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Mangal Pandey: एक विद्रोह जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन खत्म कर दिया
Mangal Pandey: 1857 की क्रांति के नायक मंगल पांडे का नाम सभी ने सुना है। इस एक सिपाही ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहली सशस्त्र क्रांति का सिंघनाद किया था और वीरगति पाई थी।
Mangal Pandey: 1857 की क्रांति के नायक मंगल पांडे (Mangal Pandey) का नाम सभी ने सुना है। इस एक सिपाही ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहली सशस्त्र क्रांति का सिंघनाद किया था और वीरगति पाई थी। लेकिन क्या मंगल पांडे हर कोई बन सकता है। पूरी हुकूमत से टकरा सकता है। पूरे देश के लिए प्रेरणा बन सकता है। एक ऐसी क्रांति जिसका दमन करने में ब्रिटिश हुकूमत को पसीना छूट गया और जिसकी राख में दबी चिंगारी कभी ठंडी न हो सकी और एक दिन ब्रिटिश हुकूमत को यहां से जाना ही पड़ा। हालांकि हमारे इतिहास में मंगल पांडे को बहुत अहम स्थान नहीं दिया गया। कहा तो यह भी गया कि उन्होंने समय से पहले क्रांति की शुरुआत करके क्रांतिकारियों की योजना पर पानी फेर दिया। वरना पूरे देश में एक साथ क्रांति की ज्वाला धधकती, जिसमें अंग्रेजों को सौ साल पहले ही भाग जाना पड़ता। ये वही दौर था जब लखनऊ में लगभग दस महीने से क्रांतिकारियो ने अंग्रेजों से मोर्चा लिया था और जिसकी निशानी रेजीडेंसी में आज भी मौजूद है।
मंगल पांडे को भारतीय इतिहास में मात्र एक चरित्र कहा जाता है। वह ब्रिटिश शासन (British Rule) और विचारधारा के खिलाफ विद्रोह करने वाले पहले लोगों में से एक थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ पहला विद्रोह शुरू किया और फांसी के फंदे पर लटककर शहीद हो गए थे।
मंगल पांडे का जीवन परिचय (Mangal Pandey Ka Jivan Parichay)
अमूमन मंगल पांडे को बलिया का माना जाता है। लेकिन दावे यह भी हैं कि इनके पिता मूलरूप से फैजाबाद के थे। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि वह मूल निवासी बलिया के नगवा ग्राम के थे लेकिन मंगल पांडे के फैजाबाद में जन्म के बाद वह फिर बलिया चले गए थे। वैसे मंगल पांडे के पिता का नाम दिनकर पांडे था और मां का नाम अमरावती था। उनका जन्म 19 जुलाई 1827 का माना जाता है कुछ जगह पर उनका जन्म 30 जनवरी 1831 का बताया गया है।
मंगल पांडे को क्यों फांसी दी गई (Mangal Pandey Ko Kyo Fansi Di Gayi)
इसी तरह मंगल पांडे की फांसी 18 अप्रैल नियत की गई थी लेकिन ब्रिटिश हुकूमत इतनी भयभीत थी कि तारीख से 10 दिन पहले ही मंगल पांडे को फांसी पर लटका दिया।
मंगल पांडे का नारा (Mangal Pandey Ka Nara)
मंगल पांडे मारो फिरंगी का नारा दिया था। उन्हें भारत के पहले शहीदों में से एक माना जाता है। उन्होंने जिस स्थान पर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था और बाद में जहां उन्हें फांसी दी गई, वह स्थान अब शहीद मंगल पांडे महा उद्यान के रूप में जाना जाता है। भारत सरकार ने 5 अक्टूबर, 1984 को उनके नाम से डाक टिकट जारी किया था। मंगल पांडे ने कलकत्ता के निकट बैरकपुर छावनी में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था।
मंगल पांडे की क्रांति की उपलब्धि क्या थी
अगर इस बात का विश्लेषण किया जाए कि मंगल पांडे के इस क्रांति के उद्घोष की उपलब्धि क्या थी तो इसका सीधा नतीजा यह रहा कि उनके विद्रोह ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया। इस विद्रोह ने ब्रिटिश हुकूमत का ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता पर विश्वास कम कर दिया। नतीजे के रूप में, औपनिवेशिक शासन सीधे महारानी विक्टोरिया के हाथों में चला गया। एक तरह से इसने राष्ट्र पर महारानी विक्टोरिया का सीधा शासन शुरू कर दिया।
मंगल पांडे का इतिहास (Mangal Pandey History)
मंगल पांडे 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री (बीएनआई) का हिस्सा थे, जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का हिस्सा था। वह इसमें सिपाही थी। उन्होंने 18 साल की छोटी उम्र में बंगाल इन्फैंट्री की छठी कंपनी में काम करना शुरू कर दिया था।
मंगल पांडे का जन्म भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था। और यह विद्रोह कारतूसों के इस्तेमाल को लेकर भड़का था। जोकि जाहिर तौर पर गाय और सुअर की चर्बी से बना था। चूंकि कारतूस को अपने दांतों से फाड़ने की जरूरत पड़ती थी, इस मुद्दे ने विवाद की शुरुआत की। भारतीय सैनिकों के हिंदुओं और मुसलमानों ने ऐसे कृत्यों को छोड़ दिया क्योंकि वे धार्मिक कारणों से प्रतिबंधित थे। मंगल पांडे ने विद्रोह के एक समूह का नेतृत्व किया जिन्होंने सेना के काम के हिस्से के रूप में ऐसे कारतूसों के इस्तेमाल करने से इनकार किया।
कई लोगों ने इसे भूमिहार ब्राह्मण होने के कारण हुए विद्रोह के रूप में चित्रित किया है लेकिन यह उनकी गहरी प्रकृति थी जिसने उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने को खड़ा किया। उन्होंने हर अंग्रेज को मारने की कसम खाई। बैरकपुर में विद्रोह के साथ जो शुरू हुआ, वह जल्द ही मेरठ, दिल्ली, कानपुर और लखनऊ में फैल गया।
मंगल पांडे को बाद में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह में उनके कार्यों के लिए गिरफ्तार कर लिया गया। सैन्य अदालतों में उन पर मुकदमा चलाया गया, जहां उनसे कई मोर्चों पर पूछताछ की गई। मंगल पांडे से उन अपराधियों के नाम बताने के लिए कहा गया, जिन्होंने इस कृत्य में भाग लिया, जिस पर उन्होंने चुप्पी साधे रखी और अंत में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई।