Lucknow University: आजादी से दस बरस पहले फहराया गया तिरंगा, यह छात्र नेता कहलाया स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

Lucknow University: पुस्तक के अनुसार वर्ष 1937 में एलयू के एक कार्यक्रम में गवर्नर जनरल हेटली और मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत को शामिल होना था। उस वक्त स्वतंत्रता आंदोलन का दौर चल रहा था। इसलिए कई दिन पहले से सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई थी।

Abhishek Mishra
Published on: 15 Aug 2024 7:15 AM GMT
Lucknow University: आजादी से दस बरस पहले फहराया गया तिरंगा, यह छात्र नेता कहलाया स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
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Lucknow University: लखनऊ विश्वविद्यालय में स्वतंत्रता मिलने से 10 वर्ष पहले ही तिरंगा फहरा दिया गया था। उस वक्त एलयू के छात्र नेता ने अपनी जान हथेली पर रखकर यह कार्य किया था। जिसके बाद छात्र को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की उपाधि भी दी गई।

1937 में फहराया गया तिरंगा

देश को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली थी। इसके बाद सरकारी दफ्तरों, विश्वविद्यालयों समेत अन्य संस्थानों में झंडा फहराया जाने लगा। लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय में यह कार्य छात्रसंघ अध्यक्ष रहे जय नारायण श्रीवास्तव ने वर्ष 1937 में ही कर दिखाया था। लेखक सचिन त्रिपाठी की पुस्तक लखनऊ विश्वविद्यालय शून्य से 100 तक में इसका उल्लेख मिलता है। पुस्तक के अनुसार वर्ष 1937 में एलयू के एक कार्यक्रम में गवर्नर जनरल हेटली और मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत को शामिल होना था। उस वक्त स्वतंत्रता आंदोलन का दौर चल रहा था। इसलिए कई दिन पहले से सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई थी। इस दौरान जय नारायण श्रीवास्तव ने अपने साथियों संग तय किया कि कला प्रांगण के भवन पर तिरंगा ही फहराया जाएगा। इसके लिए वह एक दिन पहले ही कला प्रांगण की छत पर जाकर बैठ गए। जब गवर्नर और मुख्यमंत्री के आने का समय हुआ उससे पहले ही उन्होंने ब्रिटिश झंडे को तिरंगे से बदल दिया। इसके बाद जब झंडा फहराया गया तो तिरंगा देखकर सभी आश्चर्यचकित रह गए। वहां मौजूद लोगों को पता चल गया था कि यह कार्य जय नारायण श्रीवास्तव का ही है। पर, कोई ठोस सबूत नहीं जुटा सके।

अंग्रेजो को भारत से भगाने को मार्च निकाला

जय नारायण श्रीवास्तव को वर्ष 1941-42 तक छात्रसंघ का अध्यक्ष चुना गया था। इसके बाद साल 1942-43 में एमएम जफर ने जिम्मेदारी निभाई। 1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत की तो छात्रसंघ के पदाधिकारियों ने इसकी बागडोर संभाली। इसके लिए छात्रसंघ भवन से मार्च निकाला गया। छात्र नेताओं पर लाठीचार्ज हुआ। इन्हें जेल भी भेजा गया। गिरफ्तारी के बाद इन्हें काफी समय तक जेल में भी रहना पड़ा।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की उपाधि मिली

अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए जय नारायण श्रीवास्तव को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की उपाधि दी गई। प्रदेश सरकार की ओर से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर जारी पुस्तिका में उन पर दो पृष्ठ की जानकारी भी दी गई है। जिसमें बताया गया है कि उन्होंने कक्षा आठ से स्वतंत्रता के सुर छेड़ने शुरू कर दिए थे। अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा भी खोल दिया था। इसके लिए उन्हें बाराबंकी के स्कूल से निकाल भी दिया गया था।

नहीं ली कोई सुविधा

जय नारायण श्रीवास्तव को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की उपाधि दी गई थी। लेकिन उन्होंने कभी कोई सुविधा नहीं ली। वर्ष 1975 में जब वह लेबर कोर्ट से जज के रूप में रिटायर हुए तो उनके बैंक खाते में महज 60 रूपये थे। उनके पुत्र धर्मेंद्र नारायण का कहना है कि उन्होंने अपने बाबूजी से आंदोलन की यह कहानी सुन रखी है।

Abhishek Mishra

Abhishek Mishra

Correspondent

मेरा नाम अभिषेक मिश्रा है। मैं लखनऊ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। मैंने हिंदुस्तान हिंदी अखबार में एक साल तक कंटेंट क्रिएशन के लिए इंटर्नशिप की है। इसके साथ मैं ब्लॉगर नेटवर्किंग साइट पर भी ब्लॉग्स लिखता हूं।

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