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Kisano Ke Liye Kheti Ki Khas Khabar: बुआई से पहले जरूर कर लें ये काम, वरना हो जाएंगे परेशान
Kisano Ke Liye Kheti Ki Khas Khabar: डॉ यूके त्रिपाठी ने newstrack.com से बातचीत करते हुए बताया कि रबी फसलों में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में रोगों की रोकथाम हेतु किसानों के लिए एडवाइजरी जारी कर दी गई है।
Kanpur News: चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के पादप रोग विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ यूके त्रिपाठी ने newstrack.com से बातचीत करते हुए बताया कि रबी फसलों (Rabi Ki Fasal) में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों (चना, मसूर, मटर) में रोगों की रोकथाम हेतु किसान भाइयों के लिए एडवाइजरी (Kisano Ke Liye Advisory) जारी कर दी गई है। इसमें बताए गए उपायों पर अमल कर दलहनी फसलों में फफूंदी एवं जीवाणु जनित रोगों जैसे उकठा, जड़ सड़न, झुलसा, रतुआ, चूर्णित, आशिता इत्यादि से निजात पाई जा सकती है।
कैसे करें शोधन
डॉक्टर त्रिपाठी ने बताया कि किसान भाई बुवाई से पूर्व मृदा का शोधन अवश्य करें। इसके लिए 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को 25 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर बुवाई के 15 दिन पूर्व शाम के समय खेत में मिलाकर हल्की सिंचाई कर दें। यह मात्रा 1 हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होगी। उन्होंने उकठा रोग के प्रबंधन के लिए बताया कि गर्मी में गहरी जुताई अवश्य करे तथा बुवाई के पूर्व 5 ग्राम ट्राइकोडरमा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर दें।
कैसे करें झुलसा रोग के प्रबंधन
डॉक्टर त्रिपाठी ने बताया कि दलहनी फसलों में झुलसा रोग के प्रबंधन के बारे में बताया कि 2 ग्राम कार्बेंडाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बुवाई करने पर बीज शोधित कर बुवाई करें। जिससे झुलसा रोग नियंत्रित रहता है। मसूर की फसल में रतुआ रोग की नियंत्रण के खड़ी फसल में 2 ग्राम मैनकोज़ेब 700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से लाभ होता है।
कृषि विज्ञानी ने यह भी बताया कि मटर की फसल में चूर्णित आसिता रोग के नियंत्रण हेतु कैराथीन 3 ग्राम 700 लीटर पानी में घोलकर खड़ी फसल में प्रयोग करने से लाभ होगा। इसके अतिरिक्त फसल चक्र किसान भाई अवश्य अपनाएं, जिसमें गन्ना, सरसों, अलसी या गेहूं की खेती को किया जा सकता है। क्योंकि एक ही प्रकार की फसलें बार-बार एक ही खेत में करने से रोग और कीड़ों की संभावना ज्यादा रहती है। उन्होंने बताया कि इस प्रकार किसान भाई अपनी दलहनी फसलों को रोग मुक्त कर सकते हैं तथा दलहनी फसलों से आशातीत उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
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