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BSP राजनीति का बीजेपीकरण: सामाजिक आंदोलन को बचाने की चुनौती, बहुजन आंदोलन को पुनर्जीवित का संकल्प डॉ. उदित राज

डॉ. उदित राज ने एक प्रेसवार्ता को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि 1980 के दशक में कांशीराम ने उत्तर प्रदेश में बहुजन जागृति की शुरुआत की थी।

Virat Sharma
Published on: 17 Feb 2025 7:07 PM IST
BSP राजनीति का बीजेपीकरण: सामाजिक आंदोलन को बचाने की चुनौती, बहुजन आंदोलन को पुनर्जीवित का संकल्प डॉ. उदित राज
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Lucknow News: राजधानी में सोमवार को स्टेट गेस्ट हाउस में पूर्व सांसद और राष्ट्रीय चेयरमैन, दलित, ओबीसी, माइनॉरिटी एवं आदिवासी परिसंघ (डोमा परिसंघ) डॉ. उदित राज ने एक प्रेसवार्ता को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि 1980 के दशक में कांशीराम ने उत्तर प्रदेश में बहुजन जागृति की शुरुआत की थी। जो 2000 के दशक में अपने चरम पर पहुंची। भले ही इस आंदोलन ने राजनीतिक रूप लिया, लेकिन इसका मूल आधार सामाजिक न्याय था।

बसपा के संघर्ष और कार्यकर्ताओं की स्थिति

डॉ. उदित राज ने बहुजन समाज पार्टी की राजनीति को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि मायावती की राजनीति में भ्रष्टाचार, दुर्व्यवहार और कार्यकर्ताओं से दूरी जैसे कारणों के बावजूद, बसपा की राजनीतिक ताकत लंबे समय तक कायम रही। इसके बावजूद, पार्टी के कार्यकर्ताओं को अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके बच्चों की शिक्षा पर असर पड़ा और उन्हें शोषण का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके, कार्यकर्ता समाज की बेहतरी के लिए संघर्षरत रहे।

नई उम्मीद और डोमा परिसंघ की पहल

पूर्व सांसद डॉ. उदित राज ने कहा कि कई कार्यकर्ता निराशा का सामना कर रहे हैं और कुछ ने छोटे-छोटे संगठन बनाए हैं, लेकिन उनकी सोच खत्म नहीं हुई है। इस संकट से उबरने के लिए डोमा परिसंघ मैदान में उतरा है, जिसके संरक्षक जस्टिस सभाजीत यादव और सह- संरक्षक नारायण सिंह पटेल हैं। डोमा परिसंघ ने अपने पहले प्रदेश स्तरीय सम्मेलन का आयोजन लखनऊ में किया, जिसमें कांशीराम के पुराने साथी भी शामिल हुए। इस सम्मेलन में यह संकल्प लिया गया कि बहुजन आंदोलन को पुनर्जीवित किया जाएगा।

मुस्लिम समाज का संघर्ष और डोमा परिसंघ की भूमिका

डॉ. राज ने यह भी कहा कि आज मुस्लिम समाज भी वही बुरे हालात झेल रहा है, जो कभी दलितों के थे। उनका मानना था कि मुस्लिम समाज अकेले अपनी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता, जैसे दलित अकेले अपने अधिकारों की लड़ाई नहीं लड़ सकता। उन्होंने उदाहरण दिया कि जब भी मुस्लिम समाज अपनी समस्याएं उठाता है, उसे सांप्रदायिकता से जोड़ दिया जाता है। उन्होंने बताया कि डोमा परिसंघ की पहली रैली दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई, जिसमें वक्फ बोर्ड को बचाने की मांग प्रमुखता से उठाई गई।

डॉ. अंबेडकर और सामाजिक न्याय का संघर्ष

पूर्व सांसद ने डॉ. अंबेडकर के संघर्ष की याद दिलाते हुए कहा कि उनके जीवन का संघर्ष आज भी प्रासंगिक है। उनका कहना था कि यदि डॉ. अंबेडकर के सिद्धांतों पर गंभीरता से अमल किया जाता तो समाज में बदलाव आ सकता था। उन्होंने अंबेडकरवादियों से अपील की कि वे जातिवाद और जातीय संगठनों के खिलाफ काम करें और अपनी सोच को बदलें।

नई संरचना और उद्देश्य

डोमा परिसंघ के संगठन की संरचना में दलित, ओबीसी, मुस्लिम और आदिवासी समुदायों के प्रतिनिधियों को हर स्तर पर शामिल करने की योजना है। डॉ. राज ने कहा कि अब तक जो बहुजन संगठनों का गठन हुआ है, वे मुख्यतः जाति या व्यक्ति विशेष पर आधारित रहे हैं। डोमा परिसंघ इस सोच को बदलने की दिशा में काम करेगा और समाज के हर वर्ग की हिस्सेदारी सुनिश्चित करेगा।

डोमा परिसंघ ने आगामी 6 संभागीय सम्मेलनों के आयोजन की घोषणा की है, जो उत्तर प्रदेश के प्रमुख केंद्रों जैसे झांसी, बांदा, श्रावस्ती, कानपुर, मेरठ और आजमगढ़ में आयोजित होंगे। इन सम्मेलनों के माध्यम से डोमा परिसंघ बहुजन समाज के लिए एक मजबूत आंदोलन का निर्माण करेगा।



Virat Sharma

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Lucknow Reporter

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