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Mahakumbh Stampede Update: अमृत की चाह और पैरों तले कुचलती जिंदगियां

Mahakumbh Mein Bhagdad Kaise Hui: कुंभ में भगदड़ का इतिहास दोहराया गया। जिसमें सरकार के मुताबिक़ तीस लोग मरे। तकरीबन साठ लोग घायल हुए।हालाँकि सरकार ने इस घटना के न्यायिक जाँच के न केवल आदेश दिये हैं। बल्कि उसने अपना काम भी शुरु कर दिया है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 31 Jan 2025 11:56 AM IST
Mahakumbh Mein Bhagdad Kaise Hui
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Mahakumbh Mein Bhagdad Kaise Hui

Mahakumbh Mein Bhagdad Kaise Hui: चालीस दिन का महाकुम्भ पर्व अभी आधा भी नहीं बीता है। लेकिन ऐसा हादसा हो गया जो कोई भी नहीं चाहता था। पर इसकी आशंका तो थी ही। कुंभ का प्रचार प्रसार करने के लिए तैनात अफसरों व मीडियाकर्मियों के व्हाट्सएप ग्रुप के चैट इस बात को गंभीरता से पुष्ट करते हैं। कुम्भ के साथ हादसों का इतिहास भी जुड़ा हुआ है - सन 54 में प्रयागराज, 2013 में प्रयागराज, 2010 में हरिद्वार, 2003 में नासिक, 1992 में उज्जैन – इन कुम्भ आयोजनों में भगदड़ हुई और तमाम लोग मारे गए, घायल हुए। 2025 का महाकुम्भ 144 वर्ष का विशेष आयोजन है। बहुत ही बड़े पैमाने पर सब कुछ आयोजित किया जा रहा है।

यूपी सरकार के दावे हैं कि भीड़ से लेकर हर चीज को कंट्रोल करने के लिए लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है।


पार्किंग, डाइवर्जन, बैरिकेडिंग, पुलिस, वगैरह सब चाक चौबंद होने के ऐलान हैं और जैसा जनता जान रही है, मीडिया भी यही दोहरा रहा है। यही वजह है कि असंख्य लोगों के पग कुंभ स्नान के लिए उठे। मन में आस्था और माँ गंगा पर अटल विश्वास का दीपक लेकर करोड़ों लोग देश के कोने कोने से कुंभ के लिए चल दिये। राह मिलती गयी। शक्ति बढ़ती गयी।


कुम्भ में 50 करोड़ तक की भीड़ आने के अनुमान ही नहीं लगाये गये बल्कि पूरे भरोसे से यह बात बार बार दोहराई गई। देश भर से स्पेशल ट्रेनों का रेला लगा दिया गया। प्रदेश भर से मेला बसें लगी हुईं हैं। इंतजामों के सरकारी दावों, जबर्दस्त पब्लिसिटी और सोशल मीडिया के आसमान छूते इस्तेमाल के चलते हर कोई इस ‘वन्स इन लाइफ टाइम’ अवसर का हिस्सा बनने के लिए आतुर हो चला है। नई परंपरा को अपनाते हुए पहली बार देश भर में राज्य सरकारों को इन्वीटेशन कार्ड बांटे गए सो सब मिल जुल कर भीड़ भेजने में जुटे हुए हैं।


भीड़ आई और आती ही गई। और हादसा भी हो गया। पहले ढेरों टेंट जल कर ख़ाक हुए। दर्जनों सिलिंडर फटे। किसी के हताहत न होने की शुभ सूचना सुनाई पड़ी।

पर हमने कुछ सबक नहीं लिया। लिहाज़ा संगम नोज़ पर बड़ी दुर्घटना घट गयी।

दुर्घटना के बारे में जानने से पहले हम यह जान लें कि आखिर संगम नोज़ है क्या।


संगम नोज़ वह जगह है जहाँ गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है। यहाँ गंगा व यमुना का पानी अलग अलग दिखता है। इन नदियों का जहां संगम होता है। वहां त्रिकोण बनता है। यह नोक या नाक की तरह दिखता है। इसलिए नोज़ कहा जाता है। संगम नोज का उल्लेख प्राचीन हिंदू ग्रंथों में मिलता है। यह स्थान वैदिक काल से ही एक पवित्र तीर्थस्थल रहा है। कहा जाता है कि यहाँ स्वयं ब्रह्मा ने यज्ञ किया था, जिससे यह स्थान और अधिक पावन बन गया। पुराणों में इसे मोक्षदायिनी भूमि के रूप में वर्णित किया गया है।महाभारत में भी इस स्थान का उल्लेख मिलता है, जहाँ पांडवों ने अपने वनवास के दौरान यहाँ यज्ञ किया था।


यहां वेणी माधव संगम में विराज होते हैं।यहाँ स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। संगम नोज़ पर ही अखाड़ों के संत अपने धार्मिक अनुष्ठान और अमृत स्नान करते हैं। इस बार संगम नोज़ का विस्तार कर इसे 26 हेक्टेयर तक कर दिया गया। दो हेक्टेयर ज़मीन इसमें जोड़ी गयी। ग़ौरतलब है कि कुंभ की व्यवस्था पर सत्तर हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च किये गये हैं। पचास हज़ार पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है।


