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माया की माया: ‘टैपिंग’ के तूफ़ान में बैकफुट पर राजनीति की स्वयंभू देवी
पार्टी से अलग हुए या किये गए हर आदमी ने पैसे की बात कही है। मायावती को ‘दौलत की देवी’ भी कहा जा चुका है। वह खुद यह भी कह चुकी हैं कि वह ‘जिन्दा देवी’ हैं। चढ़ावा मंदिरों की जगह उन पर चढ़ाया जाना चाहिए।
योगेश मिश्र / राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ: अपने तकरीबन तीन दशक के करिअर में यह शायद पहला या दूसरा मौका था जब बसपा सुप्रीमो मायावती प्रेस से मुखातिब तो थीं लेकिन उनके हाथ में पहले से लिखी कोई स्क्रिप्ट नहीं थी। वह अपनी पार्टी के अल्पसंख्यक चेहरा रहे नसीमुद्दीन के सीधे हमले से उठे तूफान का जवाब देने आयी थीं।
लेकिन इस तूफानी हमले का असर उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में रह-रह कर नजर आ रहा था। आक्रामक राजनीति के लिए जानी जाने वाली मायावती सफाई दे रही थीं और कुछ घंटे पहले जारी आडिओ टेप्स ने उन्हें इतना आहत किया था कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के पहले मिनट ही उन्होंने नसीमुद्दीन के लिए- ‘टैपिंग ब्लैकमेलर’ जैसी उपमा गढ़ डाली।
सिलसिला जाने का
हालांकि बीते सालों में बसपा से खांटी नेताओं की विदाई का सिलसिला काफी तेज हुआ है। लेकिन ताजा मामला शायद सबसे निर्णायक हो सकता है। इसीलिए क्योंकि आरके चौधरी, दद्दू प्रसाद, दीना नाथ भास्कर, बाबू सिंह कुशवाहा, जुगुल किशोर, राजबहादुर, स्वामी प्रसाद मौर्या, ओम प्रकाश राजभर, राजेश त्रिपाठी, धनंजय सिंह और अब नसीमुद्दीन के बाद मायावती के इर्द गिर्द या तो उनके राजनीतिक प्रबंधक सतीश चंद्र मिश्रा हैं या हाल ही में पार्टी में ताजपोशी के बाद प्रभावी हुए उनके भाई आनंद।
सतीश मिश्रा जमीनी नेता नहीं हैं। उनके जिम्मे मायावती की सुरक्षा है- अदालतों से। उनके जिम्मे पिट चुकी सोशल इंजीनियरिंग है जिसके पिछले चुनाव में परखचे उड़ चुके हैं। अब एक नया चेहरा हैं आनंद। एक पार्टी जो परिवारवाद से बची रही थी, आनंद ने उसकी ब्रांडिंग कर दी।
बहुत से वफादार खो दिये
जाहिर है बहुजन समाज पार्टी ने अपने वफादार बहुत जन खोये हैं जिसका असर पार्टी पर निश्चित रूप से पड़ेगा। क्योंकि पार्टी से अलग हुए या किये गए हर आदमी ने पैसे की बात कही है। मायावती को ‘दौलत की देवी’ भी कहा जा चुका है। वह खुद यह भी कह चुकी हैं कि वह ‘जिन्दा देवी’ हैं। चढ़ावा मंदिरों की जगह उन पर चढ़ाया जाना चाहिए।
अपने शाही जन्मदिनों के लिए भी वह जानी जाती रही हैं। टिकट के बदले लेन-देन के आरोप भी उन पर लगते रहे हैं। उनके नेताओं को ‘कलेक्टर’ कहने का भी इसी वजह से चलन आम है। लेकिन नसीमुद्दीन पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने इस लेन देन के आडियो टेप जारी किये। यह उस दलित बिरादरी के लिए भी झटका है जो अनकंडीशनली उन्हें मानता है।
डिगा आत्म विश्वास
नसीमुद्दीन ने 150 ऑडियो टेप और अपने पास होने की बात कह कर मायावती के लिए आगा पीछा करने का मौका और मैदान दोनों दिया है। अगर ऐसा नहीं होता तो किसी के हटाने और छोडऩे के बाद मायावती इतनी तत्परता से प्रेस से बात नहीं करती रही हैं। वह बिना स्क्रिप्ट के नहीं बोलती रही हैं। प्रेस कांफ्रेंस में उनका विचलित आत्म विश्वास दिख रहा था। इसी ने सुरक्षा कवच के तहत ‘टैपिंग ब्लैकमेलर’ ईजाद कर दिया।
कभी ‘जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी’ के फॉर्मूले पर बसपा चल रही थी लेकिन ‘बिछड़े सभी बारी बारी’ और सब एक ही आरोप के चलते हटे।
सूत्रों की मानें तो प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो कुछ भी था उससे इतर पाने और देने की जो राशि बताई गयी वह काफी बड़ी है। धनराशि सिर्फ न तो केवल रसीद के पैसे की है और न महज टिकटों के लेन देन की। सूत्रों के मुताबिक नोटबंदी के दौरान नए पुराने के खेल की कथा भी इस प्रकरण से सीधे जुड़ती है।