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Mathura News: अनंत चतुर्दशी पर सोने चांदी के वर्क लगा 21 हजार किलो गिरिराज जी को अर्पित हुआ 56 भोग
Mathura News: असली हीरे मोती, नीलम, पन्ना, पुखराज, गोमिद जैसे नवरत्नों से हुआ श्रृंगार प्रभू ने हीरा जड़ित बाँसुरी धारण की।
Mathura News: तीन लोक से न्यारी कान्हा की नगरी मथुरा में कान्हा के भक्तों ने अनंत चतुर्दशी के मौके पर एक ऐसे कार्यक्रम का आयोजन किया जो अपने आप में अद्भुत अलौकिक और मन को मोह लेने वाला था। गिरिराज गोवर्धन धाम में आयोजित हुए विशाल छप्पन भोग कार्यक्रम में गिरिराज सेवा समिति की ओर से जहां सप्त रत्न से श्रृंगारित चंद्रयान 3 के विक्रम लैंडर में गिरिराज जी को विराजमान कराया गया। वहीं, सोने चांदी के वर्क लगे 21 हजार किलो का 56 भोग अर्पित किया गया। अनंत चतुर्दशी पर पिछले 31 सालों से गिरिराज सेवा समिति का यह विशाल अलौकिक 56 भोग का कार्यक्रम भारत की सम्पन्नता और खुशहाली के लिए आयोजित होता चला आ रहा है।
21 हजार किलो का छप्पन भोग लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहा। गिरिराज महाराज के इन अलौकिक दर्शनों की एक झलक जिसने भी पाई वह टकटकी लगाए अपने आराध्य के दर्शन करता रहा। साल में एक ही दिन होने वाले इन अलौकिक दर्शनों की झलक पाकर लोग आनंदित और भाव विभोर थे। वहीं हर कोई इस मनमोहक तस्वीर को अपने कैमरे में कैद करने के लिए लालायित था। गिरिराज सेवा समिति की देखरेख में हो रहे छप्पन भोग कार्यक्रम में देश के कोने कोने से आए लाखों श्रद्धालुओं ने दर्शन कर अपनी मनोकामना पूर्ण होने की कामना की। सुगंधित फूलो दिव्य श्रृंगार के बीच अपने कान्हा की इस मनोरम छटा को देखने के बाद हर किसी की आँखे टकटकी लगाए देखती रह गई। साल में एक ही बार दिव्य व अलौकिक दर्शनों को पाने के लिए लोग साल भर इसका इंतजार करते हैं क्योंकि गिरिराज जी की सेवा करने का यह परम समय बार बार नही मिलता। भक्तो का मानना है कि ऐसे विशाल 56 भोग का कार्यक्रम साल में 4 बार होना चाहिए क्योंकि ठाकुर जी की ऐसी सेवा करने का सौभाग्य 4 बार मिलेगा।
शास्त्रीय संगीत और भजनों पर कृष्ण और राधा रानी की लीलाएं
गिरिराज सेवा समिति की ओर से हर साल अनन्त चतुर्दशी के मौके पर गिर्राज तलहटी के परिक्रमा मार्ग पर आन्योर से पहले संत गया प्रसाद की समाधि स्थल के समीप भव्य आयोजन में भक्त जहा आस्था में डूबे रहते है। वहीं शास्त्रीय संगीत और भजनों पर कृष्ण और राधा रानी की लीलाएं भक्तो को भाव विभोर बनाए रखती है।
इतने विशाल 56 भोग मनमोहक सजावट अलौकिक श्रृंगार से पूर्व गिर्राज जी का पंचामृत अभिषेक कराया जाता है, जिसमे 7 नदियों का पवित्र जल और दूध दही घी शहद और जल से अभिषेक ओर गिरिराज जी की 7 कोस यानी 21 किमी की परिक्रमा गिरिराज सेवा समिति के सदस्यों के द्वारा की जाती है। मान्यता है कि जो भी अनंत चतुर्दशी के दिन इस अलौकिक 56 भोग के दर्शन करता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है ।
21 हज़ार किलो के इस 56 भोग को बनाने की तैयारियां पिछले 4 दिनों से दिन रात चलती है। इसको लगाने के लिए समिति की महिलाएं मानव श्रृंखला बनाती है और एक एक डलिया को हाथो से गिरिराज जी के चरणों मे रखती हैं।
56 भोग की प्रथा
हिन्दू धर्म और धर्म शास्त्रों की माने तो 56 भोग की प्रथा भगवान कृष्ण के 7 साल की उम्र में इंद्र के मान मर्दन के बाद से शुरू हुई जब भगवान कृष्ण ने इंद्र की पूजा की मन कर गिराज जी पूजा करने का अनुरुद्ध बृजवासियों से किया और जब इंद्रा को इस बात को पता लगा लो इंद्रा ने अपना कोप दिखाना शुरू कर दिया और भगवान कृष्ण ने बृजवासियों की रक्षा के लिए 7 दिन ओर 7 रात तक मूसलाधार वर्षा के दौरान गिरिराज पर्वत को अपनी कनिष्क उँगली पर उठाया और बृजवासियों की रक्षा की। इस दौरान 7 दिन और 8 बार बृजवासियों ने कान्हा को खुश करने के लिए भोग लगाया इस प्रकार 8 प्रहार ओर 7 दिन के कुल भोग 56 हुए इस कारण कान्हा से अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए भक्त 56 भोग का प्रसाद लगाते हैं।