TRENDING TAGS :
बीहड़ से निकलकर राजनीति की राह पर
सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियों से परेशान होकर बीहड़ के ऊबड़- खाबड़ रास्तो को चुनने वालों का जब यहां भी मन न लगा तो उन्होंने राजनीति की रपटीली राहों को चुनना बेहतर समझा। पहले तो इस सियासी डगर में इन लोगों ने पहले से जमे नेताओं का सपोर्ट किया लेकिन बाद में खुद चुनाव मैदान में उतरना ज्यादा बेहतर समझा।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियों से परेशान होकर बीहड़ के ऊबड़- खाबड़ रास्तो को चुनने वालों का जब यहां भी मन न लगा तो उन्होंने राजनीति की रपटीली राहों को चुनना बेहतर समझा। पहले तो इस सियासी डगर में इन लोगों ने पहले से जमे नेताओं का सपोर्ट किया लेकिन बाद में खुद चुनाव मैदान में उतरना ज्यादा बेहतर समझा।
इस बार धौरहरा सीट से कुख्यात डकैत रहे मलखान सिंह ने शिवपाल सिंह यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इसके पहले वह मध्य प्रदेश की करैरा विधान सभा सीट से चुनाव लड़ चुके है। यह वही मलखान सिंह हैं जिनके नाम से 70 और 80 के दशक में लोग थर थर कांपते थे। इसके बाद उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समक्ष आत्म समर्पण कर सामान्य जीवन जीने का प्रण किया था।
यह भी पढ़ें...मायावती ने खोला मुह कहा- ‘बृजभूषण शरण सिंह और राजा भैया का इलाज मैं’
जब मलखान सिंह ने आत्मसमर्पण किया तब उनके ऊपर 32 पुलिस कर्मियों समेत 185 लोगो की हत्या का आरोप था। मलखान ने अपना पहला चुनाव 1996 मे भिण्ड में पंचायत का चूना लड़ा था।पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के लिए प्रचार किया था।
नब्बे के दशक में जब मंडल और कमंडल की लडाई चल रही थी तो उस दौरान मुलायम सिंह यादव को उन्ही के गढ़ इटावा में रोकने के लिए भाजपा ने एक बडा दांव चलते हुए डाकू मान सिंह के पुत्र तहसीलदार सिंह को मुलायम सिंह के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया। तहसीलदार सिंह का उस जमाने में यूपी और मध्यप्रदेश के बीहड़ों में दबदबा हुआ करता था। यादव बाहुल्य जसवंतनगर सीट से तहसीलदार सिंह मुलायम सिंह से चुनाव तो हार गए लेकिन इस दौरान मुलायम सिंह को चुनाव जीतने में पसीने आ गये।
यह भी पढ़ें...अजय देवगन और रकुलप्रीत के बीच ये देखने “चले आना”
1980 में कानपुर देहात में हुए बेहमई कांड की गूंज पूरे देश मे सुनाई दी थी जब फूलन देवी नाम की महिला ने ठाकुर जाति के 22 लोगों को सरेआम गोली से उड़ा दिया था। उनके नाम की गूंज पूरी दुनिया मे सुनाई पड़ी थी लेकिन 1984 में फूलन देवी ने भी आत्मसमर्पण कर सीधी सादी ज़िन्दगी जीने का फैसला किया। इसके बाद पिछडो की राजनीति करने वाले मुलायम सिंह जब 1993 में यूपी के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने फूलनदेवी पर दर्ज सभी मुकदमे वापस ले लिए। फूलन देवी जैसे ही 1996 में जेल से बाहर आई।
मुलायम सिंह ने उन्हें मिर्ज़ापुर से लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी का प्रत्याशी बना दिया। वह चुनाव जीतकर संसद पहुंच गई। जब केंद्र में अटल सरकार गिरी और मध्यावधि चुनाव हुए तो वह चुनाव हार गई। लेकिन इसके बाद किसी अन्य दल में जाने की तैयारी कर रही फूलन देवी की हत्या हो गई।
एक और दस्यु सुंदरी कही जाने वाली सीमा परिहार परिस्थितिवश बीहड़ पहुंच गई। उनका अपहरण लालाराम और कुसुमा नाइन ने कर लिया था। एक साल तक बीहड़ में रहने के बाद वह भी इसी रास्ते पर चल दी। उनके नाम से लोग कांपने लगे । पुलिस ने उन पर 40 लाख का इनाम भी रखा।
यह भी पढ़ें...पुनिया के इस चुनावी दांव से मचा हड़कम्प, विरोधी चारो खाने चित
लालाराम के साथी जय सिंह ने लालाराम से बदला लेने के लिए सीमा को डाकू निर्भय के सुपुर्द कर दिया। दस्यु निर्भय ने सीमा से एक मंदिर में शादी रचाई और वह गर्भवती हो गई। इसी बीच दस्यु लालाराम और निर्भय में गैंगवार हुई। वर्ष 2000 में पुलिस ने लालाराम को मार गिराया। इसी साल सीमा ने मां बनने के तीन साल बाद आत्मसमर्पण कर दिया। 2006 में वह इंडियन जस्टिस पार्टी से मिर्जापुर सीट से चुनाव भी लडी पर हार गयी। इसके बाद 2008 में कुछ समय के लिए लोक जनशक्ति पार्टी में शामिल हो गयी। लेकिन बाद में उन्होंने राजनीति से किनारा कर लिया।
बुंदेलखण्ड में शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ का नाम लेने से भी लोग डरते थें। पहली हत्या 22 साल की उम्र में कर सुर्खियों में आने वाले ददुआ का आतंक तीन दशक से अधिक समय तक रहा। समाजवादी पार्टी के नेताओं का पूरा संरक्षण ददुआ के साथ रहता था। चंबल के इलाकों में नेताओं का पूरा संरक्षण होने के कारण सभी उसकी मदद करते थें। ददुआ के भाई बालकुमार पटेल 2009 में सपा से सांसद भी रहे लेकिन इस बार उन्होंने सपा का साथ छोडकर कांग्रेस का दामन थामा और बांदा सीट से चुनाव लड रहें हैं।