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Mau News: आरबीएसके ने दो बच्चों की जिंदगी में भर दी खुशियां, इम्प्लांट सर्जरी से मिली सुनने और बोलने की शक्ति
Mau News: मनोज साहनी बताते हैं कि मेरी बच्ची को जन्म से ही सुनाई नहीं देता था। जब वह बड़ी हुई तो मुझे इसका पता चला। काफी जगह दिखाया और लोगों से सलाह लिया। लेकिन कोई फायदा नहीँ हुआ। अंत में...
Mau News: रतनपुरा ब्लाक के ग्राम हथिनी निवासी मनोज साहनी की पुत्री सौम्या साहनी (5वर्ष) और इसी ब्लाक के ग्राम कोन्हीया पो. सिधवल निवासी कृष्णा राजभर के पुत्र अर्जुन (5वर्ष) को जन्म से ही न तो सुनाई पड़ता था और न ही वह बोल पाते थे। दोनों ही मूक-बधिर बच्चों को आरबीएसके नेकॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी करा कर नई जिंदगी दी है। अब वह बोलने के साथ ही सुन भी सकते है। सौम्या के पिता मनोज साहनी पेशे से किसान है। वह बताते हैं कि मेरी बच्ची को जन्म से ही सुनाई नहीं देता था। जब वह बड़ी हुई तो मुझे इसका पता चला। काफी जगह दिखाया और लोगों से सलाह लिया। लेकिन कोई फायदा नहीँ हुआ, नवंबर 2022 में गाँव के आंगनबाड़ी केंद्र पर आरबीएसके ए-टीम के डॉ लल्लन आये। उन्होंने मेरी बच्ची की जाँच की मुझे बुलाया। कहा कि आपकी बच्ची ठीक हो सकती है। बस कुछ जरुरी जाँच और आवश्यक कार्यवाही पूरी कर कानपुर जाना होगा। हमने उनके बताये अनुसार कार्य किया। ऑपरेशन के बाद मेरी बच्ची में बहुत परिवर्तन आया है। माँ ज्ञानमती साहनी का कहना है कि इलाज के बाद हमारा पूरा परिवार खुश है, मेरी बेटी को जो नई जिंदगी मिली है।
सरकार की योजना से हो सका उपचार
गाँवों में टेंट का कार्य कर अपनी जीविका चलाने वाले अर्जुन राजभर के पिता कृष्णा राजभर ने बताया कि मेरा बेटा जब सन 2020 में एक वर्ष का हुआ तो हमें उसके इस जन्मजात रोग का पता चला, हमने उसे यहाँ वहां निजी चिकित्सकों को दिखाया। पहले तो वह बीमारी ही नहीँ समझ सके, तो कुछ ने आश्वासन दिया कि दवा चलाइए ठीक हो जायेगा जिसके चलते समय का बहुत नुकसान हुआ। मेरे एक जानने वाले ने मुम्बई में इसके आपरेशन का खर्च 12 लाख बताया था। मेरी उतनी हैसियत ही नही थी एक दिन नवंबर-2022 में आंगनबाड़ी केंद्र पर आरबीएसके टीम-बी केडॉ मनोज मित्तल ने देखा तो उन्होंने उसके उपचार के लिए सरकार की योजना के बारे में बताया, मेरा रुपया भी नहीँ लगा, आज सब ठीक हो गया है। अब तो हम खुद ही सरकार की इन योजनाओं के बारे में लोगों को बताते हैं। 09 जनवरी 2023 को सर्जरी सफल हुई। जैसा की अब पता चला है कि अगर डेढ़ वर्ष के उम्र में मेरे लड़के का ऑपरेशन हो गया होता तो अबतक मेरा बेटा बोलने भी लगता।
कॉक्लियर इम्प्लांट से सफल हुई सर्जरी
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ नरेश अग्रवाल ने बताया कि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम अंतर्गत जन्म से सुनने में अक्षम की समय पर पहचान और उन्हें तुरंत कॉक्लियर इम्प्लांट सजर्री ही मूक-बधिर बच्चों का सही समय पर सही इलाज है। इसी उद्देश्य से आरबीएसके के सहयोग से जिला चिकित्सालय में दिसम्बर 2022 को परीक्षण शिविर का आयोजन किया गया था। इसमें डॉ राममनोहर लोहिया चिकित्सालय में शासन से सर्जरी के लिए चयनित कानपुर के डॉ एसएन मेहरोत्रा मेमोरियल ईएनटी (कान, नाक एवं गला) फाउंडेशन द्वारा जिले के विभिन्न ब्लाकों से आये जन्म से पाँच साल के मूक-बधिर बच्चों का परीक्षण किया गया था। जिसमे रतनपुरा ब्लाक के दो बच्चों का इस सर्जरी के लिये चयन किया गया था। दोनों बच्चो को जिला चिकित्सालय को रेफर किया गया। जहां से उन्हें सभी जांच और अन्य आवश्यक प्रक्रियाओं के बाद कानपुर सर्जरी के लिये भेजा गया, जहां दोनों की 09 जनवरी 2023 को कॉक्लियर इम्प्लांट की सफल सर्जरी हुई। अब दोनों ही बच्चे सुनने और समझने लगे हैं और बोलने की कोशिश कर प्रतिक्रिया देने में लगे हैं। दोनों की स्पीच थैरेपी कराई जा रही है।
प्रति बच्चे के ऑपरेशन पर आता है इतने लाख का खर्च
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी नोडल डॉ बीके यादव ने बताया कि यदि मूक-बधिर बच्चे की छः माह के अंदर कॉक्लियर इम्प्लांट सजर्री हो जाए, तो बेहद शानदार नतीजे आते हैं। देरी की सूरत में पीड़ित बच्चे के दिमाग के बोलने वाले हिस्से पर 6 साल की उम्र के उपरांत सिर्फ देखकर समझने वाला दिमागी का ही विकास होता है। इसलिए जितने कम उम्र में कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री होगी, नतीजे उतने ही परिणाम सकारात्मक होंगे। आरबीएसके डीईआईसी मैनेजर अरविंद वर्मा ने बताया कि कॉक्लियर एक बेहद संवेदनशील यंत्र (डिवाइस) होता है, जिसको सर्जरी द्वारा लगाया जाता है। यह प्रक्रिया करीब 2 घंटों के ऑपरेशन के साथ पूरी हो जाती है और मरीज को 2-3 दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। जनपद से 2021-22 में कुल 14 बच्चों का सफल ऑपरेशन हो चुका है, जिसपर प्रति बच्चे लगभग आठ लाख रुपये का खर्च आता है।