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Kanpur News: एक एकड़ में इस तकनीकि से करें केले की खेती, तीन लाख से अधिक का होगा मुनाफा

उद्यान विज्ञान एवं फल विज्ञान के प्राध्यापक एवं अध्यक्ष डॉ.वी.के त्रिपाठी ने किसानों को सलाह दी है की केले को टिशू कल्चर विधि से रोपे

Avanish Kumar
Report Avanish KumarPublished By Deepak Raj
Published on: 25 July 2021 2:24 PM GMT
Banana plant is sown by tissue culture method
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टिशू कल्चर के माध्यम से की गई केला की खेती

Kanpur News: उत्तर प्रदेश के कानपुर में चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के उद्यान विज्ञान एवं फल विज्ञान के प्राध्यापक एवं अध्यक्ष डॉ.वी.के त्रिपाठी ने किसानों को सलाह दी है कि वह अपने खेत में टिशू कल्चर तकनीक से तैयार केले के पौधों को ही रोपित करें। क्योंकि यह पौधे विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्त होने के साथ मातृ पौधे के समान उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं, जिनकी वृद्धि और फलत एक समान रहते हुए 12 से 14 महीने में एक पौधे से लगभग 30 किलो औसत की दर गहर प्राप्त हो जाती है।


टिशू कल्चर के माध्यम से की गई केले की खेती

डॉक्टर त्रिपाठी ने बताया कि पौधों का रोपण अगस्त माह तक सफलतापूर्वक किया जा सकता है

डॉक्टर त्रिपाठी ने बताया कि पौधों का रोपण अगस्त माह तक सफलतापूर्वक किया जा सकता है। किसान भाई ध्यान रखें कि आप जिस खेत में रोपण कर रहे हैं उस खेत में पानी का ठहराव नहीं होना चाहिए और जल निकास का उचित प्रबंधन भी अति आवश्यक है। विभिन्न भूमि जनित रोगों से बचाव के लिए खेत में पौधरोपण से पूर्व भूमि को ट्राइकोडरमा से उपचारित अवश्य कर लेना चाहिए और रोपण में ग्रांड नैने (जी 9) प्रजाति का ही प्रयोग करें और समतल खेत में 6x6 फीट या 8 x 4 फीट की दूरी पर पौधों का रोपण करके 1 से 2 माह के बाद तनो पर हल्की मिट्टी चढ़ा देते हैं तथा निकलने वाले सभी सकर्स को ऊपर से काटकर हटाते रहते हैं।


डॉक्टर त्रिपाठी जो टिशू कल्चर खेती का बढ़ावा दे रहे हैं( फाइल फोटो)



पौधे को 5 किलोग्राम गोबर की खाद, 250 ग्राम नत्रजन, 300 ग्राम फास्फोरस और 300 ग्राम पोटाश प्रति पौधा देते हैं। गोबर की खाद, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा पौध रोपण के समय दे देते हैं। नत्रजन की आधी मात्रा पौधरोपण के समय और आधी मात्रा गहर निकलते समय देते हैं। निराई- गुड़ाई करके खरपतवारो से फसल को मुक्त रखते हैं। सर्दी की ऋतु में जब पौधों की वृद्धि कम होती है, उस समय मटर, आलू, सरसों, गेंदा, गैलार्डिया इत्यादि फसलों का रोपण करके अंत:सस्यन के रूप में अन्य फसलें भी उगाई जा सकती है।

फसल में फ्यूजेरियम विल्ट का प्रकोप होने पर कॉपर ऑक्सिक्लोराइड की 2ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर प्रति पौधा आधा से एक किलो मात्रा प्रति पौधा की दर से डाल दें। गहर में जब 10 से 12 पंजे बन जाएं तब नर फूल को हाथ से तोड़ कर हटा दें और चाकू का प्रयोग करें तो उसको प्रत्येक गहर को काटने के बाद स्ट्रेलाइज करना अति आवश्यक होता है अन्यथा यह विषाणु रोगों के संवहन का कारण बन जाते हैं।

गहर पुष्पन के बाद 90 दिन में तैयार हो जाती है....

इस प्रकार से एक गहर पुष्पन के बाद 90 दिन में तैयार हो जाती है। फलियों को बनाना बीटल से बचाने के लिए पौधों के आसपास खरपतवारो को निराई गुड़ाई करके हटाते रहे। अधिक आक्रमण होने पर फल पौधे पर रोगोर या अन्य किसी सिस्टेमेटिक रसायन के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। जब फलियां पूर्ण रूप से गोल हो जाएं तब उनको पूरी गहर तोड़कर 800 पीपीएम इथरिल के घोल में आधा घंटा डूबो कर रखने के बाद निकाल कर, कमरे में 24 घंटे रखने पर सभी फलियां एक समान दर से पूर्ण रूप से पीली पक जाती है।

इस प्रकार किसान भाइयों को 1 एकड़ क्षेत्रफल में लगभग 1250 पौधों के रोपण और देखभाल पर 80 से 90,000 का खर्च आता है और फलों की बिक्री के द्वारा चार से पांच लाख की आय हो जाती है तथा लगभग ₹300000 शुद्ध लाभ 12 से 14 महीने में किसानों को प्राप्त हो जाता है। मीडिया प्रभारी डॉ खलील खान ने यह जानकारी दी।

Deepak Raj

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