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ना दूल्हा होगा... ना दुल्हन! फिर भी यहां आएंगी बारातें और होगी आतिशबाजी
सैयद सालार मसऊद गाजी की दरगाह पर जेठ मेले के पहले रविवार को परंपरागत विवाह की रस्म अदा की जाती है। इस रस्मअदायगी के लिए देश के विभिन्न अंचलों से बारातें आती हैं। रुदौली, टांडा, बस्ती, जौनपुर
बहराइच: सैयद सालार मसऊद गाजी की दरगाह पर जेठ मेले के पहले रविवार को परंपरागत विवाह की रस्म अदा की जाती है। इस रस्म अदायगी के लिए देश के विभिन्न अंचलों से बारातें आती हैं। रुदौली, टांडा, बस्ती, जौनपुर, नासिक की बारातें आकर्षण का केंद्र रहती है। इस बारात में न दूल्हा होता है न दुल्हन। फिर भी वैवाहिक समारोह की तर्ज पर ही परंपराओं को निभाया जाता है। गाजे-बाजे के साथ आतिशबाजियां भी होती हैं।
ये दरगाह है शांति और एकता का प्रतीक
- सैयद सालार मसऊद गाजी की दरगाह शांति, सौहार्द और हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
- यह आस्था का ऐसा केंद्र है जहां दरगाह पर प्रति वर्ष लगने वाले जेठ मेले में दोनों समुदायों के लोग लाखों की संख्या में शिरकत करते हैं।
- गाजी की दरगाह पर मुख्य जेठ मेला आज (14 मई) है।
- इस दिन 1012 साल पुरानी इस परंपरा का निर्वहन पुनः किया गया ।
-पूर्वांचल और अन्य प्रांतों से बाराती और जायरीन मेला पहुंचने लगे हैं।
- दहेज के साजो सामान के साथ सभी बाराती दरगाह शरीफ के मैदान में टेंट लगाकर ठहरेंगे।
दरगाह प्रबंध समिति करेगी बारातियों का स्वागत
- बारातियों का स्वागत दरगाह प्रबंध समिति के साथ जिला प्रशासन के आला अधिकारी भी करेंगे।
- इन बारातियों के हाथों में निशान, चादर, पलंगपीढ़ी और दहेज का पूरा सामान होगा।
- बारातें जंजीरी गेट से प्रवेश कर चमन ताड़, नाल दरवाजा होते हुए गाजी की दरगाह पर हाजिरी लगाएंगी।
- वहां पर पलंगपीढ़ी व दहेज का सामान रखा जाएगा।
आगे की स्लाइड में जानें कैसे शुरू हुई परंपरा ...
ऐसे शुरू हुई ये परंपरा
- ऐसी मान्यता है कि रुदौली, बाराबंकी की रहने वाली जोहराबीबी 1012 साल पहले दुल्हन बनी थीं।
- उन्हीं की याद में यह बारातें गाजी की दरगाह तक आती हैं।
- मुख्य बारात रुदौली (बाराबंकी), टांडा, बस्ती, जौनपुर, नासिक की होती है।
क्या कहते हैं दरगाह प्रबंध समिति के अध्यक्ष?
- दरगाह प्रबंध समिति के अध्यक्ष शमशाद अहमद ने बताया कि 250 बारातें पंजीकृत हैं।
- हर साल बारातों के आने का सिलसिला बढ़ता रहता है।
- ऐसे में लगभग साढ़े पांच सौ बारातें देश के विभिन्न हिस्सों से बहराइच पहुंचने की उमीद है।
- इस बारात में दूल्हा व दुल्हन नहीं होते हैं। लेकिन परंपरा निर्वहन में रस्म की अदायगी बिल्कुल शादी समारोह की तरह होती है।
उपवास रखते हैं बाराती
- बारात में शामिल होने वाले बाराती पूरे दिन उपवास रखेंगे। जिस तरह लोग कन्यादान के पूर्व अन्नजल का त्याग करते हैं उसी तर्ज पर बारात लाने वाले परंपरा का निर्वहन करते हैं। बारात की रस्म अदायगी के बाद ही सभी भोजन करेंगे।
गाजी को सलाम कर निभाते हैं परंपरा
सैयद सालार मसऊद गाजी की दरगाह पर बारातें तो साढ़े पांच सौ के आसपास आने की उम्मीद है। लेकिन मुंबई से आने वाले किन्नरों का समूह जो बारात लेकर आता है, उस बारात की रौनक अलग ही होती है। बाराती किन्नर मंजीरे व ढोलक व की थाप पर थिरकते हुए गाजी की मजार पहुंचकर सलाम करते हुए परंपरा का निर्वहन करते हैं।
बाराबंकी और लखनऊ की आतिशबाजी से होगी रौनक
प्रबंध समिति अध्यक्ष शमशाद ने बताया कि गाजी की दरगाह पर मुख्य मेले के दिन आने वाली बारातों में आतिशबाज भी आगे-आगे आतिशबाजी करते हुए चलते हैं। इस बार बाराबंकी व लखनऊ के आतिशबाजों से रौनक बढ़ेगी।