लेकिन इसके बाद भी कुंभ में भगदड़ का इतिहास दोहराया गया। जिसमें सरकार के मुताबिक़ तीस लोग मरे। तकरीबन साठ लोग घायल हुए।हालाँकि सरकार ने इस घटना के न्यायिक जाँच के न केवल आदेश दिये हैं। बल्कि उसने अपना काम भी शुरु कर दिया है। इस तरह की आपदा का ठीकरा किसी एक पर फोड़ देना सही नहीं होगा। क्योंकि कई छोटी बड़ी ग़लतियाँ मिलकर इस तरह के हादसे को अंजाम देती हैं। सरकार ने जिस तरह इस कुंभ को ‘न भूतो न भविष्यत्’ करार दिया इससे सरकारी दावों से अधिक लोग कुंभ क्षेत्र पहुंचे। सरकार ने मीडिया से प्रचार पाने व अफसरों ने वीआईपी की ख़िदमतगारी पर अपना ज़्यादा ध्यान केंद्रित कर दिया। संगम नोज़ तक जाने के लिए एक रास्ता व वापसी के लिए तीन रास्ते -अक्षयवट मार्ग, महावीर मार्ग, जगदीश रैंप तय किये गये। इमरजेंसी के लिए ग्रीन कॉरिडोर भी बनाये गये। पर लंबे चौड़े दावों के बीच बैरिकेडिंग व गंगा के तट पर पसरी रेत पर रात गुज़ारने को लोग मजबूर हुए।


पांटून के पुलों को बंद किया गया। जिस तरह वीआईपी सुरक्षा के इंतजाम थे, उस तरह के इंतजाम जनता के लिए न कभी होते हैं और न इस बार थे। फिर भी सवाल बड़ा है कि जब भीड़ कंट्रोल में तनिक भी संदेह था तो क्यों इतने लोगों को संगम की तरफ बढ़ने दिया गया? घाटों को लेकर सरकार ने होल्डिंग एरिया को ठीक से व्यवस्थित क्यों नहीं किया?

जो अपील आज की जा रही है वो पहले से क्यों नहीं की गयी कि संगम नोज़ जाने की जगह जो भी घाट आप के क़रीब है, वहीं अमृत स्नान कर लें। सरकार ने बाद में प्रचार किया मौनी अमावस्या से लेकर आगे तीन दिनों तक मौनी अमावस्या पर स्नान करने का पुण्य फल मिलेगा। यह प्रचार पहले भी हो सकता था।

लेकिन इसके साथ ही श्रद्धालुओं की मनोवृत्ति भी कम जिम्मेदार नहीं है। आप जब संगम नोज पर हैं तो जल्दी किस बात की। बैरिकेड तोड़कर क्यों भागना?


जब संत शाही स्नान बाद में कर सकते हैं तो लोग क्यों नहीं सब्र कर सकते? आम तौर पर ऐसे धार्मिक आयोजन में हम अपने परिवार के साथ जाते हैं। महिलाएँ व बच्चे भीड़भाड़ के अनुभव नहीं रखते हैं। नतीजतन, वे किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में मनोवैज्ञानिक रुप से हतोत्साहित,उदास व चिंतित हो उठते हैं। भीड़ में प्रबल आवेग होता है। सभी लोगों का आवेग एक साथ काम कर रहा होता है। जैसे जैसे भीड़ बढ़ती जाती है, लोग भीड़ में खो जाते हैं। अपने बारे में नहीं सोचते हैं। यही कारण है कि अनैच्छिक रूप से व्यक्ति भीड़ के अनुरूप काम करता है। भीड़ में बुद्धि, विवेक, विचार काम नहीं करता। केवल आवेग का उफान दिखता है। भीड़ व्यक्तिगत स्वतंत्रता की कमी महसूस करने लगती है। ढेर सारे लोगों के बीच होने की वजह से एक भौतिक बंधन का भी अहसास होने लगता है। सवाल सरकार व श्रद्धालुओं दोनों से बहुत हैं। ज़िम्मेदार दोनों हैं। लेकिन जवाब कोई नहीं है। क्योंकि जवाब होते तो कुम्भ या किसी भी अन्य भीड़ वाली जगह पर हादसे न होते।


मौनी अमावस्या पर जो हुआ उससे बहुत ही गंभीर सवाल उठ खड़े होते हैं। यह कह कर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता कि जब लाखों-करोड़ों लोग जमा होंगे तो भगदड़ तो मचेगी ही। हालाकि सरकार के मंत्री संजय निषाद ने यह गर्वोक्ति की पर बाद में अपने पैर पीछे खींच लिये।एक भी इंसान की मौत मेला के पूरे इन्तजामी सिस्टम का फेल्योर है। लोग तो सरकारी इंतजामों पर भरोसा करके यहाँ धक्के खाते आये थे। अमृत की लालसा में आये थे, लेकिन हासिल कुछ न हो सका। भगदड़ आगे भी नहीं होगी इसकी क्या गारंटी है? क्या कोई सिर्फ शोक संवेदना से भी आगे सोचेगा?क्या हमारा तंत्र जिन्दगी का मोल कभी समझ पायेगा? यह समय राजनीति का नहीं। सबक लेने का है।



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