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Independence Day 2022: शहीदे-ए-आजम नवाब मज्जू खां की शहादत और ऐतिहासिक इमली का पेड़
Independence Day 2022: मुरादाबाद के शहीदे आजम वीर शहीद नवाब मज्जू खां का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है। मुरादाबाद के दीवानखाना निवासी मजिदुद्दीन उर्फ नवाब मज्जू खा मुगलों के आखिरी शासक बहादुर शाह जफर के सिपेसालर थे।
Independence Day 2022: देश आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहा है, हर तरफ तिरंगा यात्राएं निकल रही है और बहुत सारे कार्यक्रम आयोजित कर देश वासी उन वीर शहीदों को नमन कर रहे है, जिनके प्राणों की आहुति के चलते ही आज हम लोग आज़ादी की सांस ले पा रहे है,
बाव मज्जू खां ने 1857 की क्रांति में अग्रेजों के दांत किए खट्टे
इस आजादी में मुरादाबाद के शहीदे आजम वीर शहीद नवाब मज्जू खां (Shaheed Nawab Majju Khan) का नाम भी इतिहास के पन्नो में दर्ज है। नबाव मज्जू खा ने 1857 की क्रांति में हिस्सा लेकर अग्रेजों के दांत खट्टे ही नहीं किये अपितु उनकी फ़ौज को नैनीताल तक खेदड़ कर आये, मूल रूप से मुरादाबाद के दीवानखाना निवासी मजिदुद्दीन उर्फ नवाब मज्जू खा मुगलों के आखिरी शासक बहादुर शाह जफर के सिपेसालर थे।
उन्होंने अंग्रेजी फौज को कई बार शिकस्त दी, लेकिन 1858 में रामपुर के नवाब ने अग्रेजों से मिलकर मुरादाबाद पर हमला बोल दिया, जिसमें नवाब मज्जू खां ने अपनी फौज के साथ डटकर मुकाबला किया, लेकिन धोखे से उन्हें गोली मार कर शहीद कर दिया। उनकी मौत के बाद अंग्रेज पश्चिम इलाके में अपना खौफ बनाये रखने के लिए नवाब मज्जू खां के पार्थिव शरीर के साथ जो विभत्स रुख अपनाया, वो इंसानियत के बिल्कुल विपरीत और रोंगटे खड़े कर देने वाला था।
इतिहासकारों के अनुसार
इतिहासकारों के अनुसार अग्रेजों ने नवाब मज्जू खां (Shaheed Nawab Majju Khan) के मर्त शरीर को पहले चूने की भट्टी में डलवाया और जब इससे भी मन नहीं भरा तो हाथी के पाव में जंजीरों के साथ बांध कर मुरादाबाद की सड़कों पर घुमाया गया। अंग्रेजी शासन काल में इस तरह से एक मर्त शरीर को हाथी के पाव में बांध कर घुमाए जाने की किसी और घटना का जिक्र शायद इतिहास में भी दर्ज नहीं होगी।
अंग्रेजों ने नवाब मज्जू खां सहित सैकड़ों वीर सपूतों को इमली के पेड़ पर दी थी फांसी
मुरादाबाद का इतिहास के अनुसार अग्रेजों का मन इससे भी नहीं भरा वो अपना खौफ भारतीय लोगों पर कायम रखने के इससे भी एक कदम आगे बढ़ गए। उन्होंने नवाब मज्जू खां सहित सैकड़ों वीर सपूतों को गलशहीद स्थित इमली के पेड़ पर लटका कर मौत की नींद सुला दिया। ये वीर शहीद तो हो गए, लेकिन आज भी इतिहास के पन्नो में दर्ज है। गलशहीद के कब्रिस्तान में मौजूद ये इमली का पेड़ चीख कर आज भी अपनी दास्तान बया कर रहा है। इस ऐतिहासिक इमली के पेड़ और शहीदे आजम नवाब मज्जू की मजार की देखभाल साफ सफाई करने वाले सुहैल खान ने जो अपने बड़ों से सुना और पढ़ा है।