चले गए
Lucknow News: अनूप श्रीवास्तव जी के संपादन में अट्टहास पत्रिका का ये आखिरी अंक था। प्रिंट लाइन बदल जाएगी पर अट्टहास जारी रहेगी। शो मस्ट गो ऑन।
Journalist Anoop Srivastava: अट्टहास अंत में आंखों में आंसू ला देता है। ज़िन्दगी भी अट्टहास है और हंसती-खेलती ज़िन्दगी का अंत भी आंसू यानी मौत है। अनूप श्रीवास्तव जी के संपादन में अट्टहास पत्रिका का ये आखिरी अंक था। प्रिंट लाइन बदल जाएगी पर अट्टहास जारी रहेगी। शो मस्ट गो ऑन। सुनहरे दौर की पत्रकारिता का एक और गवाह चला गया।
चर्चित कालम कांव कांव
पत्रकार, साहित्य और संपादक अनूप श्रीवास्तव जी के जीवन की डेडलाइन (समय सीमा) 83 बरस ही थी। इस समय सीमा में उनकी जिन्दगी के अखबार में खबरों का खजाना था। एक आलराउंडर कलमनवीस की तरह वो अच्छे रिपोर्टर और बेहतरीन संपादक भी थे। अखबारी दुनिया में व्यंग्य साहित्य को स्थान देने वाले चंद पत्रकारों में उनका भी नाम शुमार था। अपने जमाने के मशहूर अखबार स्वतंत्र भारत का चर्चित व्यंग्य कॉलम "कांव-कांव" उन्होंने काफी दिनों तक लिखा। राजनीतिक रिपोर्टिंग के वो माहिर थे। खास कर कांग्रेस बीट में उनकी सबसे अच्छी पकड़ थी। उनके पास सोर्सेज (सूत्रों) का खजाना था।
आस्था चैनल को लांच करवाया
राज्य मुख्यालय की एक्सक्लूसिव खबरें उन तक घर चल कर आती थीं। विख्यात पत्रकार माधवकांत मिश्र जी के साथ देश के पहले आध्यात्मिक चैनल आस्था को उन्होंने लांच करवाया था। स्वतंत्र भारत की हड़ताल के दौरान बतौर संपादक अनूप जी ने अखबार को बचाने की हर संभव कोशिश की।
रिटायर होने के बाद अट्टहास
अखबार से रिटायर होने के बाद व्यंग्य विधा पर आधारित पत्रिका अट्टहास शुरू की। जीवन के अंत तक उन्होंने इसका संपादन किया। आठ दशक के जीवन में पांच दशक से ज्यादा समय पत्रकारिता को समर्पित कर दिए। तीस वर्षों से अधिक स्वतंत्र भारत में सेवाएं देने के बाद जीवन के अंत तक (पच्चीस वर्ष से अधिक) वो अट्टहास के संपादक और प्रकाशक रहे। देश-दुनिया के विख्यात साहित्यकारों/व्यंग्यकारों को उन्होंने भव्य अट्टहास सम्मान समारोह में सम्मानित किया।
तनहाई का दंश
किंतु मौत शास्वत है। हर जीवन का अंत मृत्यु है। हर अट्टहास हंसाते-हंसाते अंत में आंखों में आंसू देता है। गहमागहमी तनहाई का दंश देती है। पत्रकारिता और साहित्य के चकाचौंध मे अनूप जी जब जीवन की आठवीं दहाई की तरफ बढ़े तो तनहाई के अंधेरे उन्हें अखरने लगे थे। पत्रकार बेटी शिल्पा की ससुराल दूसरे शहर मे है और बेटा विदेश में रहता है। इस बीच पत्नी ही उनका एकमात्र सहारा थी। अक्सर वो कहते थे-बेटा तन्हाई अखरती है। जो उनकी जिन्दगी के मेले में साथ थे उसमें कुछ चले गए और कुछ चलने फिरने की स्थिति मे नहीं। और मौजूदा पीढ़ी के वर्किंग जर्नलिस्ट्स के पास अपने बुजुर्गों से मिलनें और उनका हाल पूछने की तौफीक नहीं रहती। (मैं भी उन नाकारों में शामिल हूं।)
श्रद्धांजलि