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UP Election 2022: फतेहपुर सीकरी में रहा है जाटों का दबदबा, जातीय समीकरण साधने की कोशिश में जुटे हैं सभी सूरमा

Up Election 2022 : फतेहपुर सीकरी को ऐतिहासिक स्थान माना जाता है और इस बार इस विधानसभा सीट पर कब्जा करने के लिए सभी दलों के बीच कड़ी सियासी जंग हो रही है।

Anshuman Tiwari
Report Anshuman TiwariPublished By Ragini Sinha
Published on: 4 Feb 2022 10:02 AM IST
Up Election 2022
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Up Election 2022 : आगरा जिले की फतेहपुर सीकरी विधानसभा सीट (Fatehpur Sikri Assembly seat) पर जाटों का दबदबा रहा है। फतेहपुर सीकरी को ऐतिहासिक स्थान माना जाता है और इस बार इस विधानसभा सीट पर कब्जा करने के लिए सभी दलों के बीच कड़ी सियासी जंग हो रही है। भारतीय जनता पार्टी ने इस बार चौधरी उदयभान का टिकट काटकर पूर्व सांसद बाबूलाल (Bharatiya Janata Party has fielded former MP Babulal) को चुनाव मैदान में उतारा है।

सपा-रालोद गठबंधन (SP-RLD alliance) की ओर से ब्रजेश चाहर (Brajesh Chahar on behalf of SP-RLD alliance) उन्हें चुनौती दे रहे हैं जबकि कांग्रेस के हेमंत चाहर भी चुनावी बाजी जीतने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं। 2007 और 2012 में यहां से चुनाव जीत चुकी बसपा ने इस बार पिछड़ा कार्ड खेला है और मुकेश राजपूत को प्रत्याशी बनाकर सभी दलों को चुनौती देने की कोशिश की है।

इसलिए नाम पड़ा फतेहपुर सीकरी

मुगल बादशाह अकबर ने फतेहपुर सीकरी को बसाया था। पहले इसे फतेहाबाद के नाम से जाना जाता था मगर बाद में इसका नाम बदल गया। 1573 में गुजरात फतह करने के लिए अकबर ने यहीं से कूच किया था। बादशाह अकबर गुजरात पर जीत हासिल करने में कामयाब रहा और लौटते समय उसने इसका नाम फतहपुर यानी विजय की नगरी रख दिया था। बाद में यह इलाका फतेहपुर सीकरी के नाम से जाना जाने लगा। यहां का बुलंद दरवाजा काफी प्रसिद्ध है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक यहां आते हैं। यहां हजरत सलीम चिश्ती की दरगाह भी है जहां जियारत करने के लिए काफी संख्या में लोग पहुंचते हैं।

विधानसभा क्षेत्र का इतिहास

कद्दावर जाट नेता बदन सिंह फतेहपुर सीकरी से पांच बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे। 1977 से लेकर 1989 तक के हर विधानसभा चुनाव में उन्होंने इस सीट पर जीत हासिल की। राम लहर के दौरान 1991 के चुनाव में उन्हें भाजपा के उम्मीदवारों उम्मेद सिंह से हार का सामना करना पड़ा। 1993 में वे भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे और फिर जीत हासिल की। हालांकि वे इसके बाद भी 2002 तक चुनाव लड़ते रहे मगर चौधरी बाबूलाल के उभार के बाद उन्हें जीत हासिल नहीं हुई।

2017 में 22 साल बाद इस चुनाव क्षेत्र में कमल खिला था जब भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे उदयभान ने बसपा के सूरजपाल को हराकर चुनाव जीता था। उदयभान 108586 वोट पाने में कामयाब हुए थे जबकि बसपा के सूरजपाल को 56,249 वोट मिले थे। रालोद के ब्रजेश चाहर तीसरे स्थान पर पिछड़ गए थे और उन्हें 38,307 मत हासिल हुए थे।

फतेहपुर सीकरी का जातीय समीकरण

इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 1.20 लाख जाट मतदाता है जो किसी भी प्रत्याशी की जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं। ब्राह्मण और क्षत्रिय मतदाताओं की संख्या 30-30 हजार है जबकि लोध मतदाता करीब 35,000 हैं। वैश्य और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20-20 हजार है। सभी दलों ने प्रत्याशियों के चयन में जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है।

भाजपा ने इस बार 2017 में जीत हासिल करने वाले योगी सरकार के राज्यमंत्री उदयभान का टिकट काटकर पूर्व सांसद बाबूलाल को प्रत्याशी बनाया है। बाबूलाल 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां से सांसद चुने गए थे मगर 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका टिकट कट गया था। उनकी जगह भाजपा ने राजकुमार चाहर को चुनाव मैदान में उतारा था जो विजयी होने में कामयाब हुए थे।

सभी दलों ने झोंकी पूरी ताकत

भाजपा ने इस बार पूर्व सांसद चौधरी बाबूलाल को उतारकर बड़ा सियासी दांव खेला है। पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर रहने वाले ब्रजेश चाहर सपा-रालोद गठबंधन की ओर से उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हैं जबकि कांग्रेस के हेमंत चाहर भी लड़ाई में आने की कोशिश में जुटे हुए हैं। 2007 व 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी सूरजपाल ने दलित, क्षत्रिय व पिछड़ों के समर्थन से इस विधानसभा क्षेत्र में जीत हासिल की थी और बसपा के मुकेश राजपूत एक बार फिर उसी इतिहास को दोहराने की कोशिश में जुटे हुए हैं। सभी राजनीतिक दलों ने जीत हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। माना जा रहा है कि जातीय समीकरण साधने में कामयाबी पाने वाले उम्मीदवार को ही जीत हासिल होगी।

Ragini Sinha

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