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किसान भाई ध्यान दें: मटर की वैज्ञानिक खेती से इस तरह कमा सकते हैं अच्छा लाभ, हो जायेंगे मालामाल

Kanpur News: चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के शस्य विज्ञान विभाग में शोधकर्ता प्रसून सचान ने कहा की मटर की खेती करके अच्छा लाभ कमाया जा सकता है।

Avanish Kumar
Published on: 28 Oct 2021 5:57 PM IST
Farmers should note: Scientific farming of peas can earn good profit in this way
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कानपुर: शोधकर्ता प्रसून सचान ने मटर की खेती करने के बताये टिप्स

Kanpur News: कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर (Chandrashekhar Azad University of Agriculture and Technology Kanpur) के शस्य विज्ञान विभाग (Horticulture Department) में शोधकर्ता प्रसून (Researcher Prasoon Sachan) सचान ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के एक बड़े हिस्से में मटर की खेती की जाती है। खास बात यह है कि कुल राष्ट्रीय क्षेत्र के 53.7 फीसदी हिस्से में यूपी में मटर की खेती होती है। उन्होंने कहा कि अगर किसान वैज्ञानिक तरीके से मटर की खेती (Pea Farming) करें तो अच्छा लाभ कमा सकते हैं।

इसके अलावा मटर की खेती भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में भी सहायक है। फसल चक्र के अनुसार यदि इसकी खेती की जाए तो इससे भूमि उपजाऊ बनती है। मटर की जड़ों में मौजूद राइजोबियम जीवाणु भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायक होता है। प्रसून सचान मटर की वैज्ञानिक खेती पर newstrack.com से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मटर की खेती से कम समय में अधिक पैदावार ली जा सकती है।

उत्तर प्रदेश में 4.34 लाख हेक्टेयर में उगाई जाती है मटर

उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में 4.34 लाख लाख हेक्टेयर में मटर उगाई जाती है जो कुल राष्ट्रीय क्षेत्र का 53.7% है। शोध छात्र प्रसून सचान ने बताया कि मटर बुवाई का उपयुक्त समय अक्टूबर के अंतिम पखवारा से नवंबर मध्य तक उचित रहता है मटर बुवाई के पूर्व राइजोबियम कल्चर से बीजों को उपचार करने के बाद ही बुआई करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है। उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि मटर के लिए 20 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 20 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।

मटर की खेती

क्या है उन्नतशील प्रजातियों

उन्होंने मटर की उन्नतशील प्रजातियों (Variety of Peas) के बारे में बताया कि के पी एम आर 400,केपीएमआर 522, अपर्णा, रचना, पूसा प्रभात जैसी प्रजातियां उत्तम होती हैं। तथा बीज दर 75 से 85 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।रोग एवं कीटों की रोकथाम के लिए बीज एवं मृदा को शोधित अवश्य करें। प्रसून सचान ने बताया कि किसान भाई अगर उत्तम कृषि कार्य प्रबंधन करते हैं तो 25 से 30 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।

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