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मथुरा: जानिए कौन हैं खड़ेश्वरी बाबा, इनकी तपस्या और खान-पान देखकर सभी हैरान

सन्त मुनीन्द्र दास चाहते है कि अयोध्या राजधानी बने. विश्व का कल्याण हो जन मानस में सद्भावना हो. वृन्दावन कुम्भ में आये संत मुनीन्द्र दास महत्यागी अन्न नहीं लेते वह केवल फल , सब्जियाँ अग्नि कुंड में भून कर ही पाते हैं .

Chitra Singh
Published on: 6 March 2021 10:24 AM GMT
मथुरा: जानिए कौन हैं खड़ेश्वरी बाबा, इनकी तपस्या और खान-पान देखकर सभी हैरान
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मथुरा: जानिए कौन हैं खड़ेश्वरी बाबा, इनकी तपस्या और खान-पान देखकर सभी हैरान

मथुरा: वृन्दावन में यमुना के पुलिन तट पर चल रहे कुम्भ मेले में धर्म, संस्कृति का अद्भुत दर्शन देखने को मिल रहा है. यहां देश विदेश से आये वैष्णव सन्तों के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है. इस वैष्णव कुम्भ में देश के अलग अलग हिस्सों से सन्त आये हुए हैं . यहाँ इन दिनों पोरबन्दर गुजरात से आये संत मुनीन्द्र दास महत्यागी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं .

कौन है संत मुनीन्द्र दास महात्यागी

संत मुनीन्द्र दास महात्यागी करीब 4 दशक से खड़े रहकर जीवन गुजारने की प्रतिज्ञा निभा रहे हैं . वह खड़े हो कर ही नित्य कर्म करते हैं , खड़े हो कर ही भगवान की आराधना, खड़े हो कर ही भोजन करते हैं खड़े हो कर ही सोते हैं . 1992 से खड़े हो कर जीवन गुजार रहे संत मुनीन्द्र दास महत्यागी ने अयोध्या कांड के बाद प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक भव्य राम मंदिर नहीं बनेगा और उसमें राम लला विराजमान नहीं होंगे तब तक वह खड़े रहकर ही जीवन गुजारेंगे।



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अयोध्या को राजधानी बनाने की चाह

करीब 40 साल का सफर हो चुका और संत मुनीन्द्र दास महात्यागी देश भर में भृमण कर रहे हैं लेकिन 1992 के बाद अयोध्या नहीं गए . वह प्रयागराज गए , फैजाबाद गए लेकिन अयोध्या नहीं गए . सन्त मुनीन्द्र दास चाहते है कि अयोध्या राजधानी बने ,विश्व का कल्याण हो जन मानस में सद्भावना हो . वृन्दावन कुम्भ में आये संत मुनीन्द्र दास महत्यागी अन्न नहीं लेते वह केवल फल , सब्जियाँ अग्नि कुंड में भून कर ही पाते हैं .

saint muninder das mahatagi

साधारण झोपड़ी मे रहते है संत मुनीन्द्र दास

सन्त मुनीन्द्र दास की यह साधना ही वृन्दावन वैष्णव कुम्भ में आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. माथे पर चंदन और ललाट पर तेज इनकी साधना के प्रताप को दर्शाता है . संत मुनीन्द्र दास त्यागी वृन्दावन कुम्भ में साधारण सी झोपड़ी बना कर प्रवास कर रहे हैं . खपरैल की छत और उसके नीचे बैठे अनुयायी यही उनका वृन्दावन प्रवास है. सन्त मुनींद्र दास खुद एक झूले नुमा आसन के सहारे खड़े रहते हैं.

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रिपोर्ट- नितिन गौतम

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