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Meerut News: दलितों और मुस्लिमों ने माना हमने नहीं लड़ा चुनाव, करारी हार के बाद बोले BSP उम्मीदवार

Meerut News: मेरठ में करारी हार के बाद बसपाई हलकों में सन्नाटा छाया। बसपा उम्मीदवार बोले ,दलित और मुस्लिमों ने मान लिया की बसपा चुनाव लड़ ही नहीं रही है।

Sushil Kumar
Report Sushil KumarPublished By Divyanshu Rao
Published on: 12 March 2022 9:39 PM IST
Meerut News
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बसपा के झंडे की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

Meerut News: चुनाव में बसपा की करारी हार के बाद बसपाई हलकों में सन्नाटा छाया है। बसपा उम्मीदवारों को छोड़ दें तो बसपा का कोई भी क्षेत्रीय नेता हार पर कुछ भी बोलने को तैयार नही है। अलबत्ता,चुनाव में पराजित बसपा उम्मीदवार जरुर यह कहने में संकोच नही कर रहे हैं कि बसपा के दलित बेस वोट बैंक में गिरावट आयी है।

यही नही चुनाव में पराजित बसपा उम्मीदवार पार्टी सुप्रीमों मायावती के खिलाफ खुलकर तो नही हो रहे हैं लेकिन यह कह कर एक तरह से बसपा नेतृत्व को कटघरें में खड़ा जरुर कर रहे हैं कि मेरठ में भाजपा, सपा गठबंधन के बड़े नेता यानी मोदी-योगी,अखिलेश और जयंत चुनाव प्रचार करने पहुंचे, लेकिन बसपा से कोई नहीं आया। संगठन का भी कोई सहयोग नहीं मिला। ऐसे में दलित और मुस्लिमों ने मान लिया की बसपा चुनाव लड़ ही नहीं रही है। यही कारण है कि दलित भाजपा और सपा गठबंधन की तरफ खिसक गया।

सरधना से चुनाव हारे बसपा उम्मीदवार संजीव धामा हार की वजह पूछने पर किसी का नाम तो नही लेते लेकिन यह कहकर पार्टी नेतृत्व पर उंगली जरुर उठाते दिखते हैं कि सरधना हॉट सीट होने और भाजपा के सीएम और सभी बड़े नेताओं के पहुंचने के बाद भी बसपा हाईकमान ने कोई निर्णय नहीं लिया। बसपा का परंपरागत वोटर दूसरों के साथ हो लिया। यही नही पार्टी की तरफ से दलित वोट बैंक को कोई संदेश ही नहीं दिया गया। यही कारण है कि क्षेत्र के गांव सलावा, भामोरी, रार्धना, खेड़ा आदि गांवों में दलितों के कहीं दो तो कहीं पांच वोट मिले हैं। बसपा के दलित, मुस्लिम और अन्य किसी नेता ने चुनाव प्रचार में भाग ही नहीं लिया।

संजीव धामा की तरह सिवालखास से बसपा उम्मीदवार रहे नन्हें खां कहते हैं,भाजपा, सपा गठबंधन के बड़े नेता चुनाव प्रचार करने पहुंचे, लेकिन बसपा से कोई नहीं आया। संगठन का भी कोई सहयोग नहीं मिला। दलित और मुस्लिमों ने मान लिया की बसपा चुनाव लड़ ही नहीं रही है। यही कारण है कि दलित भाजपा और सपा गठबंधन की तरफ खिसक गया। हमें केवल 20 हजार दलित, सात हजार मुस्लिम और तीन हजार अन्य मत मिले हैं।

बीएसपी के झंडे की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

कमोवेश यही कहना कैंट से बसपा प्रत्याशी अमित शर्मा का है। हार की वजह पर काफी कुरेदने पर वे इतना ही कहते हैं, कैंट में सीएम भाजपा के लिए वोट मांगने पहुंचे, लेकिन बसपा का कोई बड़ा नेता सामने नहीं आया। संगठन पूरी तरह शून्य है। दलित वोटर में निराशा रही और भाजपा व सपा के साथ हो लिया। हमें केवल अपने संबंधों की वोट मिली है। अवसर मिला तो बहनजी को पूरी व्यवस्था से अवगत कराऊंगा।

बसपा कोर्डिनेटर दिनेश काजीपुर इतना तो मानते हैं कि बसपा के दलित बेस वोट बैंक में गिरावट आयी है। लेकिन वें इस बात से इंकार करते हैं कि चुनाव में उम्मीदवारों को संगठन का कोई सहयोग नही मिला। वें कहते हैं,मैं तीन जिलों की 13 विधानसभा सीटें देख रहा था। पार्टी ने जहां की जिम्मेदारी सौंपी, वहां पहुंचा। राजकुमार गौतम और शमशुद्दीन राईन भी मेरठ आए। जितना हो सकता उतना किया गया। बता दें कि वर्ष 2017 में मिले मतों के मुकाबले बसपा मेरठ की सात विधानसभा सीटों पर सिर्फ 45 प्रतिशत दलितों को ही साधे रख सकी। यानी 55 फीसदी दलित मतदाता बड़ी संख्या में भाजपा और कुछ संख्या में सपा-रालोद पर भी शिफ्ट हो गया।

सूत्रों के अनुसार मेरठ जनपद की सात विधानसभा सीटों पर 477000 हजार दलित मतदाता हैं। इनमें से करीब 65 फीसदी यानी 310050 ने मतदान किया है। सभी सात सीटों पर बसपा प्रत्याशियों को कुल 166866 मत मिले हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सभी सात सीटों पर बसपा को 371902 मत मिले थे। इस बार पार्टी प्रत्याशी 166866 मत ही पा सके हैं। यानी 2017 के मुकाबले इस बार पार्टी के 205036 मत कम हो गए।



Divyanshu Rao

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