Magh Mela 2023: संगम की रेती पर कठोर तपस्या की हुई शुरुआत, जानिए क्या है कल्पवास और इसका महत्व

Magh Mela 2023: पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के साथ ही संगम की रेत पर होने वाले एक महीने के कल्पवास की भी शुरुआत हो गई है।सांसारिक मोह माया से मुक्त होकर श्रद्धालु नियम के साथ कल्पवास करते हैं।

Syed Raza
Report Syed Raza
Published on: 7 Jan 2023 7:57 AM GMT
Magh Mela 2023
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Magh Mela 2023 (Social Media)

Magh Mela 2023: त्रिवेणी के तट पर माघ मेले की शुरुआत पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के साथ हो गई है इस मौके पर गंगा- यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी में साधू- संतों के साथ ही लाखों संगम में डुबकी लगाई। पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के साथ ही संगम की रेती पर होने वाले एक महीने के कल्पवास की भी शुरुआत हो गई है।सांसारिक मोह माया से मुक्त होकर श्रद्धालु नियम के साथ कल्पवास करते हैं। भारतीय आश्रम परम्परा में गृहस्थ आश्रम को सबसे श्रेष्ठ माना गया है जिसमे साल में ग्यारह महीने घर में रहकर भी बस एक महीने मोह-माया से दूर रहकर पवित्र नदियों के संगम के किनारे वास करके जप तप और साधना से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

क्या है कल्पवास

मोक्ष की इसी लालसा को लेकर लाखों श्रद्धालु माघ मेले में धर्म की नगरी तीर्थराज प्रयाग में गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी पर एक महीने तक वास करते हैं जिसे कल्पवास कहा जाता है। संगम तट पर लगने वाला एक माह तक चलने वाले कल्पवास की शुरुवात हो गई।

संगम में स्नान कल्पवास त्याग और संयम का जीवन जीते हुए पूरे समय भगवान् के नाम का सत्संग करने वाले कल्पवासियों की इस अनूठी दुनिया में धर्म-आध्यात्म, आस्था- समर्पण और ज्ञान व संस्कृति के तमाम रंग देखने को मिलते हैं।

इतने करोड़ देवता होते है विराजमान

मान्यता है कि 33 करोड़ देवी देवता एक महीने तक संगम की रेती में विराजमान रहते है। कल्पवास करने आये श्रद्धालु दिन में दो बार स्नान करते है और एक बार खाना खाते है। भजन कीर्तन करते है। तुलसी के पेड़ की पूजा करते है।

पौष पूर्णिमा स्नान पर्व के साथ कल्पवास की शुरुआत होती है जो माघ पूर्णिमा तक रहती है इसके बाद कल्पवासी अपने घर को रवाना हो जाते हैं। माघ मेला क्षेत्र में देश के अलग-अलग जिलों से आए श्रद्धालु एक ही जगह कल्पवास करते हैं।

कल्पवास कर रहे श्रद्धालुओं का कहना है कि देश दुनिया में सुख शांति बनी रहे कोरोनावायरस महामारी फिर से ना लौटे साथ ही सभी व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करें इसकी वह प्रार्थना करते हैं।

श्रद्धालु इसके लिए करते हैं पूजा पाठ

दिनभर धार्मिक भजन कीर्तन का आयोजन होता है, रामायण महाभारत के पाठ पढ़े जाते हैं और सभी भगवानों के साथ-साथ मां तुलसी की पूजा भी की जाती है। कोरोना संक्रमण कम होने के चलते इस बार भारी संख्या में श्रद्धालु कल्पवास कर रहे हैं और भीषण ठंड में भी अपनी आस्था को जीवित रखे हैं।

गोरखपुर से आई हीरा देवी का कहना है कि वह बीते कई सालों से कल्पवास कर रही है ऐसे में उनके परिवार में सुख शांति बनी हुई है। इसी तरह 32 सालों से कल्पवास कर रहे दीनानाथ पांडे का कहना है कि चाहे जितनी भी ठंड हो जाए उनकी आस्था पर कोई असर नहीं पड़ा है। कल्पवास करने से जीवन सुखमय होता है और नए नए लोगों से भी मुलाकात होती है।

Durgesh Sharma

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