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Mainpuri Lok Sabha: डिम्पल यादव पर सपा का अंतिम किला बचाने का दारोमदार

Mainpuri Lok Sabha: साल 2014 के बाद सपा किलों का दरकना शुरू हुआ और 2019 के लोकसभा चुनाव में मैनपुरी, रामपुर और आजमगढ़ को छोड़कर सपा के सभी किले ध्वस्त हो गए. बाद में 2022 में लोकसभा के उपचुनावों में रामपुर और आजमगढ़ भी सपा के हाथ से निकल गए.

Raj Kumar Singh
Written By Raj Kumar Singh
Published on: 11 Nov 2022 3:44 PM IST (Updated on: 11 Nov 2022 3:54 PM IST)
Dimple Yadav - Akhilesh Yadav
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डिंपल यादव - अखिलेश यादव (फोटो: सोशल मीडिया  )

Mainpuri Lok Sabha: यदि मैं आपसे सवाल करूं कि फिरोजाबाद, कन्नौज, बदायूं, आजमगढ़, रामपुर, इटावा और मैनपुरी में क्या कामन है? उत्तर प्रदेश की राजनीति की समझ रखने वाले लोग इसका जवाब जानते होंगे. जी हां, ये सभी लोकसभा सीटें समाजवादी पार्टी का किला रही हैं. वर्षों तक कोई अन्य दल इन्हें नहीं भेद पाया. कभी कभी किसी ने इनमें से किसी में सेंध लगाई भी तो वो लंबे समय तक कायम नहीं रही. जैसे कि फिरोजाबाद.

लेकिन सपा की ये बादशाहत तभी तक थी जब तक नरेंद्र मोदी का भारतीय राष्ट्रीय राजनीति में आना नहीं हुआ था. साल 2014 के बाद सपा किलों का दरकना शुरू हुआ और 2019 के लोकसभा चुनाव में मैनपुरी, रामपुर और आजमगढ़ को छोड़कर सपा के सभी किले ध्वस्त हो गए. बाद में 2022 में लोकसभा के उपचुनावों में रामपुर और आजमगढ़ भी सपा के हाथ से निकल गए. हालांकि रामपुर सपा से अधिक आज़म खान का गढ़ रहा है. लेकिन रामपुर के अलावा बाकी सभी समाजवादी पार्टी या फिर ये कहें कि मुलायम सिंह यादव परिवार का गढ़ रहे थे.

इनमें से मुलायम सिंह यादव कन्नौज, आज़मगढ, और मैनपुरी से सांसद रहे थे. इनके अलावा मुलायम सिंह यादव संभल से भी सांसद रहे थे. अखिलेश यादव फिरोजाबाद, कन्नौज और आजमगढ़ से सांसद रहे हैं. इनके अलावा राम गोपाल यादव संभल से, धर्मेंद्र यादव बदायूं से, तेजप्रताप यादव मैनपुरी से और अक्षय यादव फिरोजाबाद से सांसद रहे हैं. मुलायम सिंह यादव बदायूं की गुन्नौर विधानसभा से विधायक भी रहे थे. कहने का मतलब ये है कि ये सीटें यादव परिवार का गढ़ थीं जो कि अब बीजेपी के कब्जे में जा चुकी हैं.

कन्नौज से दो बार सांसद रहीं डिंपल यादव

जहां तक डिंपल यादव की बात है तो वे कन्नौज से दो बार सांसद रही हैं. लेकिन इसके साथ ही वे कन्नौज और फिरोजाबाद जैसी सपा के लिए सुरक्षित मानी जाने वाली सीटों से चुनाव हार भी चुकी हैं. कुल मिलाकर मैनपुरी को छोड़ दें तो बाकी सभी सीटें बीजेपी के पास जा चुकी हैं. हाल ही में आजमगढ़ भी बीजेपी के पास है. यहां बीजेपी नेता और भोजपुरी अभिनेता दिनेश लाल यादव निरहुआ ने अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को हराया है.

तो अब सबकी निगाहें मैनपुरी पर हैं. ऐसा माना जाता है कि मुलायम सिंह यादव के रहते बीजेपी ने इस सीट पर ध्यान ही नहीं दिया. इसका एक बड़ा कारण मुलायम सिंह यादव के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अच्छे रिश्ते होना भी था. लेकिन अब मुलायम सिंह के निधऩ के बाद निश्चित रूप से बीजेपी की रणनीति बदलेगी. इस बात की संभावना है कि अब सपा के इस अंतिम और सबसे बड़े किले को दरकाने में बीजेपी कसर नहीं छोड़ेगी.

डिंपल यादव की राह मुश्किल नहीं

यदि मैनपुरी लोकसभा के आंकड़ों पर जाएं तो डिंपल यादव की राह मुश्किल नहीं लगती है. यहां यादव वोट सबसे अधिक हैं. इसके बाद शाक्य वोटर हैं. इसके बाद दलित और सवर्ण वोटर आते हैं. इसके साथ ही इस बार मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद वोटरों की सहानुभूति भी डिंपल यादव के साथ होगी इसमें कोई शक नहीं है. डिंपल का मतलब है अखिलेश यादव. यानि नेताजी की सीट सीधे सीधे उनकी पुत्रवधू के पास आएगी, इसे देखते हुए यादव उन्हें जिताने के लिए पूरी जान लगा देंगे. शिवपाल यादव भी डिंपल के प्रत्याशी होने के बाद अब वहां सपा का विरोध नहीं कर पाएंगे. परिवार का नैतिक दबाव उनके ऊपर होगा. इसे देखते हुए फिलहाल तो ये कहा जा सकता है कि डिंपल यादव मुलायम सिंह यादव की इस प्रतिष्ठित सीट और समाजवादी पार्टी के अंतिम व सबसे बड़े किले को बचाने में कामयाब हो जाएंगी.



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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