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Tesu Zhenzhu Ki Prem Kahani: आखिर क्या है टेसू और झेंझी के प्रेम की अद्भुत कहानी, कब से शुरू होगी सहालग
Tesu Zhenzhu Ki Prem Kahani: महाभारत काल से अपने अनोखे प्रेम के लिए सुविख्यात टेसू और झेंझी विवाह परंपरा को आज की पीढ़ी भूलती जा रही है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इस परंपरा का बच्चों और बुजुर्गों द्वारा निर्वहन किया जा रहा है।
Tesu Zhenzhu Ki Prem Kahani: महाभारत काल से अपने अनोखे प्रेम के लिए सुविख्यात टेसू और झेंझी विवाह (Tesu Aur Zhenzhu Vivah) परंपरा को आज की पीढ़ी भूलती जा रही है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इस परंपरा का बच्चों और बुजुर्गों द्वारा निर्वहन किया जा रहा है। यह महाभारत (Mahbharat) काल के महा पराक्रमी योद्धा भीम (Bheem) के पौत्र बर्बरीक अर्थात टेसू के प्रेम की कहानी है।
जिस की परम्परा विजयादशमी (Vijayadashmi) के दिन से शुरू होती है, जिसमें बच्चे और बच्चियां टेसू और झेंझी के गीत (Tesu Aur Zhenzhu Ke Geet) गाकर चंदा मांगते हैं जो कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन तक टेसू और झेंझी के विवाह (Tesu Aur Zhenzhu Ki Shadi) को धूमधाम से मनाने के साथ तक चलती है। जिसमें बड़े बुजुर्ग व बच्चे सभी लोग शामिल होकर टेसू और झेंझी की बैंड बाजा, ढोल, नगाड़े बजाकर बरात निकालते हैं और पंडित विद्वानों को बुलाकर वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ टेसू और झेंझी की शादी को सकुशल संपन्न कराते हैं। साथ ही इस दिन को शादी ब्याह के लिए सहालग (Sahalag) के शुभ दिन की शुरुआत माना जाता है।
ऐतिहासिक दृष्टि से झेंझी और टेसू की कहानी (Tesu Aur Zhenzhu Ki Kahani)
टेसू और झेंझीं के विवाह की परंपरा ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो यह परंपरा अनोखी और अद्भुत है। यह परंपरा महाभारत के समय प्रारम्भ हुई क्योंकि यह लोकजीवन में प्रेम कहानी के रूप में प्रचारित हुई थी। एक ऐसी प्रेम कहानी जो युद्ध के दुखद पृष्ठभूमि में परवान चढ़ने से पहले ही मिटा दी गई यह कहानी महा पराक्रमी भीम के पौत्र बर्बरीक अर्थात (टेसू) की है। जिनको महाभारत का युद्ध देखने आते समय झांझी से प्रेम हो गया था।
उन्होंने युद्ध से लौटकर झांझी से विवाह करने का वचन दिया था लेकिन कौरवों की तरफ से युद्ध करने के कारण श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उनका सिर काट दिया था, लेकिन वरदान के चलते सिर कटने के बाद भी बर्बरीक (टेसू) जीवित रहे सिर कटने के बाद जब भगवान श्री कृष्ण प्रकट हुए तो वरदान दिया कि आज के बाद वर्ष में जब भी सहालग की शुरुआत होगी तो सबसे पहली सहालग तुम्हारी ही होगी तब से यह परंपरा आज तक चल रही है।
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