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जब अधिकारियों का नही उठता फ़ोन, तो सोशल मीडिया से क्या होगी पुलिसिंग
लखनऊ: ‘परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम’ मोटे और रंगीन लिखे गये संस्कृत के इन शब्दों का हिंदी में अर्थ है, “सज्जन व्यक्तियों की रक्षा और दुष्टों के नाश के लिए”. गीता की यह सूक्ति उत्तर प्रदेश पुलिस का सूत्र वाक्य हैं लेकिन ऐसा करने के लिए मौके पर पहुंचना होता है बाते सुननी होती हैं।
उत्तर प्रदेश पुलिस सोशल मीडिया के ट्विटर ,फेसबुक और इन्स्टाग्राम से अपराध को जल्द रोकने के दावे कर रही हैं। यह दावा कोई और नहीं लखनऊ के डीजीपी मुख्यालय बैठी टीम कर रही है लेकिन जिनके भरोसे कर रही है उन्हें आम आदमी का जल्दी फ़ोन उठाना भी रास नहीं आता हैंं। फोन नहीं उठाने वाले लोग कहते है कि इन्हें सत्ता का वरदहस्त प्राप्त है।
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बताते चलें कि बेहद क्रूर और गैर प्रोफेशनल्स का ठप्पा लगवाये बैठी यूपी पुलिस की छवि सुधारने के लिए सीएम अखिलेश यादव और डीजीपी जावीद अहमद ने सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति बढाते हुए पब्लिक को हर प्लेटफ़ॉर्म से मदद पहुंचाने की योजना शुरू की है । लोग फ़रियाद लेकर सोशल मीडिया में आ भी रहे है, लेकिन जिले के थानों में तैनात कोतवाल से लेकर कप्तान है कि वे जनता की सुनने को तैयार नही।ऐसी हालात में सवाल उठता है कि बीस करोड़ से ज्यादा लोगों की आकांक्षाओं को सिर्फ ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया साइट्स के जरिये कैसे पूरा किया जा सकता हैं। जब ग्राउंड लेवल पर बैठे लोग कुछ भी सुनने को तैयार नहीं।
सूत्रों की माने तो मुख्यालय में बैठे लोग जब इनपर नकेल कसने की कोशिश करते हैं, तो सिफारिशों का सिलसिला शुरू हो जाता हैं और बातें आई गई हो जाती है ।
फ़ील्ड में तैनात कोतवाल ,दरोगा और उनके आकाओं की कारगुजारी का नतीजा है कि प्रदेश के कोने कोने से लोग डीजीपी मुख्यालय पहुँचते हैं और अपने ऊपर हो रही पुलिसिया मनमानियों के किस्से वरिष्ठ अधिकारियों के सामने रो-रो कर अपना जी हल्का कर लेते हैं ।
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अब डीजीपी साहब ही इसे एक चुनौती की तरह ले
अपनी फ़रियाद न सुनने पर मेरठ से आए एक फरियादी ने कहा कि 700 किमी दूर आने पर पता चला कि अब शिकायतें फेसबुक और ट्विटर से भी सुनी जा रही हैं लेकिन अधिकारी और कोतवाल तक न फ़ोन उठाते हैं और नहीं इज्जत से बात करते हैं, अब क्या डीजीपी साहब इस बात को चुनौती की तरह लेंगे कि अधिकारी सभी का फ़ोन उठाएं।
newztrack.com की पड़ताल में कुछ ऐसा हुआ
ऐसे में पब्लिक द्वारा लगाए गए आरोपों के बीच newztrack.com ने भी यूपी पुलिस के आलाधिकारियों के साथ कुछ ऐसे अनुभव हैं। राजधानी लखनऊ के एसएसपी राजेश पाण्डेय जल्दी फ़ोन नहीं उठाते हैं । फिरोजाबाद में सड़क हादसे में 10 लोगों की मौत के सन्दर्भ में पूछने पर एसएसपी फिरोजाबाद अशोक कुमार शर्मा ने कहा कि 10 बजे गए हैं आप भी सो जाइए मुझे भी सोने दीजिये। वही खखौंदा में दीवार गिरने से हुई पांच लोगों की मौत के बारे में पूछने पर मेरठ के एसएसपी दिनेश चन्द्र दुबे ने कहा कि यहां हम आपके फोन उठाने और उसका जवाब देने नहीं बैठे हैं।
तो पब्लिक के बीच कैसा होगा बातचीत का तरीका
एक वरिष्ठ अधिकारी ने जिले में तैनात अधिकारियों द्वारा इस तरीके से मीडिया से व्यवहार के बारे में कहा कि जब ये अधिकारी मीडिया से इतनी बदतमीजी से बात करते हैं तो ये उन गरीब फरियादियों से किस तरह का बर्ताव करते होंगे, यह अपने आप ही समझा जा सकता हैं। डीजीपी साहब को इन मामलों का स्वात संज्ञान लेना चाहिए